क्या आपके अंदर भी गेंदबाज़ों से मिली जीत ज़्यादा रोमांच पैदा करती है ?

Indian cricketer Axar Patel (L) celebrates after he dismissed Sri Lankan cricketer Lakshan Sandakan during the first One Day International (ODI) cricket match between Sri Lanka and India at the Rangiri Dambulla International Cricket Stadium in Dambulla on August 20, 2017. / AFP PHOTO / LAKRUWAN WANNIARACHCHI

वक़्त के साथ साथ क्रिकेट पूरी तरह से बदलता जा रहा है, ख़ास तौर से सीमित ओवर में जेंटलमेन गेम अब बल्लेबाज़ों का खेल बन चुका है। फिर चाहे आईसीसी के नियम हों, छोटी बाउंड्री लाइन हो, क्रिकेट पिच हो या फिर बल्ले हों आज सभी चीज़ें बल्लेबाज़ों को ध्यान में रखकर ही तैयार किए जा रहे हैं।

दूसरे अल्फ़ाज़ों में अगर कहा जाए तो गेंदबाज़ों के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। शायद यही वजह है कि मौजूदा क्रिकेट में जोएल गार्नर, मैलकम मार्शल, जेफ़ थॉमसन, ग्लेन मैक्ग्रा, वसीम अकरम, अनिल कुंबले या शेन वॉर्न जैसे गेंदबाज़ किसी अजूबे से कम नहीं नज़र आते।

इसकी एक बड़ी वजह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल की वह सोच है जहां उन्हें दर्शकों को मैदान में खींचने का आसान ज़रिया चौके और छक्के लगते हैं। आईसीसी सोचती है कि अगर ज़्यादा से ज़्यादा रन बनेंगे तो दर्शकों को उतना मज़ा आएगा, और टेलीवीज़न रेटिंग्स भी शानदार होगी। यही वजह है कि क्रिकेट का सबसे छोटा स्वरूप यानी टी20 का बाज़ार बढ़ता जा रहा है, इसमें कोई शक नहीं है कि क्रिकेट फ़ैंस रनों की बारिश में भींगना चाहते हैं।

पर जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं यहां भी कुछ ऐसा ही है, किसी भी चीज़ की ज़्यादती अच्छी नहीं होती। क्रिकेट में भी कुछ यही हाल है, आज 50 ओवर में 350 रन आसानी से चेज़ हो जा रहे हैं तो टी20 में 200 का स्कोर भी कोई जीत की गारंटी नहीं है। वजह है नेश्नल हाईवे की तरह बन रही क्रिकेट पिच जहां गेंदबाज़ों के हाथ से गेंद निकलने के बाद बल्ले पर इस तरह आती है जैसे गेंदबाज़ी मशीन के सामने नेट्स में बल्लेबाज़ प्रैक्टिस कर रहा हो। बल्लेबाज़ के हाथ में जो बल्ले होते हैं वह भी ऐसे कि अगर किनारा भी लग गया तो गेंद स्टैंड्स में पहुंच सकती है। आउटफ़िल्ड इतनी तेज़ जैसे कि मैच घास पर नहीं किसी शीशे के मैदान पर हो रहा हो और गेंद प्लास्टिक की हो जो छूटते ही फ़र्राटे से सीमा रेखा को चूमने की लिए गोली की रफ़्तार से दौड़ जाती है।

अब ऐसे में ज़रा सोचिए गेंदबाज़ों के लिए कितनी चुनौतियां बढ़ गई हैं, नतीजा उनके तरकश में भी अब एक नहीं कई तरह की गेंदे होती हैं। उन्हें भी पता है कि पिच से तो फ़ायदा होने वाला नहीं लिहाज़ा बल्लेबाज़ को छकाना ही पड़ेगा, इसके लिए तेज़ गेंदबाज़ों के पास अब इनस्वींग और आउटस्वींग जैसे हथियार कम हो चुके हैं और नकल गेंद और चेंज ऑफ़ पेस जैसे हथियार की खपत ज़्यादा हो रही है। आमूमन 150 किमी की रफ़्तार से गेंद डालने वाला गेंदबाज़ का मुख्य औज़ार अब उसकी रफ़्तार नहीं बल्कि बल्लेबाज़ों पर नकेल कसने के लिए “नकल’’ गेंद डालना हो गया है।

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बात अगर स्पिन गेंदबाज़ों की करें, तब तो उनके लिए सीमित ओवर क्रिकेट तो किसी सज़ा से कम नहीं। शायद यही वजह है कि टीम इंडिया आर अश्विन और रविंद्र जडेजा जैसे टेस्ट के टॉप गेंदबाज़ों को सीमित ओवर में आराम करवाती है ताकि उन्हें सज़ा न मिले और वह टेस्ट में तरोताज़ा आएं। क्रिकेट और स्पिन गेंदबाज़ी कितनी बदल गई है, उसका एक उदाहरण इसी से समझिए कि जहां एक लेग स्पिनर के पास गुगली जैसा हथियार बल्लेबाज़ों को चकमा देने के लिए काफ़ी होता था, तो आज एक गुगली से कुछ नहीं होता बल्कि उनके पास तो फ़्लिपर, टॉप स्पिनर, क्विकर, फ़्लोटर और न जाने कितनी तरह की गेंदे आ गई हैं।

ऑफ़ स्पिनर का तो और भी बुरा हाल है, टीम इंडिया के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज़ वीरेंदर सहवाग तो ऑफ़ स्पिनर को गेंदबाज़ मानते ही नहीं। उनके अनुसार तो अगर ऑफ़ स्पिनर आक्रमण पर है तो समझिए आपके पास स्टैंड्स में पहुंचाने का लाइसेंस हासिल है। ऑफ़ स्पिनर भी सीमित ओवर में इस परेशानी को बख़ूबी समझ गए हैं, तभी तो अब हर ऑफ़ स्पिनर के पास उनकी नियमित गेंदो के अलावा दूसरा तो है ही, साथ ही साथ राउंड आर्म फ़्लोटर, आर्म गेंद, तीसरा और कभी कभी तो आर अश्विन जैसे ऑफ़ स्पनिर बल्लेबाज़ों को चकमा देने के लिए लेग स्पिन तक करने लगते हैं। लेकिन इन सभी के बावजूद आज वह सीमित ओवर क्रिकेट में एक फ़्लॉप गेंदबाज़ की श्रेणी में ही आते हैं और टीम से बाहर रहते हैं। मौजूदा दौर के टेस्ट के नंबर-1 ऑफ़ स्पिनर की फ़टाफ़ट क्रिकेट में ये बदहाली इस बात को और भी पुख़्ता करती है कि गेंदबाज़ों के लिए आज सीमित ओवर क्रिकेट कितना ख़तरनाक होता जा रहा है।

लेकिन इन सब के बीच एक सच्चे क्रिकेट फ़ैन्स को मज़ा तब सबसे ज़्यादा आता है, जब टीम को जीत बल्लेबाज़ नहीं गेंदबाज़ दिलाते हैं। अब वह ज़माना गया जब महेंद्र सिंह धोनी के बल्ले से निकला छक्का टीम को जीत दिलाता था तो भारतीय फ़ैंस कुर्सी से कूद जाते थे और ख़ुशियों का ठिकाना नहीं रहता था। क्योंकि अब तो दाएं हाथ के बल्लेबाज़ विराट कोहली या रोहित शर्मा के लिए ये बाएं हाथ का खेल हो गया है।

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पर जब भुवनेश्वर कुमार या जसप्रीत बुमराह और युजवेंद्र चहल अपनी गेंदों से बल्लेबाज़ों को रन बनाने के लिए तरसा देते हैं और टीम इंडिया को अपनी गेंदो से जीत दिलाते हैं तो टीम इंडिया के फ़ैंस के अंदर एक अलग सा रोमांच पैदा होता है। जैसा कि न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ निर्णायक और आख़िरी टी20 में देखने को भी मिला, जब 8 ओवर के मैच में भारतीय गेंदबाजों ने कीवियों को 68 रन का लक्ष्य भी हासिल नहीं होने दिया और भारत को सीरीज़ पर क़ब्ज़ा करा दिया।

यानी भले ही क्रिकेट को छोटी बाउंड्री, चीयर लीडर्स, शानदार बल्ले, रोड जैसी पिच और चौकों-छक्कों से जितना भी ग्लैमरस क्यों न कर दिया जाए। एक सच्चे क्रिकेट फ़ैन के अंदर रोमांच की तरंग तभी फड़फड़ाती है जब कम स्कोर के मैच में जसप्रीत बुमराह के यॉर्कर या चहल की लेग स्पिन पर बल्लेबाज़ों का कंपन देखने को मिलता है। ये तरंग एक फ़ैन के शरीर में कुछ इस तरह होती है मानो डार्क चॉकलेट खाने के बाद शरीर के अंदर के हार्मोन्स डांस कर रहे हों और ऊर्जा हमारे चेहरे पर रोशन हो रही हो।

Edited by Staff Editor