सीके नायडू- भारत के पहले सुपरस्टार क्रिकेटर

भारत शायद इस सहस्त्राबदी में क्रिकेट का अनौपचारिक घर रहा है। क्रिकेट के हर पहलू में भारत आगे रहा है चाहे वो फैंस हों, सबसे अमीर बोर्ड या फिर सबसे ज्यादा पैसेवाले खिलाड़ी। लेकिन 100 साल पहले उपनिवेशवाद के तले जब धीरे-धीरे क्रिकेट का प्रसार भारत में हो रहा था तब चीजें काफी अलग थीं। क्रिकेट में तब भी कई पेचीदगियां थीं। क्रिकेट राजकुमारों के शौक का खेल हुआ करता था जो क्रिकेट तो कम जानते थे, लेकिन उनके पास पैसे ज्यादा थे। क्रिकेट में राजनीति तब भी होती थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब भारत ने 1932 में इंग्लैंड के खिलाफ अपना पहला अफिशियल टेस्ट मैच खेला था। लेकिन इन सब राजनीति से पार पाते हुए कुछ ऐसे भी खिलाड़ी थे जिन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। इन्हें में से एक थे कोट्टारी कनाकैय्या नायडू । जो उस समय भारत के पहले टेस्ट कप्तान बने। 21 साल के नायडू ने अपना फर्स्ट क्लास डेब्यू 1916 में हिंदूज की तरफ से यूरोपियन टीम के खिलाफ किया था। इसके कुछ सालों बाद उन्हें भारतीय क्रिकेट में काफी शोहरत मिली। 1926 का मैच भारतीय क्रिकेट के लिए पहला बड़ा मौका 1926 में आया जब हिंदूज की टीम ने बॉम्बे जिमखाना ग्राउंड पर एमसीसी के खिलाफ मैच खेला। ऑर्थर गिल्लिगन एमसीसी के कप्तान थे और उस दिन का क्रिकेट देखने के बाद उन्होंने भारत में क्रिकेट को बढ़ावा देने में काफी योगदान दिया। सीके नायडू ने उस मैच में महज 116 मिनटों में 14 चौके और 11 शानदार छक्के लगाते हुए 153 रनों की तूफानी पारी खेली। उनकी इस पारी की मदद से हिंदूज की टीम एमसीसी के 363 रनों के बेहद करीब पहुंच गई। हिंदूज की टीम ने 356 रन बनाए। एलपी जय और एसआर गोडांबे ने भी उस मैच में अर्धशतक जड़ा। नायडू इसके बाद एमसीसी के खिलाफ दो अनाधिकृत टेस्ट मैचों में आल इंडिया इलेवन टीम का भी हिस्सा रहे। 1927 में ऑल मद्रास इलेवन की तरफ से खेलते हुए नायडू ने एमसीसी के खिलाफ 59 रनों की बेहतरीन पारी खेली। इसके बाद 1932 में जब भारतीय टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ अपना अफिशियल टेस्ट मैच खेला तो नायडू भारतीय टीम का हिस्सा थे। एमसीसी के खिलाफ नायडू की 153 रनों की पारी कई मायनों में खास रही। पहली बात तो ये कि नायडू कोई प्रिंस नहीं थे और एक आर्मी के परिवार से होने के बावजूद वो आम लोगों की तरह ही रहते थे। जिमखाना ग्राउंड पर एमसीसी के खिलाफ उस दिन उन्होंने जो किया, उसकी वजह से पहली बार भारत में क्रिकेट बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गया। 25000 लोग उस दिन उस मैच को देखने आए। कप्तानी का विवाद ये अद्भुत संयोग ही था कि जब भारत ने 1932 में इंग्लैंड के खिलाफ लार्ड्स में अपना पहला अधिकारिक टेस्ट मैच खेला था तो उस समय कप्तान सीके नायडू थे। जबकि उससे पहले कप्तानी की रेस में वो दूर-दूर तक नहीं थे। नायडू से पहले पटियाला के महाराजा ज्यादा पैसे लगाने के कारण टीम के कप्तान हुआ करते थे, वहीं दूसरी तरफ लिम्बडी के प्रिंस घनश्यामसिंह जी टीम के उपकप्तान थे। वहीं एक बहुत ही सम्मानजक खिलाड़ी नवाब पटौदी ने टीम से अपना नाम वापस ले लिया। जबकि बीमारी की वजह से बिजयानगरम के महाराज ने भी मैच खेलने में असमर्थता जताई, उस समय वो टीम के उपकप्तान थे। हालांकि कयास ये भी लगाए गए कि कप्तानी ना मिलने के कारण वो नाराज थे। खुद पटियाला के महाराजा को भी खराब स्वास्थ्य के कारण मैच से नाम वापस लेना पड़ा। उस मैच से पहले भारतीय टीम में कई सारी घटनाएं हुईं। मैच की पूर्व संध्या पर टीम के वाइस कैप्टन भी अनफिट हो गए। लगातार अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों के टीम से बाहर होने के बाद टूर मैनेजर पोरबंदर के महाराज ने एक चौंकाने वाला निर्णय लिया। महाराज ने सीके नायडू की बल्लेबाजी और आलराउंडर प्रतिभा को देखते हुए उन्हें कप्तानी सौंपने का फैसला किया। बहुत सारे खिलाड़ी जो नायडू को पसंद नहीं करते थे उन्होंने नायडू की कप्तानी में खेलने से मना कर दिया। इसके बाद सीके नायडू ने पटियाला के महाराज को पत्र लिखा। पटियाला के महाराज ने पत्र का सकारात्मक जवाब दिया जिसकी वजह से टीम के सदस्य नायडू की कप्तानी में खेलने को तैयार हुए। भारतीय टीम ने उस मैच में अच्छी शुरुआत की। हसन निसार और अमर सिंह ने महज 19 रनों पर इंग्लैंड के 3 विकेट निकालकर भारत को ठोस शुरुआत दिलाई। लेकिन मध्यक्रम में डगलस जैरडाइन ने 79 रनों की पारी खेलकर इंग्लिश टीम को संकट से बाहर निकाल लिया। नायडू ने मैच में डगलस जैरडाइन और ईडी पेंटर का कीमती विकेट लिए। लेकिन उनके हाथ में इस दौरान चोट लग गई। इसके बावजूद नायडू ने बेहतरीन बल्लेबाजी की। 40 रनों के साथ वो भारत के सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। भारत ने पहली पारी में 189 रन बनाए। इंग्लैंड ने अपनी दूसरी पारी में 275 रन बनाए और भारत के सामने जीत के लिए 346 रनों का मजबूत लक्ष्य रखा। लेकिन भारतीय टीम लक्ष्य का पीछा करते हुए 187 रन ही बना सकी। हालांकि भारतीय टीम ने उस मैच में इंग्लैंड को कड़ी टक्कर दी और काफी नाम कमाया। उस मैच के बाद नायडू का नाम भारत के महान खिलाड़ियों में दर्ज हो गया। 1993 में नायडू विजडन क्रिकेटर ऑफ द् ईयर भी बने। भारत में पहला टेस्ट दिसंबर 1933 में भारत में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच खेला गया। जिमखाना ग्राउंड में इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए उस मैच में भारतीय टीम के कप्तान भी नायडू ही थे। उस मैच में भी नायडू भारतीय टीम के लिए संकटमोचक साबित हुए। पहली पारी के आधार पर भारतीय टीम इंग्लैंड से 219 रनों से पीछे थी। दूसरी पारी में शुरुआत में ही महज 21 रनों पर भारतीय टीम ने 2 विकेट गंवा दिए। लेकिन इसके बाद लाला अमरनाथ और सीके नायडू ने मोर्चा संभाला। इन बल्लेबाजों ने तीसरे विकेट के लिए 186 रनों की साझेदारी की। लाला अमरनाथ ने जहां 118 रनों की शतकीय पारी खेली तो नायडू ने बेहतरीन 67 रन बनाए। हालांकि नायडू का विकेट गिरते ही भारतीय टीम ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। इंग्लैंड को जीत के लिए 40 रनों का बेहद आसान सा लक्ष्य मिला। 1936 में भारत का इंग्लैंड दौरा उस दौरे पर नायडू ने बिजयानगरम के महाराज के समर्थन में कप्तानी छोड़ दी। इसका सीधा असर टीम के प्रदर्शन पर पड़ा। बेहतरीन टीम होने के बावजूद भारतीय टीम का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इंग्लिश खिलाड़ियों की तुलना में भारतीय खिलाड़ी उस वक्त कम नहीं थे, लेकिन सीके नायडू को छोड़कर कोई भी भारतीय क्रिकेटर उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सका। नायडू ने आलराउंडर प्रदर्शन करते हुए 140 रन बनाए और 4 विकेट भी चटकाए। नायडू ने सबसे बेहतरीन प्रदर्शन तीसरे टेस्ट मैच में किया। ओवल में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में अपने करियर की बेस्ट 81 रनों की पारी खेलकर नायडू ने भारत को पारी की हार से बचाया। ये उनके करियर की आखिरी पारी भी साबित हुई। लेकिन ये उनकी महानता ही थी कि अपने साथ अच्छे से व्यवहार ना किए जाने के बावजूद उन्होंने देश के लिए अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी खेली। बाद में सुनने में आया कि नाश्ते के दौरान नायडू का अपमान किया गया था। इन्हीं सब घटनाओं की वजह से भारतीय टीम का ये दौरा काफी निराशाजनक रहा। आंकड़े नायडू ने भारत की तरफ से केवल 7 अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच खेले। जिसमें उन्होंने 350 रन बनाए और 9 विकेट चटकाए। हालांकि उनका प्रथम श्रेणी करियर काफी शानदार रहा। 207 प्रथम श्रेणी मैचों में नायडू ने 35.94 की औसत से 11,825 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 26 शतक और 58 अर्धशतक लगाए। वहीं गेदबाजी में भी नायडू का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। 29.28 के बेहतरीन औसत से नायडू ने अपना ऑफ ब्रेक गेंदों से 411 विकेट चटकाए। इस दौरान नायडू की उम्र काफी उनके करियर के बीच में बाधा नहीं बनी। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने अपना आखिरी अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट मैच 69 साल की उम्र में खेला। 1956/57 में 62 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश की तरफ से रणजी मैच खेलते हुए नायडू ने दो बेहतरीन अर्धशतक भी लगाया। भारतीय क्रिकेट के विकास में नायडू के योगदान और खासकर इंग्लिश गेंदबाजों का उस वक्त उन्होंने जिस तरह से डटकर सामना किया, उसके लिए उन्हें युगों-युगों तक याद रखा जाएगा।