DRS यानी डिसीजन रिव्यू सिस्टम इसका इस्तेमाल किया जाए या नहीं, इसपर अभी भी एक राय नहीं बन पा रही है। भारतीय क्रिकेट टीम DRS लेने के पक्ष में नहीं है और भारत जिस भी द्विपक्षीय सीरीज़ में खेलता है वहां DRS का इस्तेमाल नहीं होता। आईसीसी के नियमानुसार DRS का इस्तेमाल सीरीज़ में खेल रही टीमों के आपसी सहमति पर ही निर्भर है और जो टीम इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहती, वह इसके लिए आज़ाद है। DRS या UDRS की शुरुआत पहली बार 24 नवंबर 2009 को डुनेडिन में खेले गए न्यूज़ीलैंड और पाकिस्तान के टेस्ट मैच में हुई थी। टेस्ट के बाद वनडे में पहली बार DRS इस्तेमाल में आया था जनवरी 2011 में जब इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया दौरे पर थी और फिर 2011 विश्वकप में भी DRS का इस्तेमाल हुआ था। ये पहला मौक़ा था जब भारतीय क्रिकेट टीम ने भी DRS का इस्तेमाल किया था। इस तकनीक का मक़सद ये है कि अगर फ़ील्ड अंपायर से कोई ग़लती हो तो बल्लेबाज़ या फ़ील्डिंग करने वाली टीम DRS का इस्तेमाल करते हुए फ़ैसले को चुनौती दे सके। ताकि क्रिकेट के इस खेल में पारदर्शिता लाई जा सके। तीसरे अंपायर के पास हॉट स्पॉट, हॉक आई, स्निकोमीटर जैसे उपक्रण होते हैं जिससे वह बारीक़ से बारीक़ चीज़ों को देख सकें और फिर उस आधार पर फ़ैसला कर सकें। इन सब चीज़ों के बाद भी DRS आज भी पूरी तरह से सही नहीं कहा जा सकता और यही वजह है कि भारत जैसे कई और देश भी इसके ख़िलाफ़ हैं। आपके सामने DRS के ऐसे 5 ख़राब फ़ैसले हम लेकर आए हैं, जिसने मैच के नतीजे को बदल डाला: #1 नाथन लॉयन: ऑस्ट्रेलिया vs न्यूज़ीलैंड, डे-नाइट टेस्ट, 2015, एडिलेड हाल के दिनों में DRS का ये सबसे विवादास्पद फ़ैसलों में से एक है। 2015 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच पहला डे-नाइट टेस्ट खेला जा रहा था, और जिस वक़्त ये फ़ैसला DRS ने दिया वह मैच का बेहद अहम पल था और DRS के इस फ़ैसले ने मैच के नतीजे पर असर डाल दिया। न्यूज़ीलैंड के बाएं हाथ के स्पिनर मिचेल सांटनर ने राउंड द विकेट गेंद डाली थी, जिसपर नाथन लॉयन ने स्वीप करने की कोशिश की, गेंद बल्ले का ऊपरी किनारा लेते हुए उनके कंधे से टकराई और फिर गली में खड़े फ़िल्डर के हाथों में चली गई। फ़ील्ड अंपायर एस रवि ने इसे नॉट आउट करार दिया, जिसके बाद न्यूज़ीलैंड ने DRS लिया, लेकिन तीसरे अंपायर नाइजल लॉंग ने ये कहते हुए फ़ील्ड अंपायर के फ़ैसले को सही ठहराया कि बल्लेबाज़ को आउट देने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं। हॉट स्पॉट पर भी दिख रहा था कि गेंद लॉयन के बल्ले से लगी है, पर नाइजल लॉंग ने उसे नकार दिया और बल्लेबाज़ को नॉट आउट करार दिया। जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने इसका फ़ायदा उठाते हुए बड़ी बढ़त हासिल कर ली और मैच जीत गए। #2 उस्मान ख़्वाजा: ऐशेज़ 2013, तीसरा टेस्ट, ओल्ड ट्रैफ़र्ड इस बार DRS का फ़ैसला ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ गया। 2013 ऐशेज़ का ये तीसरा टेस्ट मैच था, ग्रेम स्वान की एक गेंद ख़्वाजा के बल्ले को छकाती हुई विकेटकीपर मैट प्रॉयर के दस्तानों में गई और एक ज़ोरदार अपील के बाद फ़ील्ड अंपायर टोनी हिल ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ को आउट करार दिया। उस्मान ख़्वाजा को यक़ीन था गेंद ने बल्ले को नहीं छुआ है, उन्होंने तुरंत ही DRS ले लिया, हॉट स्पॉट पर भी कोई निशान नहीं दिखा। लेकिन तीसरे अंपायर कुमार धर्मसेना ने उस्मान ख्वाजा को आउट दे दिया, जिसने ख्वाजा के साथ साथ ऑस्ट्रेलियाई टीम को भी अचंभित कर दिया था। DRS के इस ख़राब फ़ैसले से ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री भी निराश हो गए और उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा था कि क्रिकेट इतिहास के सबसे ख़राब फ़ैसलों में से एक ये भी था। #3 केमार रोच: ऑस्ट्रेलिया vs वेस्टइंडीज़, 2009, पर्थ ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ के बीच एक बेहद रोमांचक मैच चल रहा था, पर्थ में खेले जा रहे इस टेस्ट मैच में वेस्टइंडीज़ को जीत के लिए 35 रनों की ज़रूरत रह गई थी। लेकिन तभी कैरेबियाई बल्लेबाज़ केमार रोच को फ़ील्ड अंपायर बिली बॉडन ने विकेट के पीछ कैच आउट करार दे दिया था। केमार रोच अपनी जगह पर खड़े रहे और उन्होंने DRS का इस्तेमाल किया, तीसरे अंपायर असद राउफ़ को इस बेहद नाज़ुक मौक़े पर फ़ैसला करना था। हॉट स्पॉट में कहीं भी बल्ले पर गेंद लगने का निशान नज़र नहीं आया, लेकिन राउफ़ को लगा कि बल्लेबाज़ को आउट देने के लिए सबूत पर्याप्त हैं और उन्होंने आउट दे दिया। रोच के ख़िलाफ़ गए इस ख़राब फ़ैसले ने वेस्टइंडीज़ को ऑस्ट्रेलिया पर एक रोमांचक जीत से महरूम कर दिया था। #4 धमिका प्रसाद: न्यूज़ीलैंड vs श्रीलंका, डुनेडिन, 2015 श्रीलंका के तेज़ गेंदबाज़ धमिका प्रसाद के ख़िलाफ़ गया ये फ़ैसला बेहद हैरान करने वाला था। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ वनडे मैच के दौरान धमिका की एक गेंद पर न्यूज़ीलैंड के बल्लेबाज़ मार्टिन गुप्टिल विकेट के सामने पकड़े गए थे। धमिका की ज़ोरदार अपील को फ़ील्ड अंपायर डेरेक वॉकर ने नकार दिया, जिसके बाद इस श्रीलंकाई तेज़ गेंदबाज़ ने DRS की मांग की। लेकिन इसके बाद जो तीसरे अंपायर ने कहा वह सच में शर्मनाक था, तीसरे अंपायर की ओर से ये कह कर DRS की मांग को ख़ारिज कर दिया गया कि जिस एंड से धमिका प्रसाद गेंदबाज़ी कर रहे थे वहां का कैमरा ख़राब था इसलिए DRS का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। श्रीलंकाई खिलाड़ियों को अपनी क़िस्मत पर यक़ीन नहीं हो रहा था और मार्टिन गुप्टिल को जीवनदान मिल गया। #5 इयान बेल: 2011 विश्वकप, भारत vs इंग्लैंड, बैंगलोर 2011 विश्वकप के दौरान भारत पहली बार DRS का इस्तेमाल कर रहा था, ये मुक़ाबला था भारत और इंग्लैंड के बीच रोमांचक मैच का जो रहा था टाई। इंग्लैंड मैच को जीतने की तरफ़ बढ़ रहा था, तभी युवराज सिंह ने इयान बेल को विकेट के सामने क़रीब क़रीब आउट कर दिया था। न्यूज़ीलैंड के अंपायर बिली बॉडन ने युवराज की इस अपील को ख़ारिज कर दिया और फिर भारत ने DRS का इस्तेमाल किया। रिप्ले में ये साफ़ दिख रहा था कि गेंद स्टंप्स को जाकर लग रही है, लेकिन इस अपील को ये कहते हुए नकार दिया गया है कि 'प्वाइंट ऑफ़ इम्पैक्ट' 2.5 मीटर से ज़्यादा है। भारतीय क्रिकेट टीम के ख़िलाफ़ गया ये फ़ैसला और आख़िरकार मैच टाई रहा, मैच के बाद भारतीय कप्तान धोनी ने इस DRS की जमकर आलोचना भी की थी।