“सबसे खूबसूरत अनुभव हमारे लिये जादू ही हो सकता है।”-अल्बर्ट आइंस्टीन क्रिकेट में हमने कई मौकों पर जादुई प्रदर्शन देखें हैं। जादुई गेंद, क्रिकेट में पहली बार कुछ ऐसा शॉट जो सभी को दिवाना बना दे, क्रिकेट हमेशा अनिश्चिताओं से भरा रहा है। क्रिकेट में स्पिन गेंदबाज़ी को एक कला माना जाता है, इसके आलावा ये क्रिकेट के जानकारों के लिए एक रहस्य की तरह बना है। बीते दशकों में कई दिग्गज स्पिन गेंदबाज़ हुए हैं। जिन्होंने अपने खेल से सबको हैरत में दाल दिया है। जबकि उनका खेल गैरपारम्परिक रहा है। कई स्पिनरों ने अपने खेल से विश्व क्रिकेट में तूफ़ान मचा दिया। आइये ऐसे ही 9 रहस्यमयी स्पिनरों के बारे में आपको बताते हैं, जिन्होंने अपने समय में कमाल का खेल दिखाया: नोट: दूसरा के जनक कहे जाने वाले जैक पॉटर को हम इस लिस्ट में इसलिए नहीं शामिल कर रहे हैं। क्योंकि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक भी मैच नहीं खेला था। #1 बर्नार्ड बोसनकेट बर्नार्ड को माना जाता है कि उन्होंने ही गूगली का इजाद किया था। उन्होंने अपनी इन्वेंशन के बारे में लिखा है, “1897 में मैं कहीं टेनिस बॉल से ‘ट्विस्ट-टवोस्टी’ मैच खेला था। जिसमें गेंद को विपक्षी की तरफ ऐसे फेंकना था कि वह उसे कैच न कर सके। कुछ देर बाद मैंने ऐसी गेंद फेंकना सीख लिया जो मेरे हिसाब से सही पड़ने लगी थी। उसके बाद मैंने वही समान गेंद अलग दिशा में फेंकी थी! मैंने ‘स्टम्प क्रिकेट’ में यही चीज अपनाई और उसके बाद मैंने इस चीज को क्रिकेट बॉल में भी अज़माना शुरू किया।” जुलाई 1900 में लीस्टरशायर की तरफ से खेलते हुए मिडिलसेक्स के खिलाफ बर्नार्ड की फेंकी गेंद ये विशेष गेंद जो चार बाउंस हुई। तभी इसे लोगों ने पहली बार देखा। उन्होंने खुद इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने 1902 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लॉर्ड्स में पहली बार ये गेंद डाली जो उनके लिए अबूझ पहेली बन गयी थी। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में मार्च 1903 में वहां के महान बल्लेबाज़ विक्टर ट्रम्पर को पहली गूगली फेंकी थी। उन्होंने उन्हें दो गेंद लेग ब्रेक फेंकी लेकिन अचानक उनकी अगली गेंद ने उनका स्टम्प बिखेर दिया, जो रॉंग वन थी। बर्नार्ड एक अच्छे आलराउंडर थे, जिन्होंने इंग्लैंड के लिए 7 टेस्ट मैचों में 24.16 के औसत से 25 विकेट लिए थे। इसके आलावा उन्होंने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट के करियर में कई यादगार प्रदर्शन किए। उन्होंने लगातार 3 मैचों में पहले यॉर्कशायर और नाटिंघमशायर के खिलाफ 6 विकेट और ससेक्स के खिलाफ 7 विकेट लिए थे। 6 फीट लम्बे बर्नार्ड ने अपनी गेंदों के लिए उस समय विश्वक्रिकेट में चर्चा का विषय बन गये थे। जो अपनी पीढ़ी के बेहतरीन लेग स्पिनर साबित हुए। #2 एलिस अचोंग वेस्टइंडीज के गेंदबाज़ ने बाएं हाथ से लेग स्पिन गेंदबाज़ी का अविष्कार किया था, जो बाद में चाइनामैन गेंदबाज़ के नाम से मशहूर हो गया था। आमतौर पर एलिस बाएं हाथ से स्पिन गेंदबाज़ी करते थे, लेकिन अचानक बल्लेबाज़ पर उनकी कलाई की स्पिन एक्शन वाली गेंदे खतरनाक साबित होती थीं। अचोंग ने वेस्टइंडीज की तरफ टेस्ट क्रिकेट भी खेला था और 6 मैचों में 47.25 के औसत से मात्र 8 विकेट लिए थे। अचोंग पहले चाइना मूल के खिलाड़ी थे। इसलिए उनकी उस गेंद का नाम 'चाइनामैन' पड़ गया। #3 जैक इवरसन अपने स्कूली दिनों में जैक तेज गेंदबाज़ हुआ करते थे। लेकिन उसके बाद वह 12 साल तक क्रिकेट से दूर रहे और बतौर स्पिन गेंदबाज़ उन्होंने वापसी की। उनका एक्शन अनोखा था वह गेंद को अंगूठे और बीच वाली ऊँगली में दबाकर गेंद फेंकते थे। वह ऑफ ब्रेक, लेग ब्रेक और गूगली बिना एक्शन बदले ही किया करते थे। 1949-50 में उन्होंने विक्टोरिया के लिए डब्लूए ब्राउन के खिलाफ न्यूज़ीलैंड में 16.12 के औसत से 46 विकेट लेकर चर्चा का विषय बन गये थे। उन्होंने अगले ऑस्ट्रेलियाई सीजन में 75 विकेट लिए। वह अपने देश के लिए एशेज में इंग्लैंड के खिलाफ खेलने के लिए चुने गये। एशेज में उन्होंने 21 विकेट लिए जहाँ इंग्लैंड के बल्लेबाज़ उनके सामने बौने साबित हुए। उनका औसत इस दौरान 15.73 का था। जबकि एडिलेड टेस्ट में वह एंकल इंजरी के चलते नहीं खेल पाए थे। उसके बाद वाले दो सीजन में वह एक-एक मैच ही खेल पाए थे। तब उन्होंने इस खेल को अलविदा कह दिया और लोग उन्हें भूल गये। #4 क्लार्री ग्रिम्मेट अपने समय के सबसे बेहतरीन स्पिनर ग्रिम्मेट का मुख्य हथियार उनकी फ्लिपर थी। वह इस गेंद को बहुत सटीक लाइन और लेंथ पर फेंकते थे। जो इस लेग स्पिनर के करियर को लम्बे समय तक चलाने में अहम रहा। इंग्लैंड के खिलाफ 1930 के सीरीज में उन्होंने 29 विकेट लेकर रिकॉर्ड बनाया था। उनकी गेंदबाज़ बल्लेबाज़ ब्रेडमैन की तरह ऑस्ट्रेलिया के लिए अहम थी। ग्रिम्मेट ने 37 टेस्ट मैचों में 24.21 के औसत से 216 विकेट लिए थे। ग्रिम्मेट ने 248 प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 22.28 के औसत से 1424 विकेट लिए थे। #5 जॉन ग्लीसन जैक की तरह जॉन ग्लीसन एक और ऐसे ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर थे, जो गेंद को अजीब ढंग से पकड़ते थे। हालाँकि उन्होंने अपने करियर से रिकी बेनोय जैसे लोगों को प्रभावित किया। ग्लीसन ने खुद को इवरसन से प्रभावित बताया, “मैने पहली बार स्पोर्टिंग मैगजीन में उनकी तस्वीर देखी थी। जिसके बाद मैंने टेनिस बॉल से उसी अंदाज ग्रिप बनाकर गेंद को पकड़ना शुरू किया था। मैं लेग स्पिन करता था जबकि मैं ऑफ़ स्पिनर की तरह लगता था। मेरी गेंद रोंग वन हो जाया करती थी।” ग्लीसन ने भारत के खिलाफ 1967 में अपना डेब्यू किया था। हालाँकि उनका करियर लम्बे समय तक नहीं चल पाया और उन्हें लोग जल्द ही भांप गये। उन्होंने 95.2 के स्ट्राइक रेट से 29 टेस्ट में 93 विकेट लेने में सफल रहे। #6 सोनी रामाधीन सोनी रामाधीन पहले ईस्ट इंडियन थे जो वेस्टइंडीज की टीम में शमिल किए गये थे। उन्हें 1950 के इंग्लैंड दौरे पर जाने वाली टीम में शामिल किया गया था। रामाधीन ने बल्लेबाजों को दोनों तरफ स्पिन करने की क्षमता से परेशान किया था। रामाधीन ने लॉर्ड्स में अपनी दोनों तरफ घुमती गेंदों का जलवा दिखाते हुए 152 रन देकर 11 विकेट लिए और अपनी टीम को लॉर्ड्स मैदान पर पहली जीत दिलाई। उन्होंने वेस्टइंडीज को कई मैच में जीत दिलाई। वह गेंद को बीच की ऊँगली से सीम पर पकड़ने के बजाय उसे नीचे रखते थे। उन्होंने 28.98 के औसत से 43 मैचों में 158 विकेट लिए थे। रामाधीन की चमक तब फीकी हो गयी जब अंग्रेज बल्लेबाज़ पीटर मे और कोलिन कोडरे ने चौथे विकेट के लिए 411 रन की साझेदारी निभाई। ये मैच एजबेस्टन में खेला गया था। मे ने उनके खिलाफ आक्रामक बल्लेबाज़ी की तो कोडरे ने उनकी बाकी कोशिश नाकाम कर दी। इस खराब प्रदर्शन से वह उबर नहीं पाए और वह काफी रक्षात्मक हो गये। हालाँकि उनका नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज है। #7 भगवत चन्द्रशेखर भारतीय क्रिकेट में चंद्रशेखर का नाम काफी बड़ा है। वह बेहतरीन लेग स्पिनर हुआ करते थे। भारत के लिए विदेशों में अपनी मैच विनिंग काबिलियत दिखाते हुए उन्होंने 5 टेस्ट में 42 विकेट लिए थे। एक बार उन्होंने कहा था कि उन्हें खुद नहीं पता होता था कि गेंद के साथ वह क्या करते थे। उनकी सटीक गुगली, टॉप स्पिन और लेग ब्रेक जो तकरीबन मध्यम गति के तेज गेंदबाज़ की तरह होती थी। 1971 में भारत को पहली बार इंग्लैंड में सीरीज में जीत हासिल हुई थी, जिसमें चन्द्र ने 38 रन देकर 6 विकेट लिए थे। और इसके आलावा उन्होंने में मेलबर्न में भारत की जीत में अहम योगदान दिया था और 104 रन देकर 12 विकेट लिए थे। विस्फोटक बल्लेबाज़ विवियन रिचर्ड्स ने कहा था, “ चन्द्र के सामने उन्हें लम्बे समय तक टिककर खेलना पड़ता था। वह मेरे लिए सबसे कठिन गेंदबाज़ था, जिसका सामना मैंने किया था। मैं उनके खिलाफ कभी सहज महसूस नहीं कर पाया था। ये उनकी महानता थी, उनकी काबिलियत ही थी कि वह विपक्षी बल्लेबाजों को गलती करने पर मजबूर कर देते थे। वह एक मात्र ऐसे गेंदबाज़ थे जिनका मैं बहुत ही सम्मान करता था। उन्हें दैवीय क्षमता हासिल थी।” #8 अजंता मेंडिस ये बिलकुल एक कहानी की तरह था, जब एक गेंदबाज़ अपनी गति असमान परिवर्तन करने में कामयाब रहता था। उन्हें सिर्फ वीरेन्द्र सहवाग ही अपनी विस्फोटक बल्लेबाज़ी से कंट्रोल करने में कामयाब हो सकते थे। सहवाग का जिक्र यहाँ इसलिए हो रहा है क्योंकि एक वह ही थे जिन्होंने इस श्रीलंकाई स्पिनर पर शॉट लगाने में कामयाब रहे, जबकि वह शुरू में काफी अबूझ पहेली की तरह थे। वह एक अदभुत स्पिनर थे जो अपनी उंगलियों से गेंद को फ्लिक करते थे। जैक ने अभ्यास करके नई तरह से गेंद फेंकना इजाद किया था। लेकिन जॉन और मेंडिस ने अपनी खतरनाक कैरम बॉल से दुनिया भर को हैरान कर दिया था। साल 2008 के एशिया कप के फाइनल में मेंडिस ने भारतीय बल्लेबाज़ी को तहस नहस कर दिया था। और अपनी टीम को यादगार जीत दिलाया था। मेंडिस ने टेस्ट मैच में भी जोरदार शुरुआत की थी। उन्होंने अपने पहले टेस्ट में 8 विकेट लिए थे। जबकि सीरीज में 26 विकेट झटके थे। उन्होंने पदार्पण मैच में एलेक बेड्सर से पारी में दो और सीरीज में 3 विकेट ज्यादा लिए थे। हालांकि उनका जादू ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया और वह मुरलीधरन के संन्यास के बाद मजबूत विकल्प नहीं बन पाए। टेस्ट टीम से उनकी छुट्टी हो गयी और बहुत कम ही मौके उन्हें छोटे प्रारूप में भी मिल रहे हैं। मेंडिस के नाम टी-20 में सबसे अच्छा व्यक्तिगत प्रदर्शन रहा है। लेकिन वह अपनी जगह टीम में बनाने में सफल नहीं रह पाए और श्रीलंकाई टीम से बाहर चल रहे हैं। एक समय वह दुनिया के बेहतरीन उभरते हुए सितारे माने जा रहे थे। मेंडिस इस वक्त घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करके टीम में वापसी करने की कोशिश में लगे हुए हैं। #9 सुनील नारेन सुनील नारेन ने तब दुनिया को आकर्षित किया था जब उन्होंने अपनी जादुई गेंदबाज़ी से ट्रायल मैच में सभी 10 विकेट ले लिए थे। उन्हें विंडीज के चयनकर्ताओं ने त्रिनिदाद और टोबैगो की टीम से तुरंत बुला लिया था। नारेन को वेस्टइंडीज की तरफ से अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच 2011 में खेलने को मिला था और उसके बाद उन्होंने साल 2012 में वेस्टइंडीज को टी-20 विश्वकप में ख़िताब दिलाने में अहम भूमिका अदा की। वह कैरम बॉल, नकल बॉल और स्किडर का अच्छा इस्तेमाल करते हैं। साल 2012 और 2014 में आईपीएल में केकेआर की टीम को आईपीएल का चैंपियन बनाने में नारेन ने अहम भूमिका निभाई थी। हालाँकि वह टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम साबित हुए थे। लेकिन वह छोटे प्रारूप में खेलते रहे हैं। नारेन चैंपियंस लीग टी-20 2014 में संदिग्ध गेंदबाज़ी एक्शन के लिए विवादों में भी रहे जहाँ उन्हें बैन भी झेलना पड़ा था। उसके बाद उन्हें विंडीज टीम से अक्टूबर में हुए वनडे और टी-20 सीरीज से बाहर कर दिया गया था। जो उनके लिए बुरी खबर की तरह था। इसके बाद 2015 की विश्वकप टीम से इस गेंदबाज़ ने अपनी गेंदबाज़ी एक्शन को सुधारने के लिए नाम वापस ले लिया था। उसके बाद वह जब नवम्बर में वापस आये तो उन्हें दोबारा खराब एक्शन का आरोप लगा था। उसके बाद उन्होंने अपनी गेंदबाज़ी एक्शन में सुधार करते हुए आईपीएल 2016 में वापसी की और अच्छा प्रदर्शन भी किया। जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय टीम में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के साथ त्रिकोणीय सीरीज के लिए दोबारा चुना गया। उन्होंने वापसी करते हुए दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 6 विकेट लिया और अपनी टीम को 4 विकेट की जीत दिलाई। ऐसे में कहीं दोबारा उनके एक्शन पर सवाल तो नहीं उठेगा ये सवाल अब फिर तैर रहा है। लेखक: पल्लब चटर्जी, अनुवादक: मनोज तिवारी