क्रिकेट को जेंटलमैन का खेल माना जाता रहा है, लेकिन कई घटनाओं ने क्रिकेट की आत्मा को ठेस पहुंचाई है। जिसमें बॉडीलाइन सीरिज, अंडरआर्म गेंदबाज़ी और एल्युमीनियम के बल्ले के इस्तेमाल ने इस खेल को बदनाम भी किया है। ऐसा भी हुआ है, जब बल्लेबाज़ के बल्ले का बाहरी सिरा लगा और वह अपने मन से मैदान से वापस नहीं गया। यद्यपि आईसीसी की किताब में ऐसा कोई नियम नहीं है कि बिना अंपायर के आउट करार देने से पहले वह खुद-ब-खुद पवेलियन वापस लौट जाए। लेकिन जब बात स्पिरिट ऑफ़ क्रिकेट की होती है, तो बल्लेबाजों के इस रवैये को अच्छा नहीं माना जाता है। हालाँकि एडम गिलक्रिस्ट, एमएस धोनी और हाशिम अमला जैसे खिलाड़ियों ने मिसाल कायम करते हुए कई बार फील्डिंग करने वाली के अपील करने से पहले ही पवेलियन की तरफ मुड़ चुके हैं। लेकिन ज्यादातर बल्लेबाज़ अंपायर के निर्णय का इंतजार करते हैं। उनके ऐसा करने पर हम उन्हें अपराधी नहीं ठहरा सकते हैं। ये बल्लेबाज़ का अधिकार है। 1 जुलाई 2007 की बात है, भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच तीन मैचों की वनडे सीरिज का निर्णायक मुकाबला चल रहा था। ये मुकाबला बेलफ़ास्ट आयरलैंड के स्टॉर्मोंट सिविल सर्विस क्रिकेट क्लब में खेला जा रहा था। जहाँ मौजूदा समय के बेहतरीन बल्लेबाजों में शुमार खिलाड़ी ने मोटा किनारा लगने के बावजूद भी मैदान पर खड़ा रहा था। बारिश के कारण मुकाबला देर से शुरू हुआ था और जब परिस्थितियां खेलने लायक हुई तो मुकाबला दोनों टीमों के लिए 31 ओवर का कर दिया गया। भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ ने टॉस जीता और पहले फील्डिंग करने का निर्णय लिया। भारतीय गेंदबाजों ने सधी हुई शुरुआत करते हुए सलामी बल्लेबाज़ मोर्ने वैन विक और कप्तान जैक्स कालिस पहले चार में ही आउट करके पवेलियन भेज दिया। उसके बाद 23 वर्षीय युवा डीविलियर्स मैदान पर आये और उनसे एक विवाद जुड़ गया। हुआ यूँ कि ज़हीर खान के पांचवें ओवर की पहली गेंद पर एबी मोटा बाहरी किनारा दे बैठे और गेंद सीधे सचिन तेंदुलकर के हाथों में समां गयी। बैक ऑफ लेंथ की इस गेंद को एबी बिलकुल नहीं समझ पाए थे। जबकि गेंद उनके बल्ले को चूमती हुई सीधे पहली स्लिप में पहुंच गयी थी। भारतीय खिलाड़ियों ने खुशियां मानना शुरु कर दिया, लेकिन डीविलियर्स मैदान पर जमे रहे और अंपायर के निर्णय का इंतजार करने लगे। लेकिन अलीम दर ने हवा में ऊँगली नहीं उठाई। जिसका हर कोई इंतजार कर रहा था। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा असहजता तब महसूस हुई जब डीविलियर्स ने मैदान से जाने से मना कर दिया। इसके अलावा अंपायर पर भी सवालिया निशान उठे कि उन्होंने सुना नहीं या सही से देखा नहीं। क्योंकि गेंद बल्ले को छूकर ही गयी थी। नॉटआउट का फैसला दक्षिण अफ्रीका के पक्ष में गया। हालांकि स्पिरिट ऑफ़ गेम के मुताबिक डीविलियर्स को मैदान से चले जाना चाहिए था। वहीं भारतीय खिलाड़ी अंपायर के इस तरह के निर्णय से नाराज और निराश थे। हालांकि कुछ देर गांगुली की गेंद पर एबी विकेट के पीछे धोनी के हाथों लपक लिए गये, जबकि पहली जहीर गेंद पर जब वह कैच हुए थे तब 8 रन पर खेल रहे थे। इस मैच में हर्शल गिब्स ने 67 गेंदों पर 46 रन की पारी खेली और केम्प के साथ 99 रन की साझेदारी की। केम्प ने 61 गेंदों में 61 रन बनाये थे। कुल मिलाकर दक्षिण अफ़्रीकी टीम ने 31 ओवर में 148 रन बनाये। अजित अगरकर, सचिन तेंदुलकर और गांगुली ने भारत के लिए दो-दो विकेट लिए थे। जवाब में भारतीय टीम जब लक्ष्य का पीछा करने उतरी तो, सचिन, गांगुली और गंभीर 38 रन के स्कोर तक आउट हो चुके थे। उसके बाद तत्कालीन कप्तान राहुल द्रविड़ और युवराज ने 70 रन की साझेदारी की। मार्क बाउचर ने द्रविड़ को रन आउट करके इस साझेदारी को तोड़ा। युवराज ने अपना अर्द्धशतक पूरा किया और भारत 4 गेंद पहले ही 6 विकेट से जीत दिला दी। भारत इस जीत के साथ ही इस सीरिज को 2-1 से जीत लिया था। हालांकि ये सीरिज डीविलियर्स विवाद के लिए याद रखी जाएगी।