भारत में गली क्रिकेट को बेहद लोकप्रिय बनाने वाले 5 मुख्य कारण

यहाँ रन के लिए नए तरीके बन जाते हैं

अगर आप क्रिकेट के दीवाने हैं और इस खेल के दिग्गजों को आदर्श मानते हुए भारत में पले-बढ़ें हैं तो ज़ाहिर है कि आपने कभी न कभी गली क्रिकेट ज़रूर खेला होगा। बचपन में गलियों में क्रिकेट खेलते हुए आपने भी कभी शतक जड़ा होगा और फिर आगे चलकर उसकी कहानी डींगे मारने के अंदाज़ में अपने पोते को सुनाई होगी। क्या उस शतक को आप कभी भुला सकते हैं? छोटे-छोटे मैदानों पर पूरे पागलपन और जुनून के साथ खेले गए मैच, जिनके दौरान अंतहीन भीड़ भी मैदान में मौजूद रहती थी, उन मैचों को कोई भी भुला नहीं सकता। अपनी विशेष नियमों और तरक़ीबों के चलते गली क्रिकेट का अपना एक अलग ही मज़ा है। उन गेंदों की संख्या का अंदाज़ा लगाइए, जिन्हें आपने खेलते हुए खो दिया। उन अनगिनत खिड़कियों के बारे में सोचिए जो आपके बेरतरतीब शॉट्स की वजह से टूट गईं। उन पुराने दिनों का माज़ी आपके भीतर सालों पहले के दौर में जाकर एक बार फिर से पागलपन से भरपूर उस खेल का हिस्सा बनने की इच्छा पैदा कर देता है। आइए नज़र डालते उन पाँच कारणों पर जो पूरे देश में गली क्रिकेट को इतना लोकप्रिय बनाते हैः

#1 रन बटोरने के नए-नए तरीके

[caption id="attachment_12686" align="alignnone" width="602"] यहाँ रन के लिए नए तरीके बन जाते हैं[/caption] रोज ही खुद से खोजे गए नए-नए नियमों और तरक़ीबो के सहारे रन बटोरने की प्रथा, इस गली क्रिकेट के मज़े में इज़ाफ़ा कर देती है। अगर आप बॉल को बाईं तरफ़ की दीवार पर सीधे मार देते हैं तो आपको दो रन मिल जाएँगे। कई बार तो आपके घरेलू मैदान के नियमों के आधार पर लंबे छक्कों के लिए आपको 8 या 12 रन भी मिल जाते हैं। इन नवीन तरीकों के बल पर बल्लेबाज़ गेंद को निर्धारित जगह पर मारकर ज़्यादा फ़ायदा बटोरने के लिए तरह-तरह के प्रयास करता है और फलस्वरूप प्रायः उसका खेल भी बेहतर होता जाता है। ज़्यादातर विकटों के पीछे गेंद जाने पर रन नहीं मिलते। उन उभरते हुए क्रिकेटरों के लिए यह अच्छी ख़बर नहीं है, जो पहले की अपेक्षा स्कूप और अपरकट पर अधिक ध्यान देते हैं। गली क्रिकेट खेलने वाले बल्लेबाज़ों को अंधाधुंध बल्लेबाज़ी के दौरान पास के तालाब, आस-पास के घरों की खिड़कियों और मैदान के पास से जाते राहगीरों का ख़्याल भी रखना होता है।

#2 उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल

[caption id="attachment_12687" align="alignnone" width="671"]बल्ले तो किसी भी लकड़ी से बन जाते हैं बल्ले तो किसी भी लकड़ी से बन जाते हैं[/caption] गली क्रिकेट इसलिए भी खास है क्योंकि इसे कहीं भी और कितने भी खिलाड़ियों के साथ खेला जा सकता है। कई बार तो फ़ील्डिंग के लिए इतने खिलाड़ी हो जाते हैं कि शॉट मारने के उपयुक्त जगह ढूँढना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। यह क्रिकेट के खेल का बहुत ही रोचक प्रारूप है जिसमें परिस्थितियों और स्थान के मद्देनज़र नियमों को तोड़-मरोड़ या बदल लिया जाता है। ईंटो को एक के ऊपर रख कर विकेट तैयार कर लिया जाता है और दूसरे छोर पर खड़ा बल्लेबाज़ रन लेने के लिए अक्सर झाड़ू को ही बैट बना लेता है। ‘लास्ट मैन रूल’ के सहारे तो अंत में बचा एक खिलाड़ी भी बल्लेबाज़ी जारी रख सकता है। चूँकि संसाधनों की कमी के चलते पगबाधा आउट को गली क्रिकेट में औपचारिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता इसलिए अक्सर गेंदबाज़ द्वारा बल्लेबाज़ को आवश्यकता से अधिक विकेट घेरने पर चेतावनी भी मिलती रहती है।

#3 नो-बॉल का नियम

[caption id="attachment_12688" align="alignnone" width="740"]नो बॉल के यहाँ अलग ही नियम हैं नो बॉल के यहाँ अलग ही नियम हैं[/caption] यह नियम गली क्रिकेट के सबसे आश्चर्यजनक नियमों में से एक है। इस नियम के तहत अम्पायर, गेंद की गति आभासी रूप से निर्धारित गति से अधिक पाए जाने पर उसे नो-बॉल करार दे सकता है। इस नियम के चलते नो-बॉल के संबंध में प्रायः संशय की स्थिति बनी रहती है। गली क्रिकेट में अम्पायर हमेशा बैटिंग टीम से ही होता है। कई बार आउट होने वाला बल्लेबाज़ तुरंत ही अम्पायर की जगह ले लेता है और अक्सर बैटिंग टीम का अंधसमर्थन करने लगता है। अक्सर इसका फ़ायदा उठाकर आउट होने वाला बल्लेबाज़ अम्पायर को तिरछी नज़रो से देखता है और उसे इस बात के लिए राज़ी कर लेता है कि, गेंद की गति नियमों के अनुकूल नहीं थी और उसे नो-बॉल करार दे दिया जाए। यदि अम्पायर ने उसके पक्ष में निर्णय नहीं दिया तो मैच के बाद उसकी खैर नहीं।

#4 हमेशा गुस्से में रहने वाला पड़ोसी

[caption id="attachment_12689" align="alignnone" width="700"]इस क्रिकेट में पड़ोसियों से झगड़े भी हो सकते हैं इस क्रिकेट में पड़ोसियों से झगड़े भी हो सकते हैं[/caption] बल्ला हाथ में आते ही आप खुद को अगला धोनी समझने लगते हैं और हेलीकॉप्टर शॉट की पूरी तरह से नकल करने की कोशिश करते हैं। तभी पता चलता है कि टेनिस बॉल ने पास से गुज़रने वाले राहगीर को चोट पहुँचा दी है और फिर वह अपने हिसाब से आप पर गुस्सा उतारता है। कितनी बार आप भी इस वाकिए के गवाह रह चुके हैं? इससे भी ख़राब हालात तब होते हैं, जब गेंद पड़ोस के गुस्सैल अंकल के घर में चली जाए। गली क्रिकेट खेलने वाला हर शख़्स यह जानता है कि, उनके खेल के लिए सबसे खतरनाक विलेन और बिल्कुल शैतान का दूसरा रूप है, उनका गुस्सैल पड़ोसी। ऐसे किरदार तो कई बार फिल्मों का हिस्सा भी रह चुके हैं। वह आपसे कहेगा कि, कल से आपका खेल बंद और आपके घरवालों को भी ख़बर करने की चेतावनी देगा। निश्चित रूप से वह आपकी गेंद भी वापस नहीं करेगा। ऐसी चेतावनियों की संभावना हमेशा बनी रहती है, जिसकी वजह से खेल को शांतिपूर्वक जारी रखने क लिए नियमों में परिवर्तन की ज़रूरत पड़ती है। अतः अगर बल्लेबाज़ ने अगली बार से कथित स्वार्थी और गुस्सैल अंकल के घर में गेंद मारी तो उसे आउट करार दे दिया जाएगा। ऐसे ही आउट मान लिए जाने के कुछ और भी नियम हैं। जैसे कि, अगर बल्लेबाज़ ने लम्बा छक्का मारा और गेंद खो गई तो उसे आउट मान लिया जाएगा। आउट होने के बाद गेंद को ढूँढने का काम भी आपको करना होता है। गेंद खोजने के लिए दीवार फाँदनी पड़ती है, तालाब में तैरना पड़ता है और कई बार तो गटर से भी गेंद निकालकर लानी पड़ती है।

#5 झगड़े

[caption id="attachment_12690" align="alignnone" width="725"]गली क्रिकेट का एक दृश्य गली क्रिकेट का एक दृश्य[/caption] शायद ही कोई ऐसा गली क्रिकेट का खिलाड़ी हो, जो मोहल्ले के किसी दबंग खिलाड़ी से झगड़े के बाद घायल नाक और अहं के साथ घर न लौटा हो। संशय से भरे हुए नियमों के चलते असहमति और झगड़ों की पर्याप्त सम्भावनाएँ बनी रहती हैं। बैटिंग टीम का अम्पायर लगभग हर बार वाजिब आउट देने से भी कतराएगा। औपचारिक स्कोर-बोर्ड के अभाव में, मैच के दौरान समय विशेष पर वास्तविकता में कितने रन बन चुके हैं, इस बात पर भी अक्सर विवाद बना रहता है। इसके बाद एक बहुत ही आम समस्या आती है। उस मोहल्ले के दबंग खिलाड़ी की, जो कभी खुद को आउट ही नहीं मानता। वह विकेट-कीपर के हाथों में कैच दे सकता है, स्टम्पिंग आउट हो सकता है और कई बार तो बोल्ड होने के बाद उसके विकेट तक बिखर जाते हैं लेकिन अगर आपने उससे क्रीज़ छोड़ने की बात कहने की हिम्मत करी तो आपकी पिटाई भी हो सकती है। अतः जब उस दबंग खिलाड़ी की बारी आ जाए तब आप इस बात के लिए तैयार हो जाएँ कि, आपको पूरा दिन फ़ील्डिंग ही करनी पड़ेगी और खाली हाथ ही घर लौटना होगा। लेखकः दीप्तेश सेन, अनुवादकः देवान्श अवस्थी

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