इंग्लैंड रवाना होने से पहले भारतीय टीम और कप्तान विराट कोहली ने कई सपने संजोए थे। मसलन, विश्व कप 2019 के लिए एक मजबूत बल्लेबाजी लाइनअप के साथ गेंदबाजों से धारदार गेंदबाजी की उम्मीद। तेज गेंदबाज उम्मीदों पर खड़े भी उतरे लेकिन बल्लेबाजों ने कोहली के सपने को चकनाचूड़ कर दिया। पांच मैचों की सीरीज में भारत 1-3 से पीछे है। इसका कारण है कि उसने हाथ में आए मैच को फिसलने दिया। 100 रन तक आधी टीम को पवेलियन भेजने के बाद भी भारत जीत से दूर रहा। दूसरी तरफ इंग्लैंड के पुछल्ले बल्लेबाजों ने साहसिक पारी खेली। इस लिहाज से तो भारतीय टीम किसी भी हाल में जीत की हकदार थी ही नहीं। पहले टेस्ट में 31 रन और लॉर्ड्स में पारी व 159 की हार के बाद ट्रैंट ब्रिज में 203 रन की जीत ने उम्मीद जगाई लेकिन साउथंपटन में 60 रन की हार के बाद भारतीय टीम के हाथ से सीरीज निकल गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय तेज गेंदबाजों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई लेकिन मैच सिर्फ गेंजबाजों से नहीं जीती जाती। बल्लेबाजों का प्रदर्शन पूरी शृंखला में लचर रहा। कोहली को छोड़ दें तो बाकियों की स्थिति दयनीय ही रही। स्पिन गेंजबाजों को खेलने में माहिर माने जाने वाले भारतीय बल्लेबाजों ने मोईन अली के सामने घुटने टेक दिए। बल्लेबाजों में सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण सरीखे अनुभव की कमी साथ झलक रही थी। विराट कोहली के अलावा सब फेल बल्लेबाजी में दमदार होने का दावा करने वाली टीम की ओर से केवल कोहली ही मोर्चे से अगुआई करते दिखे। चार टेस्ट मैचों की आठ पारियों में उन्होंने लगभग 68.00 की औसत से 544 रन बनाए हैं। इसमें उनके दो शतक और तीन अर्धशतक शामिल हैं। चेतेश्वर पुजारा के नाम 241 रन हैं लेकिन उनकी चौथे टेस्ट की नाबाद शतकीय पारी को छोड़ दें तो उन्होंने कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ा। वहीं मध्यक्रम की रीढ़ माने जाने वाले अजिंक्य रहाणे ने महज 21.80 की औसत से 220 रन बनाए। शिखर धवन का हाल भी कुछ ऐसा ही है। उन्होंने 26.73 की औसत से कुल 158 रन बनाए। वहीं स्टार बल्लेबाज लोकेश राहुल आठ पारियों में कुल 113 रन ही बना सके। दिनेश कार्तिक के विफल होने के बाद जिस ऋषभ पंत को बेहतर बल्लेबाजी के लिए शामिल किया गया वे भी नाकाम रहे। भारतीय बल्लेबाजों का विदेशी पिच पर ऐसा प्रदर्शन उनकी अपरिपक्वता का परिचय देता है। स्पिनरों के खिलाफ लगातार गिर रहा बल्लेबाजों का प्रदर्शन इसके अलावा भारतीय बल्लेबाजों का स्पिनरों के खिलाफ गिरता प्रदर्शन भी उनकी हार के लिए कसूरवार है। दरअसल, बीते कुछ सालों में भारत के बल्लेबाजों का स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ प्रदर्शन बेहत निराशाजनक रहा है। ऐसे कई मौके आए जब पार्ट-टाइम स्पिनर ने भी भारत को हार के कगार पर ला खड़ा किया। याद कीजिए जनवरी 2008 का वो मैच जब एंड्यू साइमंड्स और माइकल क्लार्क ने तीन-तीन विकेट चटकाए थे और भारत वह मैच 122 रन से हार गई थी। यह स्पिन के खिलाफ भारत के कमजोर होने की शुरुआत थी। छह महीने बाद ही कोलंबो में श्रीलंका के स्पिन गेंदबाजों ने भारत के दांत खट्टे कर दिए थे। मुथैया मुरलीधरन ने तब 11 विकेट चटकाए थे और भारत पारी व 239 रन से हारा था। इसी सीरीज के एक मैच में अजंता मेंडिस ने आठ विकेट चटकाए थे। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। आगे बढ़ने के साथ भारतीय टीम लगातार स्पिनरों को खेलने के हुनर में कमजोर होती चली गई। 2010 में गाले में फिर मुरलीधरन का कहर बरपा और उनके आठ विकेट ने श्रीलंका को दस विकेट से जीत दिला दी। 2012 में नाथन लियोन की गेंदबाजी के सामने भारतीय बल्लेबाजों ने घुटने टेके और उसे 298 से हार का सामना करना पड़ा था। इंग्लैंड के स्पिनरों ने तो शुरू से ही भारतीय बल्लेबाजों को परेशान किया है। चाहे मोंटी पनेशर ने जी स्वांन या फिर अभी मोईन अली, भारतीय बल्लेबाजों की सारी तकनीक इनके सामने फेल हो जाती है। मोंटी पनेशर और मोईन अली ने किया भारत को परेशान मोंटी पनेशर ने तो नवंबर 2012 में मुंबई में खेले जा रहे मैच में 11 विकेट चटकाकर भारतीय टीम को पस्त कर दिया था। भारत उस मैच में इंग्लैंड से 10 विकेट से हार गई थी। इसी सीरीज के अगले मैच में पनेशर ने कोलकाता के ईडन गार्डन पर पांच विकेट चटकाए थे। मोईन अली ने भी भारत को खूब परेशान किया है। चाहे 2014 का दौरा हो या 2018 का वर्तमान दौरा, भारत के खिलाफ अली का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। जुलाई 2014 में साउथंपटन के मैदान पर ही अली ने भारत के खिलाफ आठ विकेट चटकाए थे। भारत को तब 266 रन से हार का सामना करना पड़ा था। एक फिर साउथंपटन में अली ने नौ विकेट चटकाकर भारत को सीरीज से बाहर कर दिया। स्पिनरों के खिलाफ भारतीय बल्लेबाजों के इस प्रदर्शन के बाद टीम प्रबंधन और कप्तान को गंभीरता से विचार करना होगा। एशियाई मूल के खिलाड़ी हमेशा से स्पिन को खेलने में माहिर माने जाते रहे हैं। भारत उस फेहरिस्त में सबसे ऊपर रहा है। अब उसकी मजबूती ही कमजोरी बनकर उभर रही है। इसका कारण चाहे जो भी हो लेकिन इसे दुरुस्त किए बगैर वह विश्व चैंपियन बनने का ख्वाब तो कतई नहीं पाल सकती। साथ ही बल्लेबाजों का बगैर कोई तकनीक बल्ला भांजकर रन बनाने से खुश होना भी टीम के लिए घातक साबित हो सकता है। यही कारण है कि इंग्लैंड के खिलाफ भारतीय बल्लेबाज रन बनाना तो दूर विकेट के सामने भी नहीं टिक पाए।