मैं बड़ी मौज में शुक्रवार की सुबह अज़हर फिल्म का पहला शो देखने सिनेमा हाल पहुंच गया था। मैं काफी जोश में था। भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन के जीवन पर आधारित इस फिल्म में कोई ऐसा सीन नहीं था जो उनके परमीशन के बगैर फिल्म में ठूसा गया हो। उनके इंटरव्यू से इस बात की तस्दीक हो रही थी कि ये फिल्म उनके जीवन का सचित्र चित्रण है। जिसमें उनके क्रिकेटीय जीवन के अहम पहलुओं को दर्शाया गया होगा।
मैं फिल्म देखने को इसलिए बेताब था क्योंकि अजहरुद्दीन भारतीय क्रिकेट में कई वजहों से चर्चा में रहे थे। लेकिन मैं ये सोचकर फिल्म देखने के लिए काफी उत्सुक था क्योंकि मुझे लग रहा था कि फिल्म में मैच फिक्सिंग के पीछे की सच्चाई की असलियत सामने आएगी।
मेरे लिए इस फिल्म में उनके क्रिकेट करियर के तथ्यों के बारे में जानना अहम था।
माना सिनेमा की अपनी सीमायें(गाने और अन्य चीजें) होती हैं, लेकिन फिर भी इस फिल्म में उनके करियर से जुड़े कई तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया।
फिल्म कुछ ऐसे तथ्य रहे जो सच्चाई में कुछ और थे, जिससे ये फिल्म कमजोर साबित हुई है। जिसमें से हम कुछ को यहां आपको बताना चाहते हैं:
#1 1996 में फिक्स मैच को गलत तरीके से पेश किया गया
अज़हरुद्दीन को साल 1996 में टाइटन कप में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए राजकोट वनडे को फिक्स करने के आरोप में सीबीआई ने पकड़ा था। जहाँ उन्होंने एजेंसी को गलत जानकारी दी थी। लेकिन अजहर फिल्म में अदालत में अजहरुद्दीन खुद को अंपायर के गलत एलबीडब्लू निर्णय का शिकार बताया।
ये इस फिल्म से जुड़ा सबसे बड़ा झूठ है। जो हैरान करने वाला है। राजकोट वनडे 29 अक्टूबर 1996 में हुआ था। जिसमें अजहर निकी बोये की गेंद पर डेव रिचार्डसन के हाथों कैच आउट हुए थे। वह एलबीडब्लू आउट नहीं दिए गये। नहीं तो भीड़ बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा कर देती।
फिल्म जो गलत निर्णय दिखाया गया वह वास्तव में इस टाइटन कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में बंगलौर में हुए मैच में उन्हें जेसन गिलेस्पी की गेंद पर एलबीडब्लू दिया गया था।
ये सारे तथ्य अजहरुद्दीन को पाक-साफ़ दिखाने के लिए किये गये हैं।
#2 1997 के मैच की फिक्सिंग को भी गलत तरीके से पेश किया गया
अजहरुद्दीन ने सीबीआई के सामने खुद ये बात कूबूल की थी कि उन्होंने श्रीलंका के साथ 1997 में पेप्सी कप में कई मैच फिक्स किये थे। साथ ही जयपुर में हुए 1999 में भारत और पाक मैच को भी उन्होंने फिक्स किया था। फिल्म इस मैच की बात ही नहीं की गयी है।
भारत और श्रीलंका के बीच हुए 1997 में भारत और श्रीलंका के मैच को तो उन्होंने पूरी तरह से फिक्शन बता दिया। जहाँ भारत को श्रीलंका ने 9 विकेट से हराया था। लेकिन फिल्म में भारत की जीत और अजहर को मैन ऑफ़ द मैच बनते दिखाया गया है।
#3 तहलका टेप्स का महत्व ज्यादा बताया
इस मूवी के जरिये सीबीआई को गलत ठहराने की कोशिश की गयी है। उस पर तहलका के टेप के आधार पर जाँच करने का आरोप जैसा लगाया गया है। जो सच है ही नहीं। तहलका का टेप उनके पूर्व साथी मनोज प्रभाकर और कपिल देव के दिमाग की उत्त्पति बताया गया है।
लेकिन सीबीआई ने प्रभाकर की भी जांच की थी। जो मैच फिक्सिंग के आरोप से घिरे थे। सीबीआई ने प्रभाकर को सबसे बड़ा फ़िक्सर बताया था।
अब बात ये सामने आ रही है कि अगर सीबीआई ने तहलका के टेप के आधार पर काम किया तो फिर मैच फिक्सिंग में मनोज प्रभाकर कैसे शामिल हो गये।
जो ये साबित करता है कि सीबीआई ने इस मामले की जाँच स्वतंत्र और निष्पक्ष की है।
#4 सीबीआई के दबाव में आकर अजहर ने गलती मानी
फिल्म में सीबीआई की जो रिपोर्ट आती है उसमें अजय शर्मा और प्रभाकर को मैच फ़िक्सर बताती है लेकिन अज़हर को इससे बाहर रखती है।
उदहारण के तौर पर साल 1994 में वेस्टइंडीज के साथ हुआ कानपुर वनडे भी फिक्स था। जहाँ प्रभाकर ने जानबूझकर मैच जीतने का कोई कोशिश नहीं की थी।
अजय शर्मा वह व्यक्ति थे जिन्होंने अज़हरुद्दीन को सबसे पहले बुकी से मिलवाया था। सीबीआई इन दोनों को दोषी ठहराया था। लेकिन फिल्म में दिखाया गया है कि अजहर को सीबीआई ने इसके लिए तैयार किया था।
वास्तव में सीबीआई ने अजहरुद्दीन की मैच फिक्सिंग में जो भूमिका बताई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, “ भारतीय क्रिकेट को कमजोर करने के लिए अजहरुद्दीन ने बुकी से मिलने के आलावा अन्य खिलाड़ियों को मैच फिक्स करने को कहा था। जिसके कई तथ्य भी सबके सामने आये थे।”
वास्तव में ये फिल्म अजहर को फिक्सन के आधार पर पहले और दूसरे पॉइंट की तरह ही पाक-साफ बताने में लगी रही।
#5 जडेजा और मोंगिया का कोई जिक्र नहीं
सीबीआई ने अजय जडेजा और नयन मोंगिया को भी अजहर के साथ मैच फिक्सिंग के आरोपों में पूछताछ किया था। वहीं बीसीसीआई ने जडेजा को 5 साल के लिए बैन कर दिया था।
लेकिन फिल्म पूरी तरह से नयन मोंगिया और जडेजा का जिक्र ही नहीं है। वहीं अन्य साथी खिलाड़ी जैसे नवजोत सिंह सिद्धू, विनोद काम्बली और रवि शास्त्री का नाम बाकायदा फिल्म में लिया गया है। लेकिन जडेजा और मोंगिया जो इस पूर्व कप्तान के साथ मैच फिक्सिंग में जुड़े हुए थे। उनका कहीं नामोंनिशान तक नहीं है।
#6 खराब प्रदर्शन गंभीर अपराध है, लेकिन पैसा लेना नहीं
फिल्म में अजहर को बुकी से खराब खेलने के लिए एक करोड़ रुपये लेते हुए दिखाया जाता है। लेकिन अजहर बेहतरीन खेल दिखाकर उसे उसका पैसा वापस कर देते हैं।
ऐसे में ये सीन अजहरुद्दीन के लिए आत्मघाती साबित हुआ है। आईसीसी का नियम है कि यदि आप खराब खेलने के लिए पैसे लेते हैं। और इसे जुर्म को कबूल करते हैं। तो इसके लिए भी आपको बैन झेलना पड़ सकता है।
#7 अजहर की कहानी में दो मुख्य बुकी का नाम ही नहीं है
सीबीआई की रिपोर्ट में अजहर मैच को फिक्स करने और दो बुकी एमके और अजय/ज्ञान गुप्ता से पैसा लेने की बात कबूल कर चुके हैं। जिन्हें वह अजय शर्मा से मिलवाते भी हैं। ये सारी बाते वह सीबीआई के सामने कबूल कर लेते हैं।
अजय गुप्ता/ ज्ञान गुप्ता ने 1999 वर्ल्डकप में अजहरुद्दीन के शौपिंग का खर्च भी उठाते हैं। लेकिन इन दोनों का नाम फिल्म में कहीं भी मेंशन नहीं है।
#8 क्रोनिये का कहीं भी संबोधन नहीं
इस पूरी फिल्म में कहीं भी दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैन्सी क्रोनिये का जिक्र ही नहीं है। जबकि कोर्निये ने किंग्स कमीशन में अपने वक्तव्य में कहा था कि अजहरुद्दीन ने उन्हें बुकी एमके से मिलवाया था। अब ये बताइए इस पूरी घटना में क्रोनिये ने सिर्फ अजहर का ही नाम क्यों लिया? या फिर क्रोनिये दुनिया के सामने बहुत बड़ा झूठ बोल गये। जिसे पचा पाना मुश्किल है।
#9 खुद के खिलाफ बोलने वाले खिलाड़ियों की खिल्ली उड़ाई
फिल्म में अजहर के खिलाफ बोलने वाले उन सभी साथी खिलाड़ियों की खुली उड़ाई गयी है।
मनोज प्रभाकर को फिल्म में विलेन के तौर पर पेश किया गया है। रवि शास्त्री को रंगीन मिजाज का दिखाया गया है। अजय शर्मा क्रिकेटरों और बुकीज के बीच मध्यस्थ रहे। वहीं विनोद काम्बली को एक अयोग्य बल्लेबाज़ के तौर पर दिखाया गया है, जिनसे बुकी सम्पर्क ही नहीं करना चाहते हैं।
पूरी फिल्म में अजहरुद्दीन को पाक-साफ़ दिखाने के लिए उनके अन्य साथी खिलाड़ियों, सीबीआई और बीसीसीआई का उपहास किया गया है।
#10 कई छोटी गलतियां और कमियां
फिल्म में कई अन्य कालानुक्रमिक और तथ्यात्मक गलतियां हैं। उदाहरण के तौर पर टाइटन कप के रूप में जुबली कप और अजहरुद्दीन को कप्तान के रूप में दिखाया जाता है। जबकि हकीकत में टाइटन कप और कुख्यात राजकोट वनडे में सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम के कप्तान थे।
फिल्म में अजहरुद्दीन को दोषमुक्त दिखाने के चक्कर में उनके बेहतरीन क्रिकेट करियर को मानो भुला दिया जाता है। फिल्म को पूरी तरह से काल्पनिक बताने के चक्कर में ऐसा किया जाता है।
फिल्म में इस कहावत को सच साबित किया गया है कि समय पुराने जख्मों को भर देता है। इस फिल्म के जरिये जो लोग अपने बचपन के हीरो को देखने जाते हैं। तो खुद को ठगा हुआ पाते हैं। फिल्म एक बार फिर उन विवादों को हवा देने की तरह लगती है। अगर सच कहूं तो “अज़हर” ने पूरे देश को एक बार फिर ठगा है......एक बार फिर!!!
लेखक-नवनीत मुंधरा, अनुवादक-मनोज तिवारी