वह दुनिया के बेहतरीन फिनिशर में आते हैं। धोनी ने चेन्नई की कप्तानी शुरू की है और इसी वजह से वह टी-20 के सबसे सफल कप्तानों में गिने जाते हैं। हालांकि वह पुणे की कप्तानी करने के दौरान संघर्ष करते हुए नजर आये हैं। वह पहले भारतीय कप्तान बने थे जो आईपीएल में खिताबी जीत हासिल किया था। धोनी के नेतृत्व में चेन्नई हर बार प्लेऑफ में पहुंची है। उन्होंने आईपीएल में ही नहीं बल्कि साल 2010 में चैंपियंस लीग का भी ख़िताब अपने नाम किया है। धोनी चेन्नई की टीम को चुनने के भी कुंजी थे। गंभीर की तुलना में धोनी बेहद ही शांतचित कप्तान हैं। वह अपने एकादश में बहुत कम ही परिवर्तन करते हैं। वह हर मैच में बहुत कम ही बदलाव करते हैं। धोनी ने ऐसी टीम तैयार की जिसमें नए चेहरे बहुत कम ही नजर आये थे। रविन्द्र जडेजा, आर आश्विन, मुरली विजय और मोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी काफी भाग्यशाली रहे जिन्हें धोनी ने मौका दिया था। इसके आलावा जोगिन्दर शर्मा और मनप्रीत गोनी को भी मौका दिया था। लेकिन अब वह क्रिकेट से दूर हैं। वह खराब फॉर्म वाले खिलाड़ी को मौका देते हैं, भले ही बेंच पर अच्छी फॉर्म वाला खिलाड़ी बैठा हो। उदहारण के तौर पर उन्होंने बाबा अपराजित को चेन्नई में तीन साल पहले लिया था। लेकिन एक भी मौका उन्हें नहीं दिया। इसके बाद वह वह जब पुणे के कप्तान बने तो उन्होंने बाबा को फिर मौका नहीं दिया। उनकी क्षमता है कि वह दबाव में बेहतरीन बल्लेबाज़ी करते हैं। धोनी ने हमेशा अन्य फ्रैंचाइज़ी की तुलना में अपनी टीम को काफी संतुलित रखा है। वह एक ही खिलाड़ी के भरोसे रन और विकेट लेना नहीं छोड़ते हैं। वह खुद परिस्थिति के हिसाब से खेल पर कंट्रोल करने की कोशिश करते रहे हैं। साथ ही 34 बरस के इस खिलाड़ी के पक्ष में काफी लक भी रहा है। उन्होंने अपनी कप्तानी में चेन्नई को 129 मैचों में 60.93 फीसदी सफलता दिलाई है। धोनी की टीम का प्रदर्शन इस बार खराब रहा है। लेकिन उन्होंने पंजाब के खिलाफ शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए एक ओवर में 23 रन जीत के लिए जरूरी बनाये थे। बतौर कप्तान उन्होंने 83 मैच में जीत हासिल की है। उनका विनिग रेट 58.45 फीसदी है। लीडरशिप स्किल और आंकड़े कैप्टन कूल के ही पक्ष में जाते हैं। उनसे केकेआर के कप्तान गंभीर पीछे हैं। लेखक श्रुति रवि, अनुवादक मनोज तिवारी