क्रिकेट खेलने के लिए किसी भी खिलाड़ी को तीन मुख्य चीजें बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी और फील्डिंग में से कम से कम एक आनी चाहिए। वहीं सभी खिलाड़ियों को फील्डिंग अनिवार्य रूप से आनी चाहिए। सामान्य तौर पर बल्लेबाज़ी या गेंदबाज़ी में खिलाड़ियों को विशेषज्ञ माना जाता है। हालांकि सभी टीमें गेंद और बल्ले से बेहतर प्रदर्शन कर सकें ऐसे खिलाड़ियों को रखना पसंद करती हैं। ऐसे खिलाड़ियों को आलराउंडर कहा जाता है, ये खिलाड़ी टीम के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वह खेल के किसी एक विभाग में विशेषज्ञ नहीं होते हैं। बीते कई सालों से ऐसे खिलाड़ी सफल टीमों का अभिन्न अंग रहे हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी ऑलराउंडर्स रहे हैं जिन्हें वह इज़्ज़त नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। आइये ऐसे ही 5 खिलाड़ियों के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिन्हें कभी भी क्रेडिट नहीं मिला: #1 रोबिन सिंह(भारत) पूर्व भारतीय क्रिकेटर खिलाड़ी रोबिन सिंह ने 1989 में ही भारत के लिए पदार्पण किया था और 2 वनडे मैच खेले थे। 7 साल बाद उन्होंने टीम में दोबारा वापसी करते हुए अपनी जगह मजबूत कर ली थी। वह भारतीय टीम में बतौर आलराउंडर शामिल थे।रोबिन सिंह ने भारत के लिए 136 वनडे और एक टेस्ट खेला था। रोबिन सिंह को एक बेहतरीन फील्डर भी माना जाता था। रोबिन सिंह ने 26 की औसत से वनडे में 2000 रन बनाये थे और 69 विकेट लिए थे। पाकिस्तान के खिलाफ ढाका में रोबिन सिंह ने त्रिकोणीय सीरीज के फाइनल मैच में यादगार 82 रन बनाये थे। जिससे भारत ने रिकॉर्ड 315 रन का पीछा किया था। गेंद से उन्होंने 1999 के वर्ल्डकप में 5 विकेट लिए थे। 90 के दशक में टीम इंडिया में रोबिन सिंह की फील्डिंग का भी बोलबाला था।#2 इयान हार्वे (ऑस्ट्रेलिया) ऑस्ट्रेलिया के लिए 1997 में डेब्यू करने वाले इयान हार्वे का 7 साल का लम्बा अंतर्राष्ट्रीय करियर था। जिसमें उन्होंने 73 वनडे मैच खेले थे। वह एक बेहतरीन मध्यम गति के गेंदबाज़ और लोअर आर्डर में गेंद को हिट करने वाले बेहतरीन बल्लेबाज़ भी थे। वनडे में इस विक्टोरियाई खिलाड़ी ने 85 विकेट और 700 से ज्यादा रन बनाये थे। जबकि उनका स्ट्राइक रेट 88 का था। हार्वे ने सबसे अच्छा प्रदर्शन भारत में हुए साल 2003 में त्रिकोणीय सीरीज टीवीएस कप में किया था। हार्वे ने 21 रन देकर 4 विकेट लिए थे और ऑस्ट्रेलिया को 37 रन से जीत दिलाई थी। साल 2004 में उन्हें ऑस्ट्रेलियाई टीम से बाहर कर दिया गया था। उसके बाद इयान हार्वे की अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कभी वापसी नहीं हुई।#3 एंड्रयू हॉल (दक्षिण अफ्रीका) बीते कई वर्षों में दक्षिण अफ्रीका ने कई बेहतरीन आलराउंडर को जन्म दिया, जिनमें जैक्स कालिस, लांस क्लूज़नर और शॉन पोलाक का नाम सबसे ऊपर आता है। लेकिन इन खिलाड़ियों के जाने के बाद प्रोटियाज़ टीम में कई महत्वपूर्ण खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। उनमे से एक नाम एंड्रयू हॉल का है। 7 साल के अपने करियर में हॉल ने 21 टेस्ट और 88 वनडे मैच खेले हैं। साल 2004 में हॉल ने भारत के खिलाफ कानपुर टेस्ट में शानदार 163 रन की पारी खेली थी। जिससे दक्षिण अफ्रीका टेस्ट को ड्रा कराने में सफल रहा था। वह एक प्रभावशाली मध्यम गति के गेंदबाज़ भी थे। उन्होंने वनडे विश्वकप 2003 में इंग्लैंड के खिलाफ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 18 रन देकर 5 विकेट लिए थे। इस प्रदर्शन के दम अफ्रीका को जीत और उन्हें 'मैन ऑफ़ द मैच' मिला था। एंड्रयू हॉल ने दक्षिण अफ्रीका के लिए कई बेहतरीन प्रदर्शन किया। लेकिन आज वह किसी को याद नहीं आ रहे हैं।#4 जैकब ओरम(न्यूज़ीलैंड) न्यूज़ीलैंड के बाएं हाथ के बल्लेबाज़ और मध्यम गति के गेंदबाज़ जैकब ओरम ने 2001 में अपना डेब्यू किया था। वनडे में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद कीवी आलराउंडर ने टेस्ट टीम में भी जगह बना ली थी। जहां उन्होंने इस बड़े प्रारूप में बल्ले से बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके अलावा वह न्यूज़ीलैंड के वनडे टीम के महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे। ओरम ने 33 टेस्ट में 36 की औसत और 5 शतकों की मदद से 1780 रन बनाये थे। साथ ही उन्होंने 60 विकेट भी लिए थे। उन्होंने 160 वनडे में 2434 रन और 173 विकेट लिए थे। जैकब ओरम, ब्रेंडन मैकुलम जैसे खिलाड़ी के समय उभर रहे थे। ऐसे में उन्हें अपने प्रदर्शन के ज्यादा वाहवाही नहीं मिली।#5 गाए व्हिटल(ज़िम्बाब्वे) ज़िम्बाब्वे की टीम 1990 के दशक में काफी मजबूत हुआ करती थी। एंडी फ्लावर, हीथ स्ट्रीक, ग्रांट फ्लावर और एलिस्टर कैम्पबेल जैसे खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आगे गाए व्हिटल को लोगों ने भुला दिया। व्हिटल टीम के लिए बहुत ही अहम खिलाड़ी हुआ करते थे। उन्होंने कई बेहतरीन प्रदर्शन किए थे। टेस्ट और वनडे में मिलाकर व्हिटल ने 2000 से अधिक रन बनाये थे। मध्यम गति के गेंदबाज़ व्हिटल ने टेस्ट में 51 विकेट और वनडे में 88 विकेट भी लिए थे। व्हिटल के करियर का सबसे यादगार लम्हा 1997 में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ दोहरा शतक बनाना था। उन्होंने ज़िम्बाब्वे की तरफ से 1996 से 2003 के बीच में 3 विश्वकप भी खेले थे। लेखक: अभिनव मेसी, अनुवादक: जितेंद्र तिवारी