भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका से मुंबई में हुए अंतिम एकदिवसीय मैच में 214 रनों से हारी, जो भारतीय टीम की रनों के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी हार रही। इसमें ना सिर्फ गेंदबाज नाकाम रहे, पर बल्लेबाज भी रनों का पीछा करते हुए एक सम्मानजनक स्कोर तक नहीं पहुँच पाए। ऐसे पहले भी कई बार हुआ है जब भारत का विशाल बल्लेबाजी क्रम नाकाम रहा है और टीम को बड़े मौकों पर हार का सामना करना पड़ा है। यह रहे वो 5 मौके जब एक बड़े मैच में भारत की महान बल्लेबाजी ने सब को निराश किया है।
5. आईसीसी विश्व कप 2015 – दूसरा सेमी-फाइनल
भारत के सबसे कट्टर क्रिकेट प्रसंशकों को भी 2015 विश्व कप के दूसरे सेमी-फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के 328 रन बनाने के बावजूद भारत के प्रति आशा रखने के लिए माफ किया जा सकता है। स्मिथ ने एक शानदार शतक लगाया और बल्लेबाजी के उपयुक्त इस पिच पर कुछ ऐसी ही बड़ी पारी की उम्मीद भारतीय बल्लेबाजों से थी। रोहित शर्मा, धवन और रहाणे सभी को अच्छी शुरूआत मिली पर वो उसे बढ़ा नहीं सके। विराट कोहली को भी बड़े मौके पर नहीं चलने का प्रसंशकों का गुस्सा झेलना पड़ा। धोनी ने अकेले लड़ाई लड़ी, पर भारतीय टीम कभी भी मैच में वापसी करती हुई नहीं दिखी। भारत अंत में 233 रनों पर आउट हो गई, इसी के साथ सभी उम्मीदें और सपने टूट गए।
4. प्रुडिंशियल विश्व कप - 1975
[caption id="attachment_14116" align="alignnone" width="638"] प्रुडिंशियल विश्व कप - 1975[/caption] 1975 विश्व कप में भारत की शुरूआत बहुत खराब रही, वो इंग्लैंड से लॉर्ड्स के पहले मैच में बहुत बुरी तरह हार गए। पहले बल्लेबाजी करते हुये इंग्लैंड ने 334 रन बनाए। हालांकि यह एक 60 ओवर का मैच था, पर इतने बड़े स्कोर का पीछा करना उस समय लगभग असंभव था। पर भारतीय बल्लेबाजों का जवाब असामान्य था, जिसे आज भी याद किया जाता है। यह गावस्कर की सबसे कम जानी जाने वाली अनोखी पारी थी, उन्होंने पूरे 60 ओवर खेले और 174 गेंदें खेलकर 36 रनों पर नाबाद रहे। भारत का स्कोर पूरी पारी के बाद 3 विकेट खो कर 132 रन था। गावस्कर की इस पारी की आज भी आलोचना होती है और बाद में उन्होंने अपनी रक्षा में कहा की वो रक्षात्मक ढंग से खेल रहे थे क्योंकि उन्हें लगा की मैच मई जीत संभव नहीं है। हालांकि भारत ऑल-आउट नहीं हुआ, बाद में भारतीय बल्लेबाजों के इस रवये की जमकर आलोचना की गई, जहां उन्होंने बिना कोशिश किए हार मान ली थी।
3. वीबी सीरीज, 2004 का दूसरा फ़ाइनल
[caption id="attachment_14115" align="alignnone" width="660"] वीबी सीरीज, 2004 का दूसरा फ़ाइनल[/caption] 2004 के भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर वीबी सीरीज के फ़ाइनल में भारतीय बल्लेबाजों का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन देखने को मिला। पहले बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने 359 रन का स्कोर खड़ा कर दिया, जिसमें मेथ्यु हेडन ने 126 रनों की ताबड़-तोड़ पारी खेली। भारत ने इसके सामने जैसे हथियार डाल दिये थे। अधिकतर भारतीय बल्लेबाजों को शुरूआत मिली पर वो उसे भुना नहीं पाये। इरफान पठान, 30 रन के साथ भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बने और भारत की पारी 33.2 ओवर्स में महज 151 रनों पर सिमट गई।
2. आईसीसी विश्व कप 2007 का 20वां मैच
[caption id="attachment_14114" align="alignnone" width="651"] आईसीसी विश्व कप 2007 का 20वां मैच[/caption] 2007 विश्व कप भारतीय टीम का सबसे बुरा रहा, जहां वो ग्रुप स्टेज के आगे भी नहीं जा सके थे। अपने अंतिम ग्रुप स्टेज मैच में श्रीलंका के खिलाफ भारत को अपनी उम्मीदों को बचाने के लिए जीतना जरूरी था। पर भारतीय बल्लेबाज बुरी तरह नाकाम रहे और टीम की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 254 के आसान स्कोर का पीछा करते हुये भारत 185 रनों पर ऑल-आउट हो गया, भारतीय बल्लेबाज वास और मुरलीधरन की गेंदों को नहीं झेल पाये। 2007 विश्व कप ने भारतीय बल्लेबाजी की सबसे बड़ी विफलता को देखा, जहां पहले वो बगलादेश के हाथों शर्मनाख तरीके से हारे। उस समय भारतीय टीम 191 पर ऑल-आउट हो गई और बंगलादेशी बल्लेबाजों ने आसानी से इस लक्ष्य को हासिल कर लिया था।
1. कोको-कोला चैम्पियन्स ट्रॉफी फ़ाइनल, 2000
[caption id="attachment_14113" align="alignnone" width="653"] कोको-कोला चैम्पियन्स ट्रॉफी फ़ाइनल, 2000[/caption] 2000 का शरजाह का चैम्पियन्स ट्रॉफी फ़ाइनल सनथ जयसूर्या की बल्लेबाजी के लिए जाना जाता है, जहां उन्होंने अकेले दम पर भारतीय गेंदबाजों को पीटा था। जयसूर्या ने अपने कैरियर के सर्वश्रेष्ठ 189 रन बनाए और श्रीलंका ने 50 ओवर में 299 रन बनाए। भारत का जवाब काफी निराशाजनक रहा, जहां चमिंडा वास ने भारत के ऊपरीक्रम को जल्दी आउट किया और 5 विकेट लिए। रॉबिन सिंह उस मैच के इकलौते ऐसे बल्लेबाज़ थे जिन्होंने दोहरी संख्या का आंकड़ा पार किया। भारत 54 रनों के मामूली स्कोर पर ऑल-आउट हो गई। भारत ने यह मैच श्रीलंका से 245 रनों से हारा, जो आज भी भारत की सबसे बड़ी हार है। लेखक- दीप्तेश सेन, अनुवादक- आदित्य मामोड़िया