भारतीय टीम के अनुभवी तेज गेंदबाज आशीष नेहरा ने कहा कि उनके क्रिकेट करियर का सबसे बड़ा दुःख 2009 में टेस्ट क्रिकेट खेलने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करना रहा, जब कोच गैरी कर्स्टन ने उन्हें टेस्ट करियर को पुनर्जीवित करने का मौका दिया था। नेहरा ने कहा, 'जब मैं अपने करियर में पीछे मुड़कर देखता हूं तो एक दुःख सबसे अधिक होता है। 2013 में जब मैंने 6 सप्ताह में 6 रणजी मैच खेले, तब मुझे एहसास हुआ कि गैरी द्वारा दिए टेस्ट मैच खेलने के प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए था। मैं करीब चार वर्ष तक टेस्ट क्रिकेट खेल सकता था और मेरे खाते में 30-35 मैच अधिक होते। मगर यही जिंदगी है।' भारतीय क्रिकेट की बात की जाए तो दिल्ली के गेंदबाज ने अपनी ख्याति बनाई है। उन्होंने 2015 के अंत में वापसी की और तब से भारतीय टी20 टीम के नियमित सदस्य हैं। नेहरा की उम्र अब 40 के करीब पहुंच चुकी है। इसके बावजूद वह अपने पूरे अनुभव का फायदा उठाकर भारतीय टीम को फायदा पहुंचाना चाहते हैं। भले ही उनकी गति में कमी आई हो, तब भी नेहरा का मानना है कि उनकी गति 120-125 से कम नहीं गई और वह हमेशा तेज गेंदबाजी करना चाहते हैं। यह भी पढ़ें : चैंपियंस ट्रॉफी में खेलना पसंद करूंगा : आशीष नेहरा नेहरा का मानना है कि इंग्लैंड के खिलाफ हाल ही में संपन्न सीरीज में उन्होंने 140 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से गेंदबाजी की और स्विंग भी हासिल की, जिसकी मदद से वो विकेट लेने में कामयाब हुए। सदा मुस्कुराते रहने वाले नेहरा को स्वीकार करने में जरा भी झिझक नहीं हुई कि 2019 विश्व कप में खेलना उनके लिए बहुत दूर का सपना है और उनकी उम्र इसमें खेलने की इजाजत नहीं देगी। भारतीय टीम में वापसी के बाद बाएं हाथ के तेज गेंदबाज पहले एमएस धोनी और अब विराट कोहली के प्रमुख हथियार बने। उन्होंने 2015 में वापसी के बाद से 21 विकेट चटकाए। इसके साथ ही उन्होंने आगामी चैंपियंस ट्रॉफी में वापसी की भी उम्मीद जताई। नेहरा ने 2011 विश्व कप के सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की तरफ से आखिरी वन-डे मैच खेला था। चैंपियंस ट्रॉफी इस वर्ष इंग्लैंड में होना है और नेहरा की स्विंग भारतीय टीम के लिए वरदान साबित हो सकती है।