हैदराबाद के आईपीएल का ख़िताब जीतने के बाद कप्तान डेविड वॉर्नर की उपयोगिता अपने राष्ट्रीय टीम की तरफ बढ़ गयी है। वह इस वक्त अपनी टीम के उपकप्तान भी हैं। उन्हें अरोन फिंच का साथ भी मिला है। उनका मानना है कि वॉर्नर को बतौर कप्तान आज़माया जा सकता है। लेकिन क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने फिंच की बात को आईपीएल के आधार पर महत्व नहीं दिया है। हालांकि वॉर्नर का भविष्य में स्टीव स्मिथ के सामने कप्तानी की दावेदारी थोड़ी कमजोर पड़ती नजर आ रही है। जो लगातार दो साल से टीम के लिए बेहतरीन कप्तानी दिखा रहे हैं। इसके अलावा वह वार्नर से युवा और मध्यक्रम के बल्लेबाज़ हैं। एक आध मैचों के आलावा वॉर्नर का ऑस्ट्रेलियाई टीम का कप्तान बनना एक अधूरे सपने की तरह हो सकता है। यहां आपको कई ऐसे खिलाड़ियों के बारे में बता रहे हैं, जो कप्तान बनने के लायक थे। लेकिन वह टीम के कप्तान नहीं बन सके इसका कारण टीम में अन्य बेहतरीन नेतृत्व होने की वजह थी। #1 शेन वॉर्न इस लेग स्पिनर में वह सारे गुण थे। उन्होंने बतौर गेंदबाज़ 708 विकेट लिए, जिसमें से 195 विकेट उन्होंने एशेज में लिए थे। इसके आलावा उनके नाम एक विश्व कप ट्राफी भी थी। लेकिन वॉर्न के 145 टेस्ट मैच के करियर में ऑस्ट्रेलियाई टीम का कप्तान बनना एक कमी की तरह था। वह अक्सर विवादों से घिरे रहते थे और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को निर्विवाद कप्तान की जरूरत थी। वॉर्न का रिश्ता कप्तान स्टीव वॉ और जॉन बुकानन के साथ अच्छा नहीं था। इयान चैपल ने वॉर्न की राजस्थान रॉयल्स के लिए आईपीएल जीत पर उनके लीडरशिप पर कुछ इस तरह लिखा था। “वॉर्न की कप्तानी में लीडरशिप काफी अहम थी। वह खिलाड़ियों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार करते थे। वॉर्न को इस बात का भरोसा था कि वह जो समय खिलाड़ियों के साथ बिताएंगे वह मैदान पर नजर आएगा। खिलाड़ियों के साथ काफी इमानदारी बरतते थे।” #2 जैक्स कालिस शेन वॉर्न की तरह इस ऑलराउंडर के करियर में भी कप्तानी की कसर रह गयी थी। उन्होंने तब टीम की कप्तानी की जब स्मिथ चोटिल हुए। इस महान ऑलराउंडर का करियर 19 बरस तक चला था। उन्होंने सफल और विवादित कप्तान हैन्सी क्रोनिये और शॉन पोलाक की भी कप्तानी में खेला था। कालिस शुरुआत में ही कप्तानी की रेस से बाहर हो गये थे। कालिस ने लम्बे समय तक टीम में गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी में अहम भूमिका अदा की। कालिस ने कभी भी भेदभाव नहीं दिखाया। कालिस के करियर में सिर्फ कप्तानी का ही ठप्पा नहीं लग पाया था। कालिस ने कभी भी कप्तानी के लिए हाथ भी नहीं खड़ा किया और उन्होंने आईपीएल में भी एक सीनियर की तरह खेलते रहे। वह इस वक्त आईपीएल में केकेआर के लिए बतौर कोच जुड़े हुए हैं। #3 एडम गिलक्रिस्ट विस्फोटक विकेटकीपर बल्लेबाज़ ने वह सबकुछ हासिल किया जो एलन बॉर्डर, मार्क टेलर और स्टीव वॉ नहीं कर पाए थे। पोंटिंग की अनुपस्थिति में गिली टीम की अगुवाई किया करते थे। एडम ने भारत के खिलाफ सीरीज भी जीती थी। स्टीव वॉ को भारत में मिली हार के बाद आखिरी सिपाही कहा जाने लगा था। हालांकि गिली ने सिर्फ 6 टेस्ट मैचों में ही कप्तानी की थी। जिसमें से उन्होंने 4 में जीत हासिल की थी। जिसमें से दो मैचों में उन्हें भारत के खिलाफ जीत मिली थी। भारतीय बल्लेबाज़ी में उस वक्त सहवाग, तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी थे। इससे गिली की कप्तानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। वह पोंटिंग के बाद ऑस्ट्रेलिया के कप्तान बनने लायक थे। वह ऑस्ट्रेलिया की अगुवाई और टेस्ट मैचों में कर सकते थे। उन्हें कप्तानी का मौका आईपीएल में मिला था। जहां उन्होंने 2009 में दक्षिण अफ्रीका में हुए आईपीएल में अपनी टीम को खिताबी जीत दिलाई थी। #4 क्रिस केर्न्स अपने लम्बे क्रिकेट करियर के बाद वह मैच फिक्सिंग के विवादों में फंस गये थे। वह न्यूज़ीलैंड के बेहतरीन ऑलराउंडर हुआ करते थे। उन्हें क्रिकेट में काफी कुछ हासिल हुआ लेकिन वह कभी कप्तान नहीं बन पाए। केर्न्स ने ब्लैक कैप के लिए 1989 से 2004 तक 62 टेस्ट मैच खेले थे। वह एक बेहतरीन ऑलराउंडर थे। लेकिन वह कभी भी अपनी टेस्ट टीम की कप्तानी की रेस में नहीं रहे। वह लम्बे समय तक स्टीफन फ्लेमिंग के उत्तराधिकारी बने रहे। जिन्होंने 80 टेस्ट मैचों में कप्तानी की थी। केर्न्स ने अपने पूरे करियर में 7 वनडे में टीम की कप्तानी की थी। केर्न्स ने 62 टेस्ट मैचों में 82 छक्के मारे थे। ऐसे में वह एक आक्रमक कप्तान साबित होते। #5 मार्क बाउचर इस लिस्ट में एक और दक्षिण अफ़्रीकी खिलाड़ी का नाम है। मार्क बाउचर ने प्रोटियाज़ के लिए 147 टेस्ट मैच खेले थे। आंख में चोट लगने से मार्क 1000 शिकार से मात्र 1 शिकार दूर रह गये थे। इसके आलावा अपने पूरे करियर में उन्हें सिर्फ 4 बार टीम का नेतृत्व मिला था। कालिस की तरह बाउचर ने भी पोलाक के कप्तानी में उपकप्तान थे। साल 2003 में उन्हें वर्ल्डकप के बाद कप्तानी की पेशकश मिली थी, लेकिन बाउचर ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। उन्होंने इसे कीपिंग के आलावा अतिरिक्त दबाव बताया था। लेखक: अमित सिन्हा, अनुवादक: मनोज तिवारी