साल 1983 में वर्ल्ड कप जीतने के बाद भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई थी। सैंकड़ों युवा खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई, लेकिन इनमें से कुछ ही क्रिकेट कामयाब रहे। 16 या 17 साल की उम्र में डेब्यू करने के अपने फ़ायदे और नुक़सान हैं। इस उम्र में हर कोई मुश्किल हालात का सामना नहीं कर पाता है और उसकी चमक वक़्त के साथ धुंधली पड़ जाती है। हांलाकि कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने कम उम्र में वनडे में डेब्यू किया और बेहद कामयाब रहे। सचिन तेंदुलकर और हरभजन सिंह ऐसे कुछ नाम हैं जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा। हम यहां उन भारतीय खिलाड़ियों को लेकर चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने काफ़ी छोटी उम्र में अपने वनडे करियर की शुरुआत की थी:
#5 लक्ष्मी रतन शुक्ला
उम्र : 17 साल 320 दिन मैच : 3 रन : 18 औसत : 9लक्ष्मी रतन शुक्ला ने 1998 में 17 साल की उम्र में श्रीलंका के ख़िलाफ़ वनडे में डेब्यू किया था। वो एक ऑलराउंडर के तौर पर टीम इंडिया में शामिल किए गए थे। 1997/98 की रणजी ट्रॉफ़ी में बंगाल की तरफ़ से खेलते हुए उन्होंने अपने प्रदर्शन से हर किसी का दिल जीता था। हांलाकि वो सिर्फ़ 3 वनडे मैच ही खेल पाए और फिर उन्होंने कभी भी दोबारा वापसी नहीं की। शुक्ला उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं जिन्होंने रणजी में 5000 रन और 150 विकेट अपने नाम किए हैं। साल 2008 से लेकर 2015 तक वो आईपीएल में शामिल हुए थे। पहले 6 साल तक उन्होंने केकेआर का साथ दिया, फिर एक-एक साल दिल्ली डेयरडेविल्स और सनराइज़र्स हैदराबाद का हिस्सा रहे। 30 दिसंबर 2015 को उन्होंने क्रिकेट के सभी फ़ॉर्मेट से संन्यास ले लिया।
#4 पार्थिव पटेल
उम्र : 17 साल 301 दिन मैच : 38 रन : 736 औसत : 23.74पार्थिव पटेल उस वक़्त चर्चा में आए थे जब सौरव गांगुली ने उन्हें विकेटकीपर के तौर पर टीम इंडिया में शामिल किया था। पटेल ने 2003 में 17 साल की उम्र में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ वनडे में डेब्यू किया था। उन्हें पहला झटका तब लगा जब चयनकर्ताओं ने राहुल द्रविड़ को विकेटकीपिंग की ज़िम्मेदारी सौंपी ताकि एक बल्लेबाज़ की जगह कम न हो। पहले 2 साल तक उन्होंने महज़ 13 मैच खेले थे, वो भी तब जब द्रविड़ या तो चोटिल रहते थे या फिर उन्हें आराम दिया जाता था। महेंद्र सिंह धोनी के टीम इंडिया में शामिल होने के बाद पार्थिव का अंतर्राष्ट्रीय करियर थम सा गया। पार्थिव ने 38 वनडे मैच खेले हैं, उन्होंने साल 2010 में वनडे में वापसी की थी और लगातार 2 अर्धशतक भी लगाए थे, लेकिन किस्मत ने उनका ज़्यादा साथ नहीं दिया। क़रीब 6 साल से उन्होंने एक भी वनडे मैच नहीं खेला है।
#3 हरभजन सिंह
उम्र : 17 साल 288 दिन मैच : 236 विकेट : 269 औसत : 33.35ॉहरभजन सिंह ने 1998 में 17 साल की उम्र में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ अपने वनडे करियर की शुरुआत की थी। लुधियाना के रहने वाले इस खिलाड़ी ने अंडर-15 और अंडर-19 में खेलते हुए सुर्खियों में जगह बनाई थी। भज्जी का करियर काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। उन्हें करियर के दौरान कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कई बार वापसी की। उनकी बॉलिंग एक्शन भी शक के दायरे में आया था। उनका ‘दूसरा गेंद’ भी काफ़ी चर्चाओं में रहा। वनडे में भज्जी ने 269 विकेट हासिल किए हैं। उन्होंने कई मौकों पर टीम इंडिया को जीत दिलाई है।
#2 मनिंदर सिंह
उम्र: 17 साल 222 दिन
मैच : 59 विकेट : 136 औसत : 21मनिंदर सिंह बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाज़ी के लिए जाने जाते थे। जब उन्होंने साल 1982 में वनडे में ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ डेब्यू किया था तब उनकी उम्र महज़ 17 साल की थी। उन्हें बिशन सिंह बेदी का उत्तराधिकारी समझा जाता था। उनकी गेंदबाज़ी में काफ़ी विविधता देखे जाती थी। अगर वो एक ओवर फेंकते थे तो उसमें सभी गेंद अलग-अलग तरीके से फेंकी जाती थी। मनिंदर ने महज़ 59 वनडे मैच में 136 विकेट हासिल किए हैं। लेकिन निजी कारणों और तथाकथित अंदरूनी राजनीति की वजह से उनका अंतरराष्ट्रीय करियर ज़्यादा लंबा नहीं चल पाया और वक़्त से पहले उन्होंने संन्यास ले लिया।
#1 सचिन तेंदुलकर
उम्र : 16 साल 238 दिन मैच : 463 रन : 18,426 औसत : 44.83सचिन तेंदुलकर ने बल्लेबाज़ी के कई रिकॉर्ड्स अपने नाम किया है, लेकिन एक और रिकॉर्ड है जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। वो वनडे में डेब्यू करने वाले सबसे कम्र उम्र के खिलाड़ी बने थे। उन्होंने महज़ 16 साल की उम्र में अपने वनडे करियर की शुरुआत की थी। सचिन 1989 के पाकिस्तान दौरे के लिए टीम इंडिया में शामिल किए गए थे। वहां उन्हें वसीम अकरम, इमरान ख़ान और वक़ार यूनिस की घातक गेंदबाज़ी का सामना करने का मौका मिला। उन्होंने अपना पहला वनडे रन न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ बनाया था। उस मैच में उन्होंने 36 रन बनाए थे, लेकिन जिस तरह के स्ट्रोक्स उन्होंने खेले थे वो आज भी याद किए जाते हैं। उसके बाद जो हुआ वो एक इतिहास है। 463 वनडे में उन्होंने बल्लेबाज़ी के लगभग सारे रिकॉर्ड्स तोड़ दिए थे। 2011 के वर्ल्ड कप में खिताबी जीत ने उनके ख़्वाब को पूरा कर दिया। सचिन जैसा खिलाड़ी सदियों में एक पैदा लेता है।