प्रोफेशनल जीवन में रिजेक्शन एक ऐसे चीज है जो किसी भी व्यक्ति को हजम नहीं होती। इसके बाद वह अपने आप से ही सवाल करने लगता है। खेल भी इससे परे नहीं है, यहाँ भी कई प्रतिभावान खिलाड़ियों को करियर के दौरान कई बार रिजेक्शन झेलना पड़ा है। भारतीय क्रिकेट में कई ऐसे खिलाड़ी है जो घरेलू मैचों में शानदार प्रदर्शन करने के बाद अंतरराष्ट्रीय मैचों में कुछ ख़ास ही कर पाए। कुछ को चोट की वजह से बाहर होना पड़ा तो किसी की किस्मत ने साथ छोड़ दी। हम आपको आज ऐसे ही 5 खिलाड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं: #5 वसीम जाफ़र एक समय वसीम जाफ़र को भारतीय क्रिकेट का अगला सितारा कहा जाता था। घरेलू क्रिकेट में जफ़र के बल्ले ने लगातार रन उगले हैं। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में वह देश के 5वें सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं। इन सब के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मैचों के जफर ये जलवा नहीं दिखा पाये। प्रथम श्रेणी मैचों में 18 हजार से ज्यादा रन बनाने वाले इस बल्लेबाज ने भारत के लिए अपना डेब्यू मैच साल 2000 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेला था। वहीं अंतिम टेस्ट मैच 2008 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेला था। इस दौरान जाफ़र को सिर्फ 31 टेस्ट और 2 वनडे मैच खेलने का मौका मिला। इस दौरान उनके बल्ले से 5 शतक और 11 अर्धशतकीय पारियां निकली। इससे साफ हो जाता है कि उन्होंने मिले सीमित मौकों का फायदा नहीं उठाया। यह कहा जा सकता है कि चयनकर्ताओं ने भी उन्हें मौके नहीं दिए लेकिन जो मौके मिले जाफ़र उन्हें भुनाने में असफल रहे। #4 सुब्रमण्यम बद्रीनाथ जब किसी टीम के पास मध्यक्रम में राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसा बल्लेबाज हो तो अन्य खिलाड़ी को मौका मिलना लगभग नामुमकिन हो जाता है। घरेलू मैचों में तमिलनाडु के लिए रनों का अम्बर लगाने वाले बद्रीनाथ को अंतरराष्ट्रीय मैचों में ना के बराबर मौका मिला। अपने करियर में उन्हें सिर्फ 2 टेस्ट, 7 वनडे और 1 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिला। घरेलू मैचों में लगातार रन बनाने के बाद भी बद्रीनाथ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को सबित करने का पूरा मौका नहीं मिला। जब सौरव गांगुली के संन्यास के बाद उन्हें मौका मिला तो उनकी उम्र 30 के करीब थी। ऐसे भी चयनकर्ताओं ने उनकी जगह युवा खिलाड़ियों पर दांव लगाना ज्यादा सही समझा। इसी वजह से चेन्नई सुपरकिंग्स के इस पूर्व बल्लेबाज को भारतीय टीम में दोबारा मौका नहीं मिला। #3 मोहम्मद कैफ (टेस्ट) भारतीय वनडे क्रिकेट के इतिहास में अलग मुकाम रखने वाले मोहम्मद कैफ को टेस्ट टीम में कभी पूरा मौका नहीं मिला। भारत के सबसे बेहतरीन फील्डरों में गिने जाने वाले कैफ टेस्ट में मौके का इंतजार करते रह गए। कैफ ने जिस समय अपने करियर की शुरुआत की थी उस समय टेस्ट मैचों में भारत के पास ‘फैब फोर’ था, ऐसे में उन्हें मौका मिलना मुश्किल ही था। कुछ समय पहले ही क्रिकेट से संन्यास लेने वाले 37 वर्षीय इस बल्ल्लेबाज ने भारत के लिए 125 वनडे मैच खेल लेकिन टेस्ट में उन्हें सिर्फ 13 मैचों में खेलने का मौका मिला, जहाँ 22 पारियों में उन्होंने 3 अर्धशतक और एक शतक समेत 624 रन बनाये। कैफ के खेलने का तरीका भी टेस्ट मैचों के बल्लेबाज की तरह था। यही कारण है की उन्हें वनडे से पहले टेस्ट में डेब्यू करने का मौका मिला पर वनडे क्रिकेट की तरह मौके नहीं मिलने की वजह से कैफ रेड बॉल क्रिकेट में अपनी पहचान नहीं बना पाये। #2 विनोद काम्बली विनोद काम्बली के एक शानदार बल्लेबाज से गुमनाम बनाने की कहानी काफी लम्बी है। स्कूल मैच में 644 रनों की साझेदारी बनाकर चर्चा में आये मुंबई के दो बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और विनोद काम्बली को भारतीय क्रिकेट का भविष्य कहा जाता था। एक तो अपने करियर के अंत में क्रिकेट का भगवान बनकर संन्यास लिया तो दूसरा गुमनाम रह गया। जहाँ तेंदुलकर के अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत काफी साधारण रही थी वहीं काम्बली का डंका पुरे विश्व में बज गया था। अपने दूसरे और तीसरे टेस्ट में ही लगातार दोहरा शतक बनाकर काम्बली क्रिकेट प्रेमियों की जुबान पर छा गये थेलेकिन उसके बाद उनके करियर का ग्राफ लगातार नीचे जाने लगा। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज का टेस्ट करियर सिर्फ 17 मैचों का ही रहा जिसमें उन्होंने 54.20 की औसत से 1084 रन बनाये। इसमें 2 दोहरे शतक, दो शतक और 3 अर्धशतक शामिल था। इसके साथ ही उन्होंने भारत के लिए 104 वनडे मैच भी खेले। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शानदार शुरुआत के बाद उनका ग्राफ लगातार नीचे गिरता गया जिसकी वजह से चयनकर्ताओं में उन्हें मौका देना भी बंद कर दिया। #1 विजय मर्चेंट प्रथ श्रेणी क्रिकेट इतिहास में विजय मर्चेंट का बल्लेबाजी औसत सर डॉन ब्रेडमैन के बाद सबसे बेहतरीन है। मुंबई के इस बल्लेबाज का प्रथम श्रेणी औसत 71.64 का था। मर्चेंट अपने इस घरेलू मैचों के औसत को अंतरराष्ट्रीय मैचों में बरकरार नहीं रख पाये। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने भारत के लिए सिर्फ 10 टेस्ट मैच खेले जिसकी 18 पारियों में उनका औसत 47.72 का रहा। इस दौरान उनके बल्ले से 3 शतक और 3 अर्धशतक निकले। कंधे में चोट की वजह से उन्हें जल्द ही क्रिकेट से संन्यास लेना पड़ा। भारत के लिए खेले अपने आखरी टेस्ट में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 154 रनों का स्कोर बनाया था। लेखक: रुपिन काले अनुवादक: ऋषिकेश सिंह