भारतीय क्रिकेट के 5 अविस्मरणीय हीरो जिन्हें लोगों ने भुला दिया

Sadanand-Vishwanath

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट एक मायने में बड़ा ही निर्दयी भी होता है, जब किसी खिलाड़ी को उसके बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद चयनकर्ता उसे बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। भारतीय क्रिकेट में ऐसे कई खिलाड़ी रहे हैं, जिन्होंने मैच जिताऊ प्रदर्शन किया है लेकिन उन्हें जल्द ही टीम से बाहर का रस्ता दिखा दिया गया। ऐसे तमाम अविस्मरणीय हीरो रहे हैं, जिन्हें शानदार प्रदर्शन का इनाम टीम से बाहर का रास्ता दिखाकर दिया गया है। आइये एक नजर डालते हैं, ऐसे ही 5 भुला दिए गये हीरोज पर:

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#5 सदानंद विश्वनाथ

जिस तरह से धोनी ने एक ही सीरीज के बाद सफलता की सीढ़ी चढ़ गये थे, उसी तरह से वह भी 80 के दशक में काफी हिट हुए थे। किरमानी के 80 के दशक के बीच में टीम से बाहर होने के बाद किरण मोरे ने ये जिम्मेदारी 90 के दशक तक संभाली थी। उस समय चंद्रकांत पंडित भी विकेटकीपर के तौर पर आये थे जो एक विशेषज्ञ बल्लेबाज़ भी थे। लेकिन इन तीनों में जो सबसे अच्छे विकेटकीपर बल्लेबाज़ थे वह थे सदानंद विश्वनाथ। उनका वनडे और टेस्ट में क्रमशः 9 और 6.7 का औसत पूरी कहानी बयान कर देता है। उन्होंने 1984 में नागपुर टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 23 रन नाबाद बनाकर टीम को मैच जितवाने में अहम भूमिका निभाई थी। विश्वनाथ ने जब रवि शास्त्री का साथ दिया था, तब भारत का स्कोर 204 रन पर 7 विकेट था जबकि जीत के लिए 241 रन चाहिए थे। उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में बहुत अच्छी विकेटकीपिंग भी की थी, जो ऑस्ट्रेलिया में 1985 में खेली गयी थी। टूर्नामेंट में भारतीय टीम की बल्लेबाज़ी अच्छी थी, जिस वजह से उन्हें बल्लेबाज़ी करने का मौका सिर्फ एक बार मिला था। लेकिन उन्होंने विकेट के पीछे 9 कैच 3 स्टंपिंग किए थे। एमसीजी में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच में उन्होंने जिस तरह से शिवरामकृष्णन की गेंद पर जावेद मियांदाद को स्टंप किया था। वह आज भी यादगार है। गावस्कर ने "वन डे वंडर्स" में इस बात का जिक्र किया था कि अगर भारत ने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीता था, तो उसकी वजह सदानंद विश्वनाथ का विकेट के पीछे होना था।

#4 नरेंद्र हिरवानी

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एक समय ऐसा लग रहा था कि नरेंद्र हिरवानी भारत के सबसे अच्छे लेग स्पिनर साबित होंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश वह अपने करियर में बहुत जल्द ही इतिहास बन गये थे। उन्होंने 18 वनडे मैचों में 23 विकेट लिए थे फिर भी उन्हें वनडे का विशेषज्ञ गेंदबाज़ नहीं माना जाता है। साथ ही 17 टेस्ट मैचों से उन्होंने 66 विकेट भी हासिल किए थे। उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 1988 में चेन्नई में अपने पदार्पण मैच में भारत के लिए मैच विनिंग प्रदर्शन किया था। पहले दिन के खेल में उन्होंने विंडीज के 147 रन पर 5 विकेट कर दिए थे। जिसमें उन्होंने रिचार्डसन, लोगी और हूपर का विकेट लिया था। उनके बारे एक कहानी प्रचलित है, उन्होंने अपने टीम के साथी खिलाड़ी चेतन शर्मा से ये कहा था कि "उसका डंडा मारूंगा"मतलब वह अगले दिन विवियन रिचर्ड्स को बोल्ड कर देंगे। ये बात अगली सुबह सच साबित हुई जब उन्होंने फ्लिपर मारकर उस दिग्गज बल्लेबाज़ को आउट कर दिया था। हिरवानी का पहली पारी में गेंदबाज़ी विश्लेषण कुछ इस तरह था 18.3-3-61-8। दूसरी पारी में जब वेस्टइंडीज को जीत के लिए 416 रन की दरकार थी, तब भी उन्होंने अपने जादुई प्रदर्शन 75 रन देकर 8 विकेट हासिल करके भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। हिरवानी ने अपने पदार्पण मैच में 16 विकेट लेकर बॉब मास्सी के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली थी। हिरवानी ने इसी फॉर्म को बरकरार रखते हुए न्यूज़ीलैंड के खिलाफ चार टेस्ट मैचों में 36 विकेट लिए थे।

#3 ऋषिकेश कानितकर

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90 के दशक में ऋषिकेश कानितकर ने अपने छोटे से करियर में भारत के बेहतरीन बल्लेबाजों में शुमार थे। लेकिन 2 टेस्ट और 34 वनडे मैचों के बाद उन्हें भुला दिया गया। टेस्ट में उन्होंने 74 रन बनाये थे और वनडे में 17.84 के औसत से उन्होंने 339 रन बनाये थे। जो ज्यादा प्रभावी नहीं था। उसके बाद उनकी वापसी 1998 में पाकिस्तान के खिलाफ सिल्वर जुबिली मैच में हुई थी। इस मैच में पाकिस्तान ने सईद अनवर के 140 रन के बदौलत 314 रन का स्कोर खड़ा किया था। लेकिन भारत ने भी इस मुकाबले में गांगुली 124 और रोबिन सिंह के 82 रन के बदौलत अच्छी वापसी की थी। अंत में भारत को आखिरी ओवर में 6 गेंदों पर 9 रन चाहिए थे। अंत में सक़लैन मुश्ताक गेंदबाज़ी करने आये थे, लेकिन स्ट्राइकर श्रीनाथ के पास थी। जब अंतिम 2 गेंदों जीतने के लिए 3 रन की जरूरत थी तब स्ट्राइक कानितकर के पास थी। तब सक़लैन की गेंद पर कानितकर ने चौका जड़ दिया और भारत को जीत दिला दी थी। ये जीत यादगार जीत बन गयी। जो उस वक्त की सबसे बड़ी चेज थी।

#2 राजेश चौहान

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वेंकटपति राजू और अनिल कुंबले के साथ राजेश चौहान 90 के दशक के भारत तीसरे विशेषज्ञ स्पिनर थे। उन्होंने अपने करियर में 47 टेस्ट और 29 वनडे विकेट हासिल किए थे। लेकिन निचले क्रम के बल्लेबाज़ के तौर पर उन्होंने 35 वनडे मैचों में मात्र 132 रन बना पाए थे। लेकिन उनसे देश को रन की ज्यादा उम्मीद थी। ऐसा लग रहा था कि चौहान भारतीय क्रिकेट के बड़े सितारे बनेंगे। कराची में हुए 1997 के एक मैच में भारत को 47 ओवर में 266 रन चाहिए थे। लेकिन अंतिम ओवर में ये समीकरण जीतने के लिए 8 रन और भारत के विकेट बचे थे 2। सक़लैन मुश्ताक गेंदबाजी कर रहे थे और स्ट्राइक पर थे राजेश चौहान। पूरा स्टेडियम पाकिस्तान की जीत को लेकर आश्वस्त था। ये चुनौती और कठिन हो गयी जब चौहान स्ट्राइक पर आ गये। लेकिन चौहान ने सक़लैन मुश्ताक की योर्कर गेंद को फुलटॉस पर लेकर लेग साइड में काफी ऊँचा लम्बा शॉट मारा। गेंद दर्शकदीर्घा में जा गिरी और ये एक बेहतरीन छक्का था और चौहान इसी के साथ इस मैच के हीरो गये थे। भारत के लिए ये यादगार जीत थी।

#1 जोगिन्दर शर्मा

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4 टी-20 मैच में जोगिन्दर शर्मा ने 4 विकेट लिए थे। वह एक ऐसे भारतीय गेंदबाज़ थे जो अचानक हीरो बने और गायब हो गये। जिन लोगों ने साल 2007 में पहला टी-20 विश्वकप देखा होगा, उन्हें याद होगा कि जोगिन्दर शर्मा का भारत को विश्वविजेता बनाने में उनका क्या योगदान था। फाइनल मैच में आखिरी ओवर में एमएस धोनी ने भज्जी को गेंद सौंपने के बजाय जोगिन्दर शर्मा से गेंदबाजी करवाई जबकि उन्हें ये पता था कि स्ट्राइक पर मिस्बाह उल हक़ हैं। लेकिन मिस्बाह ने दिल स्कूप मारने के चक्कर में एक आत्मघाती कैच श्रीसंत को थमा बैठे और पल भर में जोगिंदर शर्मा भारतीय टीम के लिए हीरो बन गये। इसी के साथ धोनी के कप्तानी का महान दौर शुरू हुआ था। लेखक-दीप्तेश सेन, अनुवादक-मनोज तिवारी

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