5 ऐसे कारण जिनकी वजह से 90 के क्रिकेटर वर्तमान भारतीय क्रिकेट टीम को खूब पसंद करेंगे

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2. गेंदबाजों का बल्ले से भी योगदान-

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90 के दशक में भारत के पास रन बनाने के लिए केवल 6 मुख्य बल्लेबाज ही होते थे। इन्हीं 6 बल्लेबाजों के ऊपर पूरे रन बनाने की जरुरत होती थी, क्योंकि टेलेंडर तब इतना रन नहीं बना पाते थे, जिससे वे टीम को जिता सकें। यहां तक कि विकेटकीपरों से भी ज्यादा उम्मीद नहीं की जाती थी। हालांकि कपिल देव अपने जमाने के मशहूर ऑलराउंडर रहे हैं और तेज गेंदबाज मनोज प्रभाकर ने भी कुछ मैचों में निचलेक्रम पर अच्छी बल्लेबाजी की। लेकिन इन दोंनों खिलाड़ियों को छोड़ दें, तो निचलेक्रम में बल्लेबाजी भारत के लिए हमेशा से ही चिंता का विषय रही है। लेकिन 2000 में इसमें बदलाव हुआ, गेंदबाजी के साथ बल्लेबाजी करने वाले खिलाड़ियों की तरजीह दिया जाने लगा। लेकिन अब निचलेक्रम में गेंदबाज बल्ले से भी काफी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। अश्विन ने बैटिंग में लगभग 6 नबंर पर अपनी जगह पक्की कर ली है, वहीं रवींद्र जाडेजा जैसा बल्लेबाज भी 8वें नबंर पर बल्लेबाजी करना आता है। जडेजा के नाम घरेलू क्रिकेट में तिहरा शतक भी है। वहीं विशाखापट्टनम टेस्ट में डेब्यू के साथ ही जयंत यादव ने पहली पारी में 35 और दूसरी पारी में 37 रन बनाए। दूसरे टेस्ट की पहली पारी में भारत के आखिर के 3 विकेट ने 92 रन जोड़े। दूसरी पारी में दसवें विकेट के लिए मोहम्मद शमी और जयंत यादव ने 42 रनों की अहम साझेदारी की। इस साझेदारी की वजह से भारत 400 का स्कोर बनाने में कामयाब रहा, जिससे इंग्लैंड के ऊपर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बना। दूसरी पारी में जब इंग्लैंड की टीम बल्लेबाजी करने उतरी तो भारत ने बेहतरीन बॉलिंग का प्रदर्शन करते हुए इंग्लैंड को 246 रनों से हरा दिया।

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