विराट कोहली को भारत ही नहीं दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों की श्रेणी में रखा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन्होंने अपनी बल्लेबाजी के दम पर कई धुरंधरों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। हाल में जारी आईसीसी के टेस्ट रैंकिंग में भी उन्होंने शीर्ष स्थान हासिल किया। हालांकि इन सब के बीच टीम तैयार करने के मामले में वह पिछड़ते जा रहे हैं। अपनी बल्लेबाजी से मैच को एकतरफा करने का माद्दा रखने वाले कोहली ने विदेशी दौरे पर लगातार अपनी टीम में बदलाव किए हैं। इससे खिलाड़ियों में भय का माहौल बनता दिख रहा है। अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा जैसे टेस्ट बल्लेबाजों को भी कप्तान ने लगातार टीम में जगह नहीं दी है। उनकी इस सोच को युवा टीम बनाने की रणनीति का हवाला दिया जाता है लेकिन इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि खिलाड़ी टीम में जगह गंवाने के डर से सौ प्रतिशत देने की जल्दबाजी में अपने मूल खेल को भूल रहे हैं। क्या कोहली को बस फेरबदल में है विश्वास एशिया के बाहर भारतीय टीम के पिछले कुछ दौरों को याद करें तो कोहली ने टीम में लगातार फेरबदल किए हैं। जनवरी में दक्षिण अफ्रीका के साथ हुए टेस्ट सीरीज को ही देख लें। कप्तान ने पहले दो टेस्ट से रहाणे को बाहर कर दिया। इसकी जमकर आलोचना हुई। उन्होंने रोहित शर्मा को यह कहते हुए मौका दिया कि वे अभी इन फॉर्म बल्लेबाज हैं। रोहित दोनों टेस्ट में फेल रहे। आखिर में रहाणे को टीम में शामिल किया गया। यही हाल कई अन्य खिलाड़ियों के साथ रहा। कुछ मैचों के लिए शामिल किया जाता और नतिजा नहीं देने पर बाहर का रास्ता दिया जाता। इससे खिलाड़ी खुद पर भरोसा करने में नाकाम होने लगे। शायद इसी का नतिजा रहा कि आर अश्विन जैसे दिग्गज गेंदबाज भी अपनी मूल गेंदबाजी से अलग यानि लेग स्पिन करने की कोशिश में लग गए। जैसा दक्षिण अफ्रीका में रहाणे के साथ हुआ वैसा ही कुछ इंग्लैड में चेतेश्वर पुजारा के साथ किया जा रहा है। इंग्लैंड में काउंटी खेल कर इस हालात के अनुकूल खुद को ढालने की कोशिश में लगे इस टेस्ट बल्लेबाज पर कप्तान को भरोसा नहीं था। उन्होंने उनकी जगह लोकेश राहुल को मौका दिया। वह भी इसलिए क्योंकि टी-20 और एक दिवसीय मैचों की कुछ पारियों में उन्होंने तेजी से रन बनाए। यहां भी परिणाम वही रहें। राहुल इंग्लैंड के खिलाफ पहले टेस्ट में इन फॉर्म होते हुए भी फेल रहे। रन बनाना तो दूर की बात है वे इग्लिश गेंदबाजों के सामने खड़े भी नहीं हो सके। दोनों पारियों को मिलाकर कुल 24 गेंदों का सामना किया और 17 रन अपने खाते में जोड़े। एेसा ही कुछ अन्य खिलाड़ियों के साथ भी है। उन्हें नहीं पता कि चयनकर्ता और कप्तान उन्हें किस भूमिका के लिए टीम में शामिल करेंगे। कोहली से ही है पूरी टीम ? विराट कोहली के बल्ले के प्रदर्शन के बारे में सबको पता है। आज दुनिया का हर बल्लेबाज कोहली की तरह आगे बढ़ना चाहता है। टीम इंडिया के लिए यह फायदेमंद है लेकिन सवाल यह भी है कि क्या पूरी टीम कोहली पर ही निर्भर हो गई है। उनके दो मैच में रन न बनाने से आलोचक हावी हो जाते हैं। इंग्लैंड दौरे से पहले भी कई खबरों की हेडलाइन कोहली को 2014 के प्रदर्शन की याद दिला रही थी। इससे तो यही मालूम होता है कि भारतीय क्रिकेट जगत के साथ प्रशंसक भी कोहली से ही पूरी टीम की कल्पना करने लगे हैं। यह क्रिकेट ही नहीं किसी भी क्षेत्र के लिए खतरनाक सूचक है। हाल में संपन्न फीफा विश्व कप को याद कीजिए। ब्राजील, जर्मनी, कोस्टारिका और खास कर अर्जेंटीना, इन टीमों में कुछ ऐसे खिलाड़ी थे जिन्हें स्टार की श्रेणी में रखा जाता है। मसलन लियोनल मेस्सी के बिना अर्जेंटीना की कल्पना नहीं की जा सकती। वहीं कोस्टारिका में रोनाल्डो और ब्राजील में नेमार के बगैर टीम की कल्पना बेईमानी है। हाल क्या हुआ, जिन टीमों के बारे में यह कहा जा रहा था कि वे ही फाइनल और सेमी फाइनल तक का सफर तय करेंगे वे सारे शुरुआती कुछ मैचों में ही बाहर होने की कगार पर आ गए। वहीं जिनमें कोई एक नहीं बल्कि पूरी टीम मिलकर खेली वे काफी आगे निकल गए। ठीक यही हाल भारतीय क्रिकेट टीम का है। बीते कुछ समय से टीम कोहली प्रधान हो गई है। उन्हें हर मैच में खेलना है, यही चयनकर्ताओं की प्राथमिकता हो गई है। बाकि खिलाड़ियों के साथ प्रयोग जारी रखो। कोहली का खेलना गलत नहीं है लेकिन कप्तान के साथ चयनकर्ताओं को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं कोई खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से ज्यादा टीम में जगह को लेकर तो परेशान नहीं है। टीम है मजबूत लेकिन भरोसे की जरूरत भारतीय टीम आज की तारीख में दुनिया की सबसे मजबूत टीमों में से एक है। उसके पास एक से बढ़कर एक बल्लेबाज और गेंदबाजों की टोली है। शीर्ष क्रम से लेकर पुछल्ले बल्लेबाज तक बल्लेबाजी करने में सक्षम हैं। गेंदबाजी में भी कलाई से लेकर ऑफ स्पिन के महारथी टीम को मजबूती दे रहे हैं, बस जरूरत है उनपर भरोसा जताने की। किसी भी खिलाड़ी का फॉर्म निरंतर नहीं रहता। एक समय के बाद उसे दिक्कत होती है लेकिन कप्तान का भरोसा ही उसे बेहतर करने का जज्बा देता है। कुछ समय पहले एक बुक लॉन्च के मौके पर सौरव गांगुली ने एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था कि कैसे विरेंद्र सहवाग एक समय अपने खराब फॉर्म से जूझ रहे थे और तब गांगुली ने उन्हें टीम से नहीं निकालने का भरोसा दिया था। उसके बाद सहवाग के खेल में सुधार आया था। आज कोहली को भी अपने खिलाड़ियों पर इसी तरह का भरोसा दिखाना चाहिए। अपनी बल्लेबाजी में कोहली न भूलें कप्तानी कोहली को आक्रमक बल्लेबाज के तौर पर जाना जाता है। वे बेहतरीन तकनीक के साथ बल्लेबाजी करते हैं। कम ही ऐसे अवसर आएं जब कोहली को लापरवाही से शॉट खेलकर आउट होते पाया गया। लेकिन इस धुन में शायद वे भूल जाते हैं कि वह भारतीय टीम के कप्तान भी हैं। इंग्लैंड के खिलाफ टैस्ट में हार के बाद कोहली ने बल्लेबाजों को लताड़ा और इसका कारण यह था कि उन्होंने उसी पिच पर शानदार बल्लेबाजी की। हालांकि यह जिम्मेदारी कोहली की ही है कि वे टीम को कैसा बनाते हैं। अंतिम एकादश में शामिल खिलाड़ी उन्हीं की पसंद हैं। यह एक सफल कप्तान की पहचान है कि वह अपने खिलाड़ियों का इस्तेमाल कैसे करता है। पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से इस बारे में सीखा जा सकता है। उन्होंने टीम के हर खिलाड़ी के लिए एक भूमिका तैयार कर रखी थी। वे बखूबी जानते थे कि किस मौके पर किससे बल्लेबाजी कराई जा सकती है और किससे गेंंदबाजी। विराट कोहली के लिए अगले विश्व कप के लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण भी है। किसी भी टी-20 के खिलाड़ी को एक दिवसीय और टेस्ट मैचों में खेलने का मौका देना गलत नहीं है लेकिन अब जब आगामी विश्व कप में कुछ ही महीने बचे हैं तो ऐसा करना सही नहीं है। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में मिली हार से सबक लेकर कोहली को अपनी बल्लेबाजी के साथ कप्तानी को भी उतनी ही गंभीरता से लेनी चाहिए।