महेंद्र सिंह धोनी के भारतीय टीम में प्रवेश के साथ ही टीम इंडिया की एक स्थाई और भरोसेमंद विकेटकीपर की तलाश खत्म हो गई थी। इससे पहले भारत ने विकेटकीपिंग डिपार्टमेंट में कई खिलाड़ियों को मौका दिया, लेकिन कोई भी लंबे समय तक टीम का हिस्सा नहीं रह सका। 2000 में नयन मोंगिया के जाने के बाद से टीम इंडिया, एक अच्छे विकेटकीपर की तलाश में थी, जो 2004 में धोनी के आने के बाद खत्म हुई।
आइए जानते हैं ऐसे 5 विकेटकीपरों के बारे में, जो करियर में 10 टेस्ट भी पूरे नहीं कर सकेः
#5 दीपदास गुप्ता (8 टेस्ट)
कोलकाता के दीपदास गुप्ता टीम में बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज शामिल हुए थे। वह एक कुशल खिलाड़ी थे। हालांकि, वह अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 8 टेस्ट ही खेल सके। टेस्ट में उनके खाते में 28.66 के औसत के साथ 344 रन दर्ज हैं। उन्होंने 2001 में पदार्पण किया था। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच से उनके करियर की शुरूआत हुई थी।
पहले मैच को ध्यान में रखते हुए दीपदास गुप्ता ने संतोषजनक बल्लेबाजी का प्रदर्शन किया और धुरंधर प्रोटीज बल्लेबाजों के सामने 71 गेंदों में 34 रनों की पारी खेली। पहले टेस्ट के बाद उन्हें ओपनिंग का मौका दिया गया। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने 281 गेंदों में 63 रनों की धैर्यपूर्ण
पारी खेली।
उनकी सबसे यादगार पारी इंग्लैंड के खिलाफ चंडीगढ़ टेस्ट में निकली, जब उन्होंने करियर का पहला शतक जड़ा। हालांकि, इस घरेलू सीरीज के बाद उन्हें गिने चुने मैचों में मौका दिया गया। पदार्पण के 5 महीने बाद, दीपदास गुप्ता ने जॉर्जटाउन में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैच के रूप में अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेला।
#4 अजय रात्रा (6 टेस्ट)
हरियाणा का यह खिलाड़ी भारत का विकेटकीपर बल्लेबाज रह चुका है। इनका करियर भी बहुत छोटा रहा। 6 मैचों के टेस्ट करियर में वह सिर्फ 163 रन बना सके और उनका औसत भी महज 18.11 का रहा। हालांकि, यह सारे मैच उन्होंने घरेलू नहीं बल्कि विदेशी जमीन पर खेले। करियर के तीसरे टेस्ट में उन्होंने शतक जमाया। उस वक्त उनकी उम्र 20 साल थी। इस शतक के बाद वह टेस्ट शतक लगाने वाले सबसे युवा विकेटकीपर बल्लेबाज बन गए। इसके कुछ वक्त बाद ही उनकी जगह पार्थिव पटेल ने ले ली। फिलहाल वह पंजाब रणजी टीम के कोच हैं। उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 2002 में इंग्लैंड दौरे के दौरान खेला था।
#3 समीर दिघे (6 टेस्ट)
समीर दिघे ने 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई टेस्ट के दौरान अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेला था। दूसरी पारी में भारत 155 रनों का पीछा कर रहा था और उसकी स्थिति काफी खराब थी। ऐसे में समीर ने 22 रनों की नाबाद और बेहद अहम पारी खेली थी। भारत किसी तरह मैच जीतने में सफल रहा और उसने 2-1 से सीरीज भी जीत ली। उसी साल भारत ने जिम्बाब्वे और श्रीलंका का दौरा किया। दोनों दौरों में समीर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके। लगातार निराशाजनक प्रदर्शन के चलते वह टीम से बाहर हो गए और कभी वापसी नहीं कर सके। उन्होंने कोलंबो में श्रीलंका के खिलाफ अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेला। फिलहाल वह मुंबई रणजी टीम के कोच हैं। अंतरराष्ट्रीय करियर में उनके नाम पर 15.66 के औसत के साथ 141 रन दर्ज हैं।
#2 एमएसके प्रसाद (6 टेस्ट)
वर्तमान में बीसीसीआई की चयन समिति के चेयरमैन प्रसाद ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में कुल 6 टेस्ट मैच खेले। उनके नाम पर 11.71 के औसत के साथ 106 रन हैं। ढाई महीनों के छोटे से करियर में प्रसाद ने 15 कैच जरूर पकड़े।
करियर की कुल 10 पारियों में एक बार भी वह बड़ी पारी नहीं खेल सके। उन्हें ज्यादातर बल्लेबाजी के निचले क्रम में जगह दी गई। 1999 में ऑस्ट्रेलिया दौरे के तीसरे टेस्ट के दौरान उन्हें एक बार ओपनिंग करने का मौका दिया गया था। बतौर ओपनर पहली और दूसरी पारी में वह क्रमशः 5 और 3 रन बना सके और यह उनका आखिरी टेस्ट मैच साबित हुआ।
#1 विजय दहिया (2 टेस्ट)
दिल्ली की रणजी टीम की ओर से विजय दहिया ने घरेलू क्रिकेट में अच्छा नाम कमाया है। वह एक अच्छे विकेटकीपर बल्लेबाज थे। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय करियर में वह सिर्फ 2 ही टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व कर सके। दहिया ने जिम्बाब्वे के खिलाफ कोटला टेस्ट में पदार्पण किया था। उन्हें बल्लेबाजी के निचले क्रम में जगह दी गई थी। भारत ने पहली और दूसरी पारी क्रमशः 4 और 3 विकेट ही गंवाए। इस वजह से दहिया को बल्लेबाजी का मौका ही नहीं मिल पाया। उन्होंने अपना अगला और आखिरी टेस्ट नागपुर में खेला। इसके बाद टेस्ट टीम में कभी उनकी वापसी नहीं हो सकी।
फिलहाल वह आईपीएल में कोलकाता नाइटराइडर्स के सहयोगी कोच हैं।
लेखकः सव्यसाची चौधरी, अनुवादकः देवान्श अवस्थी