2017 चैंपियंस ट्रॉफी एडिशन के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और एक बार फिर बाएं हाथ के बल्लेबाज शिखर धवन अपने परिचित परिवेश इंग्लैंड और वेल्स में लौट रहे हैं, इस अवसर के लिए वो काफी आभारी होंगे। धवन का करियर कई मायनों में एक पहेली है। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कमजोर परिचय के बावजूद उन्होंने खुद का व्यक्तित्व मजबूती के साथ खड़ा किया। 2013 में वो रैंकिंग में दूसरे नम्बर पर काबिज हुए। टेस्ट डेब्यू मैच में जड़े शतक के बाद इस दिल्ली के बल्लेबाजी से काफी उम्मीदें जग गई थी। 2013 में हुई चैंपियंस ट्रॉफी में शिखर धवन ने विस्फोटक अंदाज में मैदान पर अपनी बल्लेबाजी का कहर बरपाया था, जिसके बाद हर कोई शिखर धवन के बारे में ही चर्चा कर रहा था। पांच मैचों में 90.75 की औसत के साथ 363 रन बनाने वाले शिखर धवन का स्ट्राइक रेट 101.39 था और इस दौरान उन्होंने 2 शतक और एक अर्धशतक भी जड़ा था। अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट भी चुना गया था और भारत ने 2013 चैंपियंस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया था। चार साल बाद, एक बार फिर वो उसी कहानी को रचने के इरादे से पहुंचे हैं। करीब 31 वर्षीय धवन का चयन ओपनिंग स्लॉट के लिए होना तय ही था। लेकिन बजाए इसके, इस लड़ाई के लिए तैयार होने के अलावा नेशनल टीम में अपनी जगह पक्की करने के लिए भी उन्हें जद्दोजहद करनी होगी। अनिश्चितता में डूबा हुआ उनका करियर इस वक्त एक दौराहे पर है। इससे आगे, अब वो सिर्फ दो दिशाओं में आगे बढ़ सकते है: मौकों पर बढ़ने में रूचि धवन के खेल की परिधि में एक दिलचस्प पहलू मौजूद है। बड़े टूर्नामेंट में उनके आंकड़े किसी विशेष मौके पर आगे बढ़ने के लिए उनकी इच्छा का खुलासा करते हैं। इस लिस्ट में 2013 आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के अलावा, 2015 वर्ल्ड कप में उन्होंने 51.50 की औसत से 415 रन बनाए जिसमें उनका स्ट्राइक रेट 91.75 रहा और इस दौरान उन्होंने 2 शतक और एक अर्धशतक भी जड़े थे। 2014 एशिया कप में धवन ने चार मैचों में 192 रन बनाए थे। जब भी धवन की खराब फॉर्म की वजह से उन पर टीम से बाहर होने का खतरा दिखाई दिया है, तब-तब धवन ने अपने प्रदर्शन से टीम में अपनी जगह कायम रखने में कामयाबी हासिल की है। जब वो मैदान पर हर ओर धमाकेदार शॉट्स लगाते हैं तो उनकी क्रीज पर बैचेनी के संकेत गायब हो जाते हैं। पारी के शुरुआती दौर में घबराहट की स्थिति को एक प्राचीन तरीके से पार किया गया था। लेकिन दूसरे मौकों पर, उनका तुफान देखने को काफी कम मिलता है। धवन ज्यादातर मौकों पर अपनी फॉर्म से जूझते हुए नजर आए हैं, उनमें निरंतरता की कमी देखी गई है। इस दिन और युग में, एक विश्व स्तरीय बल्लेबाज को निष्ठुरता और मेहनत के साथ मौकों को भुनाना होगा। लेकिन देखा गया है कि धवन अपनी फॉर्म से कभी ज्यादा फायदा नहीं ले पाए। शीर्ष क्रम पर बहुत सारे विकल्प परंपरागत रुप से भारत के पास बल्लेबाजी में कभी विकल्प की कमी नहीं रही है। पिछले कई सालों में कई ऐसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने घरेलू क्रिकेट में अपना जलवा दिखाया है जिसके बाद वो कई बार स्पॉटलाइट में आए। रिषभ पंत, इशान किशन और श्रेयस अय्यर जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी किसी भी क्रम पर बल्लेबाजी करने के लिए तैयार हैं। अगर रोहित की सफल बल्लेबाजी पर काले बादल छाते. तो चयनकर्ता विकल्प तलाशने में जरा भी संकोच नहीं करते। इस वक्त शिखर धवन के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी केएल राहुल हैं जो कंधे की चोट की वजह से चैंपियंस ट्रॉफी से बाहर हुए हैं। अगर वो फिट होते, तो 25 वर्षीय दांए हाथ के बल्लेबाज अपने सीनियर खिलाड़ी को भारतीय टीम में शामिल होने का मौका नहीं मिलने देते। लंदन में चल रही उनकी सर्जरी की वजह से वो अभी अगले कई महीने मैदान पर नहीं उतरेंगे। कहा जाता है कि एक आदमी का नुकसान दूसरे के लिए फायदा होता है। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद भारत को वेस्टइंडीज के खिलाफ 5 वनडे मैचों की सीरीज खेलनी है, जिससे शिखर धवन के पास खुद को साबित करने का पूरा मौका होगा कि वो टीम में अपनी जगह पक्की कर सकें और यही वजह है कि वो बहुत आगे तक अपना भविष्य नहीं देख सकते क्योंकि उनके अंतर्राष्ट्रीय भविष्य के सफर के बीच आईसीसी का ये टूर्नामेंट खड़ा है।