सुनील गावस्कर की 1970-71 की पहली सीरीज की याद में लॉर्ड रिलेटर ने गावस्कर कैलिप्सो लिखा था जो बहुत कम लोगों को ही याद होगा। ये गाना उस समय काफी प्रसिद्ध हुआ था। 90 के दशक में गावस्कर नहीं थे और हम लोगों में से बहुत इतने भाग्यशाली नहीं थे जो उनको खेलता हुआ देख सके। लेकिन हमारे लिए 90 का दशक क्रिकेट प्रेमियों का दशक रहा और उस समय सभी क्रिकेट देखना पसंद करते थे।
भारत के बहुत हिस्सों में केबल टीवी ने दस्तक दी थी और सबका साथ मिलकर एक रोमांचक मुकाबला देखना बहुत ही आम नज़ारा था। अगर तेंदुलकर बल्लेबाजी कर रहे हों तो फिर कई दुकानें दिन के समय में भी बंद हो जाती थी। जब कभी भी हम उस दशक को वापस याद करते हैं तो ऐसा लगता है कि उसका अपना अलग ही अंदाज़ था। क्रिकेट के लिए उस दशक में एक अलग प्यार की शुरुआत हुई थी। जब कभी भी हम 90 के दशक को याद करते हैं तो क्रिकेट के प्रति उस पागलपन की हमें याद आती है।
चलिए एक बार फिर उन यादों में से कुछ को हम दोबारा जीने की कोशिश करते हैं:
# गेंदबाजों का आखिरी दशक
90 के दशक को गेंदबाजों के लिए आखिरी दशक माना जाता है। क्रिकेट प्रेमी अब इसे बल्लेबाजों का खेल मानते हैं। स्कूप और स्विच हिट जैसे शॉट्स के आने के बाद से ये देख कर बुरा लगता है कि कोई भी गेंदबाज नहीं बनना चाहता। 400 के स्कोर जिस तरह से आजकल बन रहे हैं ऐसा कहा जाने लगा है कि कुछ दिनों के बाद क्रिकेट में गेंदबाजों की जगह बॉलिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाने लगेगा।
लेकिन 90 का दशक अलग था और बल्लेबाजों को बढ़िया गेंदबाजी आक्रमण का सामना करना पड़ता था। 200 से ऊपर के स्कोर का पीछा करना मुश्किल होता था। वेस्टइंडीज के तेज़ गेंदबाजों का भी वो आखिरी दशक था और कर्टनी वॉल्श, कर्टली एम्ब्रोस और इयान बिशप को खेलना मुश्किल था।
90 के दशक में ही पोलक, अकरम, वकार, डोनाल्ड और मैक्ग्रा जैसे तेज़ गेंदबाज आये तो वहीँ स्पिन में दुनिया ने मुरलीधरन, वॉर्न, कुंबले और सक़लैन मुश्ताक जैसे शानदार गेंदबाजों को देखा। 90 के दशक में सिर्फ 4 बल्लेबाज ही टेस्ट में 50 के ऊपर की औसत दर्ज कर सके।
# शारजाह के डे-नाईट मैच
क्या आपको याद है जब तेज़ आंधी के कारण खिलाड़ी जमीन पर लेट गए थे या फिर इंडिया और पकिस्तान के बीच के वो सारे जबरदस्त मैच? इस सबका गवाह था शारजाह। 90 के दशक में किसी भी बच्चे के लिए शारजाह में मैच देखना बहुत ही मज़ेदार अनुभव था। शारजाह ने कई रिकॉर्ड, कई भावनाओं और कई शानदार मैचों को देखा है।
एक मैच का अगर जिक्र जरुर किया जाए तो वो 1998 के हीरो कप का फाइनल होगा। एक मैच पहले ज़िम्बाब्वे के तेज़ गेंदबाज हेनरी ओलोंगा के कारण भारतीय टीम ज़िम्बाब्वे के 205 रनों का भी पीछा नहीं कर पाई थी। ओलोंगा ने भारतीय शीर्षक्रम को तहस नहस कर दिया था और सचिन तेंदुलकर को भी आउट किया था। तेंदुलकर को ओलोंगा ने लगातार दो गेंदों में आउट किया जिसमें पहला नो बॉल था। ओलोंगा ने बल्लेबाजी के धुरंधर को शॉर्ट गेंद पर आउट किया था।
फाइनल मैच को तेंदुलकर और ओलोंगा के बीच मुकाबले का नाम दिया गया और तेंदुलकर ने निराश नहीं किया। उन्होंने ओलोंगा के गेंदबाजी की धज्जियाँ उड़ा दी। उन्होंने एक अपर कट भी मारा जैसा कि उन्होंने 2003 के वर्ल्ड कप में शोएब अख्तर को मारा था। इसके बाद तो उन्होंने ओलोंगा के खिलाफ मैदान के हर कोने में रन बनाये और जब ओलोंगा को गेंदबाजी से हटाया गया वो 4 ओवर में 40 रन दे चुके थे। सचिन उन्हें आगे बढ़-बढ़ के मार रहे थे और ओलोंगा को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
जब पॉल स्ट्रैंग गेंदबाजी करने आये तो उन्हें भी तेंदुलकर ने छक्के मारे। वहीं दूसरी तरफ सौरव गांगुली ने ग्रांट फ्लावर को लॉन्ग ऑन और डीप मिडविकेट के बीच से स्टेडियम की छतों पर मारना शुरू किया। तेंदुलकर ने उस मैच में अपना 21वां शतक पूरा किया और भारत ने मैच 10 विकेट से जीता था।
# जोंटी रोड्स
1992 के वर्ल्ड कप के दौरान इंज़माम-उल-हक के उस रन आउट को कौन भूल सकता है? दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान के उस मैच के बाद जोंटी रोड्स को सभी जानने लगे थे। एक अख़बार ने लिखा था कि क्या ये कोई चिड़िया है? क्या ये कोई प्लेन है? अरे नहीं ये तो जोंटी है!
उस मैच में इंज़माम रन लेने के लिए दौड़े और पॉइंट से गेंद लेकर जोंटी दौड़ लगाते हुये स्टंप्स पर ही कूद गए। इसके बाद पाकिस्तान की पारी की दिशा ही बदल गई। ये रन आउट इस वर्ल्ड कप की सबसे अहम घटनाओं में से एक हो गई।
उसके बाद करीब 10 साल तक जोंटी ने बैकवर्ड पॉइंट को अपना बनाकर रखा। 1993 में ब्रेबोर्न स्टेडियम में दक्षिण अफ्रीका-वेस्टइंडीज हीरो कप मैच के दौरान उन्होंने कैच लिए और सिर्फ फील्डिंग के लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया था।
जोंटी ने इस दशक में फील्डिंग की परिभाषा बदल दी और क्रिकेट में फील्डिंग का महत्व बढ़ गया। इसके बाद खिलाड़ियों ने अपनी फील्डिंग को गंभीरता से लेना शुरू कर दिय।
# तेंदुलकर और लारा के बीच प्रतिद्वंदिता
90 के दशक को तेंदुलकर का दशक कहा जाता है। उन्होंने सभी गेंदबाजी आक्रमण की धज्जियाँ उड़ाई और वो बड़े-बड़े स्कोर काफी तेज़ी से बनाते थे। उनकी आक्रामक बल्लेबाजी ने क्रिकेट प्रेमियों के लिए बल्लेबाजी को फिर से परिभाषित कर दिया।
सभी के लिए तेंदुलकर एक घरेलू नाम हो गए। 90 के दशक ने देखा कि युवा तेंदुलकर ने किस तरह गेंदबाजों की हालत ख़राब कर दी थी। उस शताब्दी के बाद तेंदुलकर भले 13 साल और खेले लेकिन वो इस दौरान चोटों से काफी परेशान रहे। उनकी आक्रामकता में कहीं न कहीं कमी आ गई थी।
युवा तेंदुलकर ने अपनी गेंदबाजी से भी प्रभावित किया। 1993 के हीरो कप के सेमीफाइनल में आखिरी ओवर में दक्षिण अफ्रीका को सिर्फ 6 रन बनाने थे और तेंदुलकर ने नहीं बनने दिए। लेकिन बाद में तेंदुलकर ने ज्यादा गेंदबाजी नहीं की।
जहाँ तेंदुलकर को आक्रामकता के लिए जाना जाता था वहीँ ब्रायन लारा को उनकी खेल की खूबसूरती के कारण जाना जाता था। अपने शानदार बैकफुट और शफल के कारण लारा को बराक ओबामा ने क्रिकेट का माइकल जॉर्डन कहा था। लारा उस दशक के सबसे खूबसूरत बल्लेबाजों में एक थे और उनकी बल्लेबाजी एक कविता की तरह होती थी।
90 के दशक में इन दोनों बल्लेबाजों ने गेंदबाजों पर गज़ब का दबाव बनाया और तभी ऐसे सवालों ने जन्म लिया जिनका कोई जवाब नहीं था- इन दोनों में ज्यादा महान बल्लेबाज कौन है? 90 के दशक में जिन्होंने इन्हें बल्लेबाजी करते देखा वो अपने आप को खुशकिस्मत समझते हैं।
# क्रिकेट के विज्ञापन
90 के दशक का वो डेरी मिल्क का विज्ञापन सबको याद होगा जब एक लड़की क्रिकेट के मैदान पर आकर डांस करने लगती है। 'रियल टेस्ट' अभियान के तहत इस विज्ञापन को बहुत सफलता मिली थी। क्रिकेट और डेरी मिल्क किसी के भी अन्दर के बच्चे को फिर से जगा सकता था।
90 के दशक का वो पेप्सी का विज्ञापन भी काफी प्रसिद्ध हुआ था जिसमें शाहरुख़ खान भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम में पेप्सी के कारण आते हैं और सचिन की जगह उन्हें बल्लेबाजी के लिए भेज दिया जाता है। तेंदुलकर और एसआरके का आमना सामना होता है और सचिन उनके हाथ से पेप्सी का कैन लेकर चले जाते हैं।
इसके अलावा पेप्सी का वो विज्ञापन भी काफी फेमस हुआ था जिसमे तेंदुलकर कई लड़कों के साथ दिखते हैं और जिन्होंने तेंदुलकर का मुखौटा पहना होता है। उस ऐड में तेंदुलकर ने सरप्राइज दिया था और उन्हीं लड़कों में से एक सचिन रहते हैं।
और बहुत सारे ऐसे ही विज्ञापन थे जो क्रिकेट और क्रिकेटरों से जुड़े थे। रोमांचक मैच में तेंदुलकर के आउट होने के बावजूद इन विज्ञापनों के आने से कोई दुखी नहीं होता था।