भारत और इंग्लैंड की ऑल टाइम टेस्ट-XI : एक संयुक्त सूची

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1480- यदि भारत और इंग्लैंड के द्वारा आज तक खेले गए सभी टेस्ट मैचों को साथ में गिना जाए तो ये संख्या आती है । अनगिनत पीढ़ियों का सफ़र करते हुए, इन दोनों देशों के बीच सफ़ेद पोशाकों में खेला गया यह खेल अनगिनत यादों से समृद्ध है । अब भारत और इंग्लैंड के बीच एक 5-टेस्ट की सीरीज होने वाली है जो क्रिकेट प्रेमियों के लिए जैसे एक सपने के सच होने जैसा है। आइये हम कोशिश करते हैं भारत और इंग्लैंड के आजतक के सभी खिलाड़ियों में से कुछ रत्न चुन कर एक ड्रीम टीम बनाने की ! चूँकि इंग्लैंड क्रिकेट 1877 से टेस्ट मैच खेल रहा है, और भारत ने अपना मेडेन टेस्ट 1932 में खेला था, इसलिए एक संतुलित आंकलन के साथ ड्रीम-टीम चुनने के लिए हम इस सूची में 1877 से 1932 के बीच खेले इंग्लैंड के श्रेष्ठ खिलाड़ियों को इस सूची में शामिल नहीं कर रहे हैं ।


#1 सुनील गावस्कर

प्रसिद्द कमेंटेटर हर्षा भोगले ने कभी सुनील गावस्कर के बारे में कहा था- "एक देश जिसमें आत्मविश्वास की भारी कमी थी, वहां जैसे ये कोई देवदूत बन कर आया था"। जिन्होंने गावस्कर का खेल देखा होगा, वे मुस्कुराकर इस बात का समर्थन करेंगे। छोटा कद होने के बावजूद, जब खतरनाक गेंदबाजों के सामने भारत का बल्लेबाजी क्रम डरा, सहमा सा दिखता था, गावस्कर मैदान पर किसी बादशाह की तरह तठस्थ खड़े नज़र आते थे। स्विंग हो, सीम हो या स्पिन हो, गावस्कर को किसी भी सरफेस पर, किसी भी टीम के खिलाफ झुकना गवारा नहीं था । वे टेस्ट क्रिकेट में 10,000 रनों का आंकड़ा छूने वाले पहले खिलाड़ी थे और हमेशा अपने साथी खिलाड़ियों से भूरि-भूरि प्रशंसा पाते थे, जो उन दिनों कोई आम बात नहीं थी। इसी बात से उनके महान कद का अंदाजा लगाया जा सकता है। #2 सर लेन हटन (कप्तान)

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इंग्लैंड की पिचों पर क्रिकेट खेलना कितना मुश्किल है, ये बात किसी से छुपी नहीं है और शायद यही वजह है कि इंग्लैंड ने किसी भी अन्य देश से ज्यादा बेहतर ओपनर्स पैदा किये हैं। द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व होते रहे क्रिकेट की बात की जाए तो, सर लेनार्ड हटन आराम से उन दिनों के खिलाड़ियों में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा कर सकते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, ये दायें हाथ का बल्लेबाज बारिश से भीगी हुई पिचों पर भी खतरनाक खेल दिखाने में समर्थ था। सर लेन के नाम 79 मैचों में 56.67 की औसत से 6971 रन हैं, जिसमें 19 शतक शामिल हैं। जहां तक उनके कप्तान बनने का सवाल है, उन्होंने जिस चतुराई से युवा फ्रेड ट्रूमैन को संभाला था उसे याद करने के बाद, उनके कप्तान बनने को लेकर कोई विवाद रह ही नहीं जाता। #3 राहुल द्रविड़ (उप-कप्तान)

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किसी भी तरह के विवादों और सुर्ख़ियों से दूर रह कर, इस खिलाड़ी ने बल्लेबाज़ के रूप में अपना रुतबा अपने व्यक्तित्व के दम पर स्थापित किया। राहुल द्रविड़ दृढ़ निश्चयी थे। 90 के दशक के अंत से 21वीं सदी के प्रारम्भिक दशक तक, इस आत्मविश्वास से पूर्ण, तकनीकी रूप से अद्वितीय बल्लेबाज का कोई सानी न था। शानदार बैक-लिफ्ट, बेहतरीन फॉरवर्ड प्रेस और सही वक्त पर सही फैसले लेने की उनकी काबिलियत ने उन्हें भारत का सबसे भरोसेमंद खिलाड़ी बनाया। द्रविड़ की नेतृव क्षमता की कभी बात नहीं होती पर कई बार इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ उनके नेतृत्व में कितनी ही टेस्ट -सीरीज जीत के आंकड़े उनके इस हुनर की भी दाद देते हैं। #4 सचिन तेंदुलकर

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90 के दशक में, तेंदुलकर का भारतीय क्रिकेट पर क्या असर था, ये दूसरी विकेट गिरते ही अंदाजा लगाया जा सकता था। वे संकटमोचन थे। जैसे आसमान की और देख सुरक्षा कवच सा बुनते हों: जब वे मैदान पर होते थे, संभावनाएं और आशाएं जैसे कई गुना बढ जातीं थीं। अटैक और डिफेंस का सही संतुलन बना कर खेलते जाना ही तेंदुलकर के महान हो जाने का, उन मकामों तक पहुंचने का, जहाँ पहुचने का कोई सपना तक न देखता होगा, राज़ होगा शायद! इंग्लैंड ने भी उनका जादुई खेल देखा है जब उन्होंने ओल्ड ट्रेफर्ड में अपना पहला शतक मारा था। #5 केन बैरिन्ग्टन

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हालांकि, थोडा सा और आक्रामक बल्लेबाज़ खोजा सा सकता था यहाँ मिडिल-आर्डर के लिए पर 50 और 60 के दशक में केन बैरिन्ग्टन ने जिस बेरहमी से रन बटोरे थे, इंग्लैंड के लिए तो वे वरदान ही थे। उन्होंने 20 शतक और 35 अर्धशतकों की मदद से 58.67 की औसत से 82 मैचों में 6806 रन बनाए थे। जिन बल्लेबाजों ने टेस्ट में कम से कम 5000 रन बनाएं हैं उनमें सर डॉन ब्रैडमैन का औसत 99.94 सबसे ज्यादा है और उनके बाद Ken 58.67 के औसत के साथ दूसरे स्थान पर काबिज हैं, यही उनकी विस्मयकारी निरंतरता का सबसे बेहतरीन उदाहरण है । #6 सर इयान बॉथम

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जिन दिनों वे अपने करियर के चरम पर थे, उन दिनों मीडिया और दर्शकों के बीच वे सबसे लोकप्रिय थे। बल्ले और गेंद दोनों से वो खेल की दिशा बदलने का माद्दा रखते थे। 1981 हेडिंग्ले टेस्ट में उन्होंने दिखा दिया था कि मुश्किल क्षणों में वे खेल का स्तर बढाने की क्षमता रखते हैं। आंकड़े उनके लिए महत्व नहीं रखते थे, बॉथम का स्टाइल था प्रभावशाली खेल। मैदान पर उनकी भव्य उपस्थिति और प्रतिष्ठा के दम पर वे अपने साथी खिलाड़ियों के बीच ज्यादा लोकप्रिय थे, आंकड़ों के लिए कम। सर इयान बॉथम का रूतबा बोलता था। #7 एलन नॉट (विकेटकीपर)

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ये उन कुछेक विकेट कीपरों में से एक थे जो आपके काम को, जितना वो होता नहीं था, उससे कहीं ज्यादा आसान दिखाते थे। स्टंप्स के पीछे तो वे जबरदस्त थे ही, स्टंप्स के आगे भी एलन नॉट ने अपना सिक्का जमाया है। निचले क्रम का एक महत्वपूर्ण बल्लेबाज़, जो किसी भी तरह की परिस्थिति में अपनी टीम को संभालने का गुण रखता था। मैदान के अन्दर और बाहर, दोनों जगह, एलन नॉट जेंटलमैन थे। उन्होंने उन दिनों, जब विकेटकीपर से रन मिल जाना बोनस माना जाता था, अपनी समझदार बल्लेबाजी से विकेटकीपर -बल्लेबाज़ के रूप में एक आदर्श स्थापित किया था। #8 कपिल देव

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कपिल देव के आने से पहले, भारत के लिए बड़ी परेशानी की बात ये रहती थी की आखिर स्पिनर्स को गेंद थमाने का वक़्त आये उससे पहले, नयी गेंद से शुरुवात कौन करेगा? कपिल देव के टीम में आते ही जैसे कोई नयी उमंग आ गयी। एक तेज़ गेंदबाज़, लम्बा रन-अप लेकर आता है और गेंद डालता है, गेंद कीपर के ग्लव्स तक पहुँचती है तो उस वक़्त जैसे ये बड़े अचम्भे की सी बात थी। किसी अचरज की बात नहीं है कि इस 'हरियाणा हरिकेन' को सन 2002 में उन्हें सदी का सबसे बेहतरीन भारतीय क्रिकेटर उपाधि से नवाज़ा गया वो भी तब जब इस उपाधि के लिए उनके साथ गावस्कर और तेंदुलकर जैसे दिग्गजों का नाम था। बल्ले से भी बड़ी सादगी से खेलते हुए वो गेम को पलट सकने का हुनर रखते थे। भारतीय क्रिकेट पर उनका कुछ ऐसा असर रहा कि आज उनके रिटायरमेंट के 22 साल बाद भी उनकी जगह लेने वाला कोई क्रिकेटर पैदा नहीं हुआ। #9 अनिल कुंबले

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जब कुंबले ने अपने करियर की शुरुवात की थी तब लोगों ने ऐसा सोचा नहीं था कि वे भारतीय क्रिकेट की किस्मत बदलने का हुनर रखते हैं। क्लासिकल लेग -स्पिनर्स की तरह, न तो वो बल्लेबाजों को फ्लाइट से बीट करते थे, न ही उन्हें अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आने के लिए उकसाते थे। वे खतरनाक लेंग्थ से बॉल स्वूप करवाकर बल्लेबाजों की बोलती बंद कर देते। कुंबले अपने करियर के दौरान गति परिवर्तन करते रहे और अपनी गेंद से जादू दिखाते हुए भारत की कई बड़ी जीतों के नायक रहे। #10 फ्रेड ट्रूमैन

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‘फिएरी फ्रेड’ ने बहुत वक़्त नहीं लिया ये साबित करने में कि वे विरोधियों के लिए कितने घातक साबित हो सकते हैं। अपने डेब्यू टेस्ट में इस खिलाड़ी ने कहर बरपाया और भारतीय बैटिंग लाइन-अप पर उनके घरेलु मैदान पर 0/4 से ध्वस्त कर दिया। वो पहला ऐसा गेंदबाज था जिसने 300 टेस्ट विकेट का आंकड़ा छुआ और ऐसा उसने 21.57 की औसत से किया। फील्ड के बाहर भी, फ्रेड, जो मन आये ज्यों का त्यों कह देने के अपने दिलचस्प अंदाज़ के कारण हमेशा लोकप्रिय रहे। #11 डेरेक अंडरवुड

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'डेडली' उपनाम से लोकप्रिय, डेरेक, पेस में अप्रत्याशित बदलाव कर बल्लेबाजों को चौकाने के लिए मशहूर थे। 70 के दशक में अंडरवुड शायद सबसे घातक स्पिनर माने जाते थे। चाहें कोई भी बल्लेबाज़ हो, स्पिन खेलने में कितना भी माहिर हो, डेरेक उनपे हमेशा भारी पड़ते। भारत के खिलाफ अगर उनका रिकॉर्ड देखें तो, 26.51 की औसत से 16 टेस्ट मैचों में 54 विकेट। जहाँ परिस्थितियां अनुकूल होतीं थीं, वहां वो अपने बेहतरीन टर्न के साथ चौंकाया करते थे, प्रतिकूल परिस्थियों में भी अपनी सटीक गेंदबाजी के दम पर विकेट्स निकालने में कामयाब होते थे।