भारत को अक्सर बल्लेबाजी प्रधान देश के रूप में जाना जाता है और प्रशंसकों को अपने सितारों (बल्लेबाजों) का शतक लगाना और रिकॉर्ड बनाना पसंद आता है। हम अक्सर उन बल्लेबाजों को ध्यान में रखते हैं जो विशेष मील का पत्थर (खासकर 100) तक पहुंचते हैं और अन्य बल्लेबाजों के महत्त्व को अनदेखा कर दिया जाता है, जिन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया हो (जिन्होंने शतक न जड़ा हो)। इतिहास में कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां कुछ बल्लेबाजों ने ऐसी ही मैच बदल देने वाली पारियाँ खेली हैं जो शतक नहीं थे। इसलिए, यहां हम टेस्ट क्रिकेट में भारतीय बल्लेबाजों की ऐसी ही 5 पारियों पर एक नज़र डाल रहे हैं:
# 5 वीरेंदर सहवाग - 83 बनाम इंग्लैंड (चेन्नई, 2008)
दिसंबर 2008 में इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में खेला गया टेस्ट एक ऐतिहासिक टेस्ट था और इसे कई कारणों से याद किया जाता है। 7 मैचों की एकदिवसीय श्रृंखला में कटौती की गई थी, जिसमें 5 मैचों की समाप्ति के बाद ही इंग्लैंड टीम 26/11 के हमलों के बाद घर लौट गई थी। हालांकि, इंग्लैंड की टीम ने शौर्य दिखाया और अपने दौरे को पूरा करने के लिए भारत वापस आये (2 टेस्ट मैच खेले)। यह टेस्ट मैच भारत द्वारा चौथी पारी में 387 रन के लक्ष्य का पीछा किये जाने के लिये भी याद किया जाता है। सचिन तेंदुलकर ने नाबाद 103 रन बनाकर भारत के लिये जीत की राह बनाई, लेकिन लक्ष्य का पीछा करते हुए जो पारी सबसे खास रही औरजिसने पूरे मैच की दिशा तय की, वह थी वीरेंदर सहवाग की पारी। खेल के अधिकांश हिस्से में भारत पीछे था। पहली पारी में इंग्लैंड को 316 रनों पर रोकने के बाद, भारत के बल्लेबाज़ नाकाम रहे और केवल 241 रन ही बना सके। इंग्लैंड ने तब भारत को 387 का लक्ष्य रखा, जिसमें चार सत्र शेष थे। पहली पारी में केवल नौ रन बनाने के बाद, सहवाग ने भारत को एक तेजतर्रार शुरुआत दी। जिस तरह से दिल्ली के सलामी बल्लेबाज़ी ने इंग्लैंड के गेंदबाजों पर आक्रमण किया, वह शानदार था। उनके जवाबी आक्रमण ने मेहमानों को दबाव में डाल दिया। सहवाग ने किसी भी गेंदबाज को हावी होने का मौका नहीं दिया क्योंकि उन्होंने 68 गेंदों में 83 रन बनाए थे। और जब तक वह आउट हुए तो, भारत का स्कोर पहले ही 23 ओवर में 117 था। उनके 83 रनों और तेंदुलकर के 103 और युवराज सिंह की 85 रन की पारियों ने भारत को बेहतरीन मंच प्रदान किया, जिससे भारत ने एक रिकॉर्ड लक्ष्य का पीछा सफलतापूर्वक किया और श्रृंखला में 1-0 की बढ़त लेने में मदद मिली।
# 4 राहुल द्रविड़ - 81 और 68 बनाम वेस्टइंडीज़ (जमैका, 2006)
5 मैचों की एकदिवसीय श्रृंखला 4-1 से हारने के बाद, भारत ने पहले तीन टेस्ट बहुत अच्छी तरह से खेले उन्होंने उन तीन में से दो में अपना दबदबा बनाये रखा, और जब दोनों टीमें चौथे टेस्ट के लिए किंग्स्टन, जमैका पहुंची तो श्रृंखला का स्कोर 0-0 था। एक मुश्किल पिच पर, कप्तान राहुल द्रविड़ ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। जब द्रविड़ चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने आये, तो भारत बड़ी मुश्किल में था क्योंकि स्कोर 3/2 (चौथे ओवर में) था। इसके बाद उन्होंने बल्लेबाज़ी के लिये इस मुश्किल पिच पर डटकर मुकाबला किया। उन्होंने लगभग 6 घंटे तक बल्लेबाजी की, जिसमे 215 गेंदें खेली और महत्वपूर्ण 81 रन बनाए। एक बेहतरीन गेंदबाजी आक्रमण का द्रविड़ ने अपने आत्मविश्वास से मुकाबला किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि स्कोरिंग के अवसरों को अधिकतम किया जाए। इसलिए, वह भारत के लिए सर्वोच्च स्कोरर थे क्योंकि 200 पर पूरी टीम आउट हो गयी थी। अगर द्रविड़ के 81 रन नहीं, होते तो मेहमान टीम और भी कम स्कोर पर सिमट सकती थी। भारत के गेंदबाजी आक्रमण ने वेस्टइंडीज को 103 रनों पर निपटा दिया, और भारतीय कप्तान एक बार फिर मैदान पर जल्द ही आ गये क्योंकि चौथे ओवर में स्कोर 6/2 हो गया था। पहली पारी की तरह, उनके चारों ओर विकेट गिर रहे थे और वह भारतीय बल्लेबाजी क्रम का खंभा बने खड़े रहे। उन्होंने 166 गेंदों तक बल्लेबाजी करते हुए 68 रन बनाए और भारत ने 171 रन बनाए। आखिरकार, भारत ने 49 रनों से मैच जीता और द्रविड़ दोनों पक्षों के बीच अंतर थे क्योंकि उनकी दोनों परियों में आये अर्धशतकों ने भारत को 35 साल बाद वेस्टइंडीज में अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीत दिलायी। https://youtu.be/po1aqyAW6SQ
# 3 चेतेश्वर पुजारा - 92 बनाम ऑस्ट्रेलिया (बैंगलोर, 2017)
2017 में भारत का घरेलू सत्र बहुत लंबा था। उन्होंने 13 टेस्ट (चार अलग-अलग विपक्षों के खिलाफ) की मेजबानी की और यह एक लंबा और शानदार घरेलू सत्र रहा, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने 4-मैच टेस्ट श्रृंखला (बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी) खेली। एक घूमती हुई पिच पर पहले टेस्ट में अपने प्रदर्शन के साथ हर किसी को आश्चर्यचकित करने के बाद (जहां उन्होंने 333 रनों से खेल जीता) ऑस्ट्रेलिया ने दूसरे टेस्ट (बैंगलोर में) के पहले भाग में भी अपना प्रभाव बनाये रखा। भारत को 190 के स्कोर पर आउट करने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 276 रन बनाए। 87 रन की बढ़त और 1-0 से सीरीज़ में बढ़त के साथ, ऑस्ट्रेलिया स्पष्ट रूप से आगे था और दबाव भारत पर था। 39/1 के स्कोर पर बल्लेबाजी करने के लिए चेतेश्वर पुजारा ने आये और एक अच्छी शुरुआत की उन्होंने पहले ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों (स्टार्क और हेज़लवुड) के खतरे को नकार दिया और फिर स्पिनरों को खेल से बाहर कर दिया। पुजारा और केएल राहुल की दूसरी विकेट के लिए 45 रनों की साझेदारी के बाद, भारत ने तेजी से विकेट गंवाए और स्कोर 120/4 हो गया और उन्हें पिछले तीन पारियों के प्रदर्शन को देखते हुए वो गंभीर दबाव में थे। हालांकि, अजिंक्य रहाणे ने ठोस दिखने वाले पुजारा का बहुत अच्छे से साथ निभाया और दोनों ने भारत की बढ़त को 150 के पार पहुँचाया। हालांकि, यह पुजारा ही थे जिन्होंने स्पिनरों के खतरे को नकार दिया। वह 92 पर आउट हो गये और एक शानदार शतक से चूक गये। लेकिन यह उनकी पारी थी जिसने भारत की जीत की नींव रखी थी क्योंकि ऑस्ट्रेलिया चौथी पारी में 188 रन का पीछा करने में नाकाम रहा। यह केवल एक मैच को बदलने वाली पारी नहीं थी, बल्कि एक श्रृंखला-निर्णायक दस्तक भी थी। भारत ने बेंगलुरु में श्रृंखला 1-1 से बराबर कर, धर्मशाला में चौथे टेस्ट को जीत श्रृंखला 2-1 से जीती।
# 2 विराट कोहली - 54 और 41 (जोहान्सबर्ग, 2018)
इस साल की शुरूआत में शुरू हुए भारत के अफ्रीका दौरे को भारत के लिये अपनी पहली श्रृंखला जीतने का सबसे अच्छा मौका माना गया था। हालांकि, मुश्किल लड़ाई देने के बाद भी भारत पहले दो टेस्ट हार गया और इसके परिणामस्वरूप श्रृंखला भी। जब भारत तीसरा टेस्ट खेलने पहुंचा, तो भारत पर न केवल दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सफाये का दबाव था, बल्कि साथ ही 'ख़राब यात्रियों' का टैग का भी दबाव था। इसलिए, जब भारत ने टॉस जीता और हरे रंग की पिच पर पहले बल्लेबाजी की, बहुत सारे लोगों को इस फैसले पर हैरत हुई। पहले दो टेस्ट की तरह, भारत एक बार फिर से मुसीबत में था क्योंकि सलामी बल्लेबाज विफल रहे और भारत 13/2 पर संघर्ष कर रहा था। हालांकि, पिछले टेस्ट में 153 रन बनाने वाले कप्तान विराट कोहली ने आगे बढ़कर टीम का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया। उन्होंने एक ऐसी पिच पर 54 रन बनाये जो कि बहुत कुछ कर रही थी और भले ही दो बार उनको जीवनदान मिला, लेकिन जिस तरह से उन्होंने बल्लेबाजी की, वह शानदार था। उनके 54 रन के साथ पुजारा ने 50 रन बनाकर भारत को पतन से बचाया (भारत ने पहली पारी में 187 रन बनाए)। दक्षिण अफ्रीका को 194 से नीचे के स्कोर पर रोकने के बाद भारत को चौथी पारी में बचाव के लिए एक अच्छे स्कोर की जरूरत थी। कोहली को एक बार फिर जल्दी अंदर आना पड़ा, क्योंकि 15 रन के अंदर भारत के दो विकेट चले गये थे। एक बार फिर कोहली ने लड़ाई लड़ना शुरू कर दी। एक पिच पर जहां गेंदें लगातार असर दिखा रही थी, भारतीय कप्तान ने पिच पर लड़ाई जारी रखने का फैसला किया। वह दूसरी पारी में केवल 41 रन बना सके थे, लेकिन वह पारी निश्चित रूप से सर्वश्रेष्ठ होगा। उनके 54 और 41 रनों की पारी के बूते भारत ने शानदार जीत दर्ज की और दक्षिण अफ्रीका को 63 रनों से हरा दिया। यह 7 वर्षों में उपमहाद्वीप (वेस्टइंडीज को छोड़कर) के बाहर भारत की मात्र दूसरी जीत थी।
# 1 वीवीएस लक्ष्मण - 96 (डरबन, 2010)
सेंचुरियन में पहला टेस्ट हारने के बाद, दक्षिण अफ्रीका ने भारत को बल्लेबाजी के लिये आमंत्रित किया। भारतीय सलामी बल्लेबाजों की अच्छी शुरूआत के बाद, नियमित अंतरालों पर टीम ने विकेट गंवा दिए। अक्सर भारत को संकट से निकालने वाले, वीवीएस लक्ष्मण जब बल्लेबाजी करने के लिए मैदान पर उतरे तब स्कोर 79/3 था। वह शानदार फॉर्म में भी दिख रहे थे और 38 रन बनाए थे, हालाँकि एक पुल शॉट को मिडऑन पर खेल बैठे, जहां सात्सोबे ने एक शानदार कैच लपक उन्हें आउट किया था। भारत ने 205 बनाये थे और लक्ष्मण के 38 रन उस पारी में सर्वोच स्कोर था। बल्ले के साथ निराशाजनक प्रदर्शन करने के बाद, भारत के गेंदबाजों ने टीम को खेल में वापस ला दिया क्योंकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को सिर्फ 131 के स्कोर पर सिमेट दिया था। लेकिन जल्द ही भारत का स्कोर 48/3 (और जल्दी ही 93/5 हो गया) तो ऐसा लगा की बढ़त हाथ से निकल रही थी। लेकिन भारत के दूसरा पारी के विशेषज्ञ अभी भी क्रीज पर थे। वीवीएस लक्ष्मण ने कई मौकों पर इस तरह की परिस्थितियों से अपनी टीम को परेशानी से बाहर कर दिया था। लेकिन यहां एक शीर्ष स्तर के गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ दबाव अलग था। लेकिन उन्होंने लड़ाई लड़ी और 96 रन बनाकर भारत को 228 रन के स्कोर पर पहुँचा दिया और मेजबान टीम को 303 का लक्ष्य मिला। जिस तरह से उन्होंने निचले क्रम के साथ बल्लेबाजी की, वह शानदार था। भारत ने 87 रनों से इस मैच को जीता और श्रृंखला में बराबरी कर ली। लक्ष्मण को उनकी शानदार बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच मिला। लेखक: साहिल जैन अनुवादक: राहुल पांडे