स्पिन गेंदबाजी में महारत हासिल करना एक मुश्किल कला है। गेंद को स्पिन कराना उतना आसान नहीं है जितना लगता है, क्योंकि इसमें बेहतरीन कौशल की आवश्यकता होती है, जिसे सीखने में कई साल लग सकते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम में वर्षों से कुछ महान स्पिनरों का खेलना जारी रहा है। इन खिलाड़ियों ने कठिन समय में अपने हाथ उपर किये और टेस्ट क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस लेख में हम पिछले कुछ सालों में भारत के महानतम टेस्ट स्पिनरों पर नज़र डाल रहे है।
# 6 बी एस चंद्रशेखर
भागवत सुब्रमण्य चंद्रशेखर जिन्हें अक्सर चंद्र के रूप में जाना जाता है, वह एक शानदार लेग स्पिनर थे। छह साल की उम्र में वह पोलियो की बीमारी से ग्रसित हो गये और यद्यपि वह 10 वर्ष की आयु तक बहुत हद तक उससे उभर गये थे, फिर भी वह एक हाथ से सामान्य नही थे। हालाँकि चंद्रशेखर ने इस कमजोरी को कभी अपनी राह का रोड़ा नही बनने दिया और आगे चलकर वह भारत के महान स्पिनरों में से एक बन गए। वह उन कुछ एथलीटों में से एक है जिन्होंने अपनी विकलांगता को एक ताकत में बदल दिया है। लेग स्पिनर के पतले हाथ का मतलब था कि उन्हें अधिक लचीलापन मिल गया। उन्होंने सामन्य स्पिनरों की तुलना में ज्यादा गति से गेंदबाजी की और उनके पास अपने समय की सबसे घातक गुगली भी थी। 1971 में इंग्लैंड के खिलाफ चन्द्रशेखर का सबसे बेहतरीन स्पेल आया था। उन्होंने 38 रन देकर 6 विकेट लिये, जिसके दम पर भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड की मिट्टी पर अपना पहला टेस्ट जीता था। 2002 में विस्डेन ने इस प्रदर्शन को "सदी के सर्वश्रेष्ठ भारतीय गेंदबाजी प्रदर्शन" के रूप में नामित किया था। मैसूर के इस स्पिनर के पास भी खेल को अपने दम पर बदलने की क्षमता थी। इसका एक उदाहरण 1973 में ईडन गार्डंस में भारत बनाम इंग्लैंड का मुकाबला है। इस मैच में टेस्ट मैच जीतने के लिए मेहमानों के सामने 192 रन का लक्ष्य रखा गया था। कुछ शुरुआती झटकों के बाद, इंग्लिश बल्लेबाज बिना किसी रुकावट के लक्ष्य की ओर बढ़ते दिखे। चंद्रशेखर तब गेंदबाज़ी के लिये आये और उन्होंने तीन विकेट लेकर इंग्लैंड को 163 रनों पर रोक दिया। इस लेग स्पिनर ने 1979 में अपना आखिरी टेस्ट खेला और 58 मैचों में 29.74 की औसत से 242 विकेट लिए। जीतने वाले मैचों में उनके आंकड़े अभूतपूर्व है, जिनमें 19.27 के एक आश्चर्यजनक औसत से उन्होंने 14 जीते गये मैच में 98 विकेट हासिल किये।
# 5 ईएएस प्रसन्ना
ईरापल्ली अनन्त्रो श्रीनिवास प्रसन्ना दायें हाथ के ऑफ ब्रेक गेंदबाज थे। छोटी कद काठी के प्रसन्ना एक हिम्मती गेंदबाज़ थे। वह बेहद आक्रामक गेंदबाज थे। उनकी गेंदों में फ्लाइट और लूप उनकी आक्रामकता के भाग थे क्योंकि उन्हें कभी भी मार पड़ने का डर नही था और इन चालों के साथ उन्होंने कई बल्लेबाजों को मूर्ख बनाया था। वह सिर्फ उपमहाद्वीप में ही नही, बल्कि इसके बाहर भी एक महान गेंदबाज थे,और उनका प्रदर्शन असाधारण रहा। 1967 में, भारत ने न्यूजीलैंड का दौरा किया और वहाँ प्रसन्ना ने 24 विकेट लेते हुए वापसी की और उसी वर्ष भारत ने ऑस्ट्रेलिया दौरा किया जहाँ उन्होंने 25 विकेट लिये। प्रसन्ना ने सिर्फ 20 मैचों में 100 विकेट लिये थे। ऑकलैंड में 8/76 बनाम न्यूजीलैंड उनके करियर के सर्वश्रेष्ठ आंकड़े हैं और अब भी एक भारतीय गेंदबाज द्वारा विदेशों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हैं। यहां तक कि 37 वर्ष की आयु में भी ये ऑफ स्पिनर अपने रंग में रहा और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में उन्होंने एक पारी में 51 रन देकर 4 विकेट लिए। प्रसन्ना ने 1978 में अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला और 957 प्रथम श्रेणी के विकटों के साथ एक शानदार करियर खत्म किया।
# 4 बिशन सिंह बेदी
"स्पिन के सरदार" के रूप में जाने जाने वाले है, बिशन सिंह बेदी बिना किसी संदेह के भारत की ओर से खेलने वाले सबसे बेहतरीन बाएं हाथ के स्पिनरों में से एक हैं। उनका गेंदबाजी के दौरान एक सुंदर रन-अप था। वह आसानी से और धीरे से बिना कोई दौड़ लगाए और अपने हाथों को उपर ले जाते थे। यह प्रक्रिया पूरी तरह संतुलित थी और ख़ूबसूरत दिखती थी। अमृतसर का यह स्पिनर अपने करियर के दौरान कुछ असाधारण प्रदर्शन के लिये जाना गया। 1968 में ईडन गार्डंस में 7/98 के उनके करियर के सर्वश्रेष्ठ आंकड़े ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आए। बेदी ने तीन मैचों की श्रृंखला को 21 विकेट के आंकड़ों के साथ समाप्त किया था। बाएं हाथ के स्पिनर ने एक श्रृंखला में 25 विकेट लिए, जब इंग्लैंड ने 1972-73 में भारत का दौरा किया। वह विदेशों में भी अच्छे गेंदबाज थे। 1977 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया, तब उन्होंने 31 विकेट के साथ श्रृंखला खत्म की। बेदी ने अपना आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ 1979 में खेला। उन्होंने 1560 प्रथम श्रेणी विकेटों के साथ अपना करियर समाप्त किया था और अब भी प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाला भारतीय खिलाड़ी हैं।
# 3 हरभजन सिंह
दाएं हाथ का यह ऑफ ब्रेक गेंदबाज भारत का सबसे ज्यादा और दुनिया का दूसरा सबसे सफल ऑफ स्पिन गेंदबाज हैं। उन्होंने 417 विकेट लिए हैं जिसमें 25 बार पारी में पांच विकेट शामिल हैं। हरभजन एक पारंपरिक ऑफ स्पिनर नहीं है, वह गति और उछाल पर ज्यादा निर्भर करते हैं। वह बल्लेबाज को गेंद जल्दी डाल सकते हैं, जिससे उन्हें अपने शॉट्स खेलने में कठनाई होती है। 37 वर्षीय इस गेंदबाज़ के पास उनकी गेंदबाजी में एक 'दूसरा' नामक बेहतरीन अस्त्र भी शामिल है। जालंधर का यह स्पिनर 2001 की बॉर्डर गावस्कर सीरीज के दौरान सबकी नज़रों में आया, जब भज्जी को अनिल कुंबले के चोटिल होने के चलते मुख्य स्पिनर के रूप में चुना गया। उन्होंने अपने चयन को सही ठहराया, जब उन्होंने 17.03 के बेहतरीन औसत से 32 विकेट लेकर तीन मैचों की सीरीज समाप्त की। इस श्रृंखला के दौरान वह टेस्ट क्रिकेट में हैट्रिक बनाने वाले पहले भारतीय भी बने। जब भारत ने 2007-08 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया, तब उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पॉन्टिंग को लगातार तीन बार आउट किया था, जिससे ऑफ स्पिनर के खिलाफ पॉन्टिंग की परेशानियों की बातें होने लगी थी। 2013 के बाद से हरभजन राष्ट्रीय टीम से अंदर-बाहर होते रहे हैं। उनकी बढ़ती उम्र के साथ, अब संन्यास की संभावना ज्यादा करीब लग रही है। इसके बावजूद, भज्जी भारतीय क्रिकेट में महान खिलाड़ी रहे हैं और उन्होंने स्पिन गेंदबाजों के लिये बड़े मापदंडों की स्थापना काम किया है।
# 2 रविचंद्रन अश्विन
इस ऑफ स्पिनर ने 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला और मैच की दूसरी पारी में 6/47 के आंकड़े दर्ज किए। जब न्यूजीलैंड ने 2012 में भारत का दौरा किया, तब तमिलनाडु के गेंदबाज ने 13 रनों की शानदार औसत से सिर्फ दो मैचों में 18 विकेट लिए थे। तब से वह आगे ही बढ़ते रहे हैं। 6 '2' लंबे होने का मतलब है कि अश्विन को प्राकृतिक उछाल मिलता है। वह गेंद को फ्लाइट देने से डरते नहीं हैं और यह उनकी सफलता में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। बीच में एक समय था, जब इस ऑफ स्पिनर ने बहुत ज्यादा प्रयोग करना शुरू कर दिया। हालांकि, पिछले कुछ सालों से उनकी विविधताएं ही रही हैं जिन्होंने उन्हें सफलता दिलायी है। 2012-13 की बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में अश्विन ने 29 विकेट लेकर सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ के रूप में इस श्रृंखला को समाप्त किया। उन्होंने 2014-15 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया और वह तीन मैचों में 12 विकेट लेने में सफल रहे। जब भारत ने कुमार संगकारा की विदाई श्रृंखला के लिए श्रीलंका का दौरा किया, तब तमिलनाडु के इस स्पिनर ने 21 विकेट लेकर सर्वाधिक विकेट लेने वाले खिलाड़ी के रूप में श्रृंखला समाप्त की। उन्होंने तीन मैचों की श्रृंखला में संगकारा को 4 बार आउट किया था। अश्विन को 2016 में "आईसीसी क्रिकेटर ऑफ द ईयर" और "आईसीसी टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर" से नामित किया गया। उन्होंने डेनिस लिली को पछाड़ते हुए 300 टेस्ट विकेटों तक पहुंचने वाले सबसे तेज़ खिलाड़ी बनने का भी वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। 31 वर्ष की आयु में अर्जुन पुरस्कार विजेता, आश्विन ने 26 बार पारी में पांच विकेट लिये हैं और तय है कि आने वाले समय में इस आंकड़े में वृद्धि ही होगी। फिलहाल, वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों में शामिल हैं।
# 1 अनिल कुंबले
बेंगलुरू का यह लेग स्पिनर बिना किसी संदेह के भारत का सबसे महान स्पिनर रहा है। वह कभी भी किताबों में परिभाषित शैली के लेग स्पिनर नहीं थे। कुंबले अपनी गेंदबाजी के हर पहलू में अद्वितीय थे। उनकी पकड़, एक्शन, गति और वेरिएशन, एक सामन्य लेग स्पिनर की तुलना में काफी अलग थे। 47 वर्षीय इस खिलाड़ी के पास एक तेज रनअप और एक हाई-आर्म एक्शन था। इन दो विशेषताओं का मतलब है कि उन्होंने गेंद को तेज गति से फेंका और उस गति के साथ उनकी सटीकता ने उन्हें एक खतरनाक गेंदबाज बनाया। कुंबले के टॉप-स्पिनर, फ्लिपर और गूगली दुनिया में सबसे अच्छे थे। लेग स्पिनर ने 1990 में भारत के लिए क्रिकेट करियर की शुरुआत की और सिर्फ 10 मैचों में 50 विकेट और 21 में 100 विकेट ले लिये। 1996 में उन्हें पांच "विस्डेन क्रिकेटर ऑफ द ईयर" में से एक चुना गया। उनके करियर के सबसे बेहतरीन क्षणों में से एक पाकिस्तान के खिलाफ 1999 में फिरोजशाह कोटला में आया, जब उन्होंने दूसरी पारी में सभी दस विकेट ले लिए थे। 2006 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सबीना पार्क में कुंबले का 6/78 का प्रदर्शन भी एक प्रेरणादायक प्रदर्शन था। उन्होंने 619 टेस्ट विकेट के साथ 2008 में संन्यास लिया और वह भारत के सर्वोच्च और दुनिया के तीसरे सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हैं। अपने करियर के दौरान कुंबले ने साहस और कड़ी मेहनत के कुछ बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किए। अनिल कुबंले एक पूर्ण चैंपियन थे और यह शायद ही संभव हो कि भारत कभी उनके जैसा दूसरा लेग स्पिनर प्राप्त कर सके। लेखक: अमन तोंगिया अनुवादक: राहुल पांडे