21वीं सदी के इस आधुनिक क्रिकेट दौर में बड़ी टीमों के लिए दिल टूटने वाले पल

खेलों की दुनिया भी, जीवन की तरह एक असमानताओं से भरी दुनिया है। जहाँ एक पल कोई ऊंचाइयों को छू रहा होता है, तो अगले ही पल जमीन पर होते हैं। क्रिकेट भी कोई अपवाद नहीं है क्योंकि 21वीं सदी की शुरुआत से ही बहुत सारे ऐसे उदाहरण आये हैं जहां शीर्ष 8 टीमों के लिए दिल टूटने जैसी घटनाएँ हुई है। यह दौर, आंशिक रूप से बांग्लादेश और हाल ही में अफगानिस्तान के पुनरुत्थान का गवाह रहा है तो साथ ही बदलते समय के अनुसार अपने घरेलू बुनियादी ढांचे को बदलने में अपनी अक्षमता के चलते, दुनिया की शीर्ष टीमों के लिये कई ऐसे अवसर आये जब वह अपने प्रशंसकों को निराश कर बैठे। यहाँ हम सदी की शुरुआत के बाद से बड़ी बड़ी टीमों के सबसे ज्यादा दर्दनाक पलों पर नजर डाल रहें हैं।

# 8 वेस्टइंडीज़ का चैंपियंस ट्रॉफी 2017 के लिए क्वालीफाई करने में नाकाम रहना

वेस्टइंडीज क्रिकेट का पिछले दो दशकों में प्रदर्शन का स्तर नीचे ही जाता रहा है। 80 और 90 के दशक के शुरुआती दिनों में महान खिलाड़ियों के संन्यास लेने के बाद से शुरू हुई गिरावट और जमीनी स्तर पर ख़राब प्रणाली की कमी के साथ ही चयन नीति और उसके क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ी के संगठन के बीच तालमेल की कमी के चलते इस देश का क्रिकेट संघर्ष ही करता रहा है। फिर भी, ब्रायन लारा, रामनरेश सरवान, क्रिस गेल, शिवनारायण चंदरपॉल और कई अन्य प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के चलते वेस्टइंडीज क्रिकेट रह रह कर अपने पुराने दिनों की झलक दिखाता रहा है। 2004 में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में उनकी नाटकीय जीत इस बात का एक उदाहरण है। 2004 में विंडीज़ क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ियों के बीच मनमुटाव उस स्तर तक पहुच गया कि विंडीज ने 2014 के भारत दौरे को बीच में ही छोड़ दिया। इसके बाद यह पूर्व चैंपियन 2017 में चैंपियंस ट्रॉफी के लिए क्वालीफाई करने में भी नाकाम रहा, जो की उनके बेहतरीन इतिहास पर एक काला धब्बा है। विंडीज के लिए चीजें और भी बदतर हो सकती हैं क्योंकि उन्हें अभी जिम्बाब्वे में विश्व कप क्वालीफायर खेलना हैं और इस प्रतियोगिता में जीत ही उन्हें इसमें खेलने योग्य बनाएगी, एक ऐसी प्रतियोगिता में जिसमे वो लंबे समय तक विजेता रहे थे।

# 7 श्रीलंका का टी-20 फाइनल 2012 में घर पर खेलते हुए जीतने में नाकाम रहना

श्रीलंका आईसीसी के टूर्नामेंटो में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली टीमों में से एक रही है। 2007 और 2011 के 50 ओवर प्रारूप के विश्व कप के फाइनल में और 2009 और 2010 के पूर्ववर्ती टी 20 के दो फाइनलों में भी शामिल होने के बावजूद, विश्व खिताब से श्रीलंका दूर रह गई। 2012 में श्रीलंका के लिए घर में खेलते हुए काफी संभावनाएँ जगी थीं और उनके दो महान खिलाड़ियों कुमार संगकारा और महेला जयवर्धने के लिए एक बेहतरीन अवसर था कि वो घर की धरती पर अपना आखिरी बड़ा टूर्नामेंट जीत के साथ खत्म करें। श्रीलंका जीत की राह पर बढ़ते हुए दिख रहा था क्योंकि उन्होंने वेस्टइंडीज को पहले 6 ओवेरों में ही 14 पर 2 के स्कोर पर ला दिया था, जिसमें क्रिस गेल का एक विकेट भी शामिल था। हालांकि, मार्लन सैमुअल्स की संभल कर शुरूआत की गयी पारी जल्द ही एक आक्रामक अंदाज़ में बदल गयी और उन्होंने 78 रन की पारी खेली, जिससे उनकी टीम को कुल 6-138 का एक लड़ने लायक स्कोर मिला। उनकी पारी वेस्टइंडीज़ के लिए के लिये एक मैच जिताने वाली पारी साबित हुई, क्योंकि श्रीलंका के बल्लेबाजों ने गैरज़िम्मेदारी भरा प्रदर्शन किया और पूरी टीम केवल 101 के स्कोर पर निपट गयी है और घरेलू मैदान पर 36 रनों से एक दिल तोड़ने वाली हार के चलते, खिताब जीतने में नाकाम रही।

# 6 न्यूज़ीलैंड का 2015 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में मेलबर्न पर हारना

आईसीसी की प्रमुख प्रतियोगिताओं में ब्लैककैप्स हमेशा ‘छुपे रुस्तम ' रहे हैं, लेकिन 2015 के विश्वकप में वह टूर्नामेंट जीतने के प्रबल दावेदारों में से एक थे। ब्रेंडन मैकुलम की कप्तानी और मार्टिन गप्टिल, केन विलियमसन, रॉस टेलर,टिम साउदी और ट्रेंट बोल्ट जैसे मैच विजेताओं से भरी टीम के साथ न्यूजीलैंड ने विश्व कप में प्रवेश किया था और उनका प्रदर्शन भी उसी के अनुरूप रहा। न्यूजीलैंड का एक सेट फॉर्मूला था जिसने विश्व कप में उन्हें सफलता दिलायी थी। मैकुलम की आक्रमक बल्लेबाज़ी से लेकर टेलर और विलियमसन के मध्यक्रम में लचीलापन टीम को मजबूती प्रदान करते थे। साथ ही गेंदबाजी में साउदी और बोल्ट की तेज़ गेंदबाजी जोड़ी के प्लान ने उन्हें लगातार पूरे विश्व कप में लाभ पहुँचाया जिससे उन्हें पहली बार फाइनल तक पहुंचने में क़ामयाबी हासिल हुई। लेकिन पहले विश्व कप में उनकी जीत का अच्छा मौका तब हाथ से फिसलने लगा जब मिचेल स्टार्क ने ब्रेंडन मैकुलम के स्टंप पर गेंद फेक उन्हें आउट करते हुए न्यूजीलैंड के लिए जीत के फार्मूले के प्रमुख किरदार को खत्म कर दिया। ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज की क्रूर गेंदबाजी के सामने कीवी टीम 183 के स्कोर पर निपट गयी, और ऑस्ट्रेलिया ने पांचवें विश्व कप को सात विकेट से जीतकर अपने नाम किया।

# 5 विश्व कप 2015 में इंग्लैंड का बांग्लादेश के हाथों हारकर शुरआती चरण में बाहर हो जाना

इंग्लैंड को अपनी पुरानी शैली की क्रिकेट और सोच का सबसे बड़ा नुकसान तब हुआ जब 2015 विश्व कप में उन्हें झटका लगा। यह वो वक़्त था जब कप्तान एलेस्टेयर कुक से विश्वकप से पहले ही कप्तानी छीन ली गयी थी और इंग्लैंड एक औसत दर्जे की क्रिकेट खेल रही थी। लेकिन इसके बावजूद इंग्लैंड के एकदिवसीय क्रिकेट के बड़े से बड़े आलोचक को भी ऐसे परिणाम की उम्मीद नही थी कि टीम को ग्रुप स्टेज से ही हार कर लौटना होगा। यह एक एक सदमे की तरह था क्योंकि इंग्लैंड एक जोश से भरी अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना लगातार नाम बना रही बांग्लादेश के खिलाफ हार गया था और बाद में क्वार्टर फाइनल चरण में पहुँचने में नाकाम रहा था। हालांकि, आगे चलकर यह दर्दनाक क्षति इंग्लिश क्रिकेट के लिए एक बहुत आवश्यक उत्प्रेरक साबित हुई है। विश्व कप के बाद इंग्लैंड ने खेल का एक आक्रामक ब्रैंड अपना लिया है जिसके चलते अब उन्हें अक्सर 300+ का स्कोर बनाते देखा जाता है और 2019 में अपनी ही जमीन पर होने जा रहे अगले विश्व कप का एक प्रमुख दावेदार माना जा रहा है।

# 4 2007 में दक्षिण अफ्रीका का घर पर ही आईसीसी वर्ल्ड टी 20 से बाहर हो जाना

1999 में दक्षिण अफ्रीका के विश्व कप से बाहर निकलने और 2003 में घर पर एक बहुत विचित्र स्थिति में डकवर्थ लुईस स्कोर का अनुमान गलत लगाना उन्हें महंगा पड़ा और वह बाहर हो गये। लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने अपने क्रिकेट के इतिहास में एक और दर्दनाक किस्सा तब जोड़ा जब वे 2007 में उद्घाटन विश्व टी 20 के सेमीफाइनल में प्रवेश करने में नाकाम रहे थे, वो भी टूर्नामेंट में लगातार नियमित अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद। दक्षिण अफ्रीका भारत के खिलाफ सुपर 8 मैच में बिना कोई मैच हारे आया था और उनकी उम्मीद तब और बढ़ गयी थी कि जब भारत को 3-33 पर पहले पॉवरप्ले में रोक कर रखा। लेकिन आगे की पारी में रोहित शर्मा ने भारत के भविष्य की झलक दिखाते हुए, अपने लेट कट, ऑफ और बैकफुट पुल के साथ एक बेहतरीन पारी खेली। शर्मा ने नाबाद 50 रन बनाये, और इस दौरान एमएस धोनी (45) का उन्हें साथ मिला। दोनों ने 20 ओवर में भारत को 5 विकेट पर 153 रन के सम्मानजनक स्कोर तक पहुँचाया। यह लक्ष्य और समीकरण दक्षिण अफ्रीका के लिए आसान था, जहाँ उन्हें न्यूजीलैंड से बेहतर रनरेट के लिए 126 रनों की जरुरत थी, जिसके बाद वह भारत के साथ प्रतियोगिता के सेमी फाइनल में पहुच जाते। हालांकि, आरपी सिंह और श्रीसंत ने बेहतरीन तेज गेंदबाजी और स्विंग गेंदबाजी के दम पर अफ्रीका को 126 रनों से पहले ही रोक दिया। दक्षिण अफ्रीका की ओर से मार्क बाउचर (36) और एल्बी मोर्कल (36) के बीच 69 रन की साझेदारी के बावजूद स्कोर 9-116 ही बन सका और प्रोटियाज़ टूर्नामेंट से बाहर हो गया।

# 3 2010 की एशेज में ऑस्ट्रेलिया का घर में ही हार जाना

ऑस्ट्रेलिया के दिग्गजों के लिए यह एक दर्दनाक क्षण था, क्योंकि ग्लेन मैकग्रथ, शेन वॉर्न, जस्टिन लैंगर, एडम गिलक्रिस्ट जैसे महान खिलाड़ियों के संन्यास के बाद कुछ समय के लिये ऑस्ट्रेलिया का प्रदर्शन औसत दर्जे का था। लगभग दो दशकों तक ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच एशेज की एक ही पठकथा रही थी, जहाँ इंग्लैंड के उपर ऑस्ट्रेलिया ने लगातार अपना वर्चस्व बनाये रखा था, और पहली गेंद के फेके जाने से पहले ही इंग्लैंड की हार तय मानी जाती थी। लेकिन 2010 में यह कहानी बदल गयी, जब एक मजबूत बल्लेबाजी क्रम और अच्छे गेंदबाजी आक्रमण वाली इंग्लैंड की टीम एशेज में अलग इरादों से उतरी लगी थी। पीटर सिडल की हैट-ट्रिक ने ऑस्ट्रेलिया की उम्मीदों को बनाये रखा। लेकिन एलेस्टेयर कुक और केविन पीटरसन की दूसरी पारी में साझेदारी हुई, जो इस बात की एक झलक थी कि आने वाले टेस्ट मैचों में क्या होने वाला है। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने पर्थ की तेज पिच पर तेज गेंदबाज मिचेल जॉनसन के बेहतरीन स्पेल की बदौलत, इंग्लैंड से 1-1 की सीरीज में बराबरी की। लेकिन बॉक्सिंग डे टेस्ट के पहले सत्र में ही मेज़बान टीम एशेज हार गई थी जब पूरी टीम केवल 98 रन पर आउट हो गयी। चौथा टेस्ट ऑस्ट्रेलिया पारी और 157 रनों से हारा, जो कि ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी हार में से एक थी और बाद में इंग्लैंड द्वारा एससीजी में एक और अच्छे ​​प्रदर्शन के बाद श्रृंखला भी 1-3 से हार गई। हालाँकि इसके बाद 2010-11 के बाद से 10 टेस्ट मैचों में नौ टेस्ट मैच इंग्लैंड हार चुका है।

# 2 2010 में पाकिस्तान का स्पॉट फिक्सिंग स्कैंडल

पाकिस्तानी क्रिकेट और विवादों का एक पुराना इतिहास रहा है, लेकिन यह प्रकरण पाकिस्तान क्रिकेट को एक नए-निम्न स्तर ले गया, जब 2010 में लॉर्ड्स टेस्ट में उनके कप्तान सलमान बट्ट सहित तीन खिलाड़ियों पर एक बुकी से रिश्वत लेने और गेंदबाजी के दौरान जानबूझ कर नो-बॉल फेकने का आरोप लगाया गया। पाकिस्तान 2010 की गर्मियों में हारा था, मगर उनके कप्तान सलमान बट, तेज गेंदबाज मोहम्मद आसिफ और युवा गेंदबाज़ मोहम्मद आमीर ने प्रभावित किया था। लेकिन बाद में सामने आये स्पॉट फिक्सिंग कांड में तीनो खिलाड़ियों को शामिल पाया गया था। बुकी मज़हार मजीद (सलमान बट्ट के एजेंट) द्वारा किए गए खुलासे के अनुसार उसने दावा किया कि उन्होंने खिलाड़ियों को नियंत्रित किया और लॉर्ड्स टेस्ट के दौरान तीन नो-बॉल फेकने के लिए एक मोटी रकम का भुगतान किया। अगर मोहम्मद आमिर की ओर से फेकी गयी पहली नो-बॉल ने शक उत्पन्न किया तो, उनकी दूसरी नो बॉल इस बात की पुष्टि करती है कि कुछ न कुछ पक रहा था। स्टुअर्ट ब्रॉड के पहले टेस्ट शतक और ग्रीम स्वान के 5 विकेट के बूते इंग्लैंड हावी था। इस विवाद की तह तक जाने के लिये पुलिस ने सबूतों को पकड़ पाने के उद्देश्य से स्टेडियम में तलाशी ली। सदमे में पाकिस्तान मैदान पर उतरा और पहले सत्र में इंग्लैंड के आगे समपर्ण कर दिया। श्रृंखला के स्टार खिलाड़ियों के रूप में देखे गये आमिर, आसिफ और सलमान बट्ट को पांच साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। आमिर ने भ्रष्टाचार के आरोपों को कबूला और एक युवा अपराधियों के संस्थान में तीन महीने बिताए, जबकि बट और आसिफ को जेल भेज दिया गया। जुलाई 2016 में आमिर के उपर से प्रतिबन्ध हट गया, और 2016 में उसी जगह जहाँ उनपर प्रतिबंध लगा था, एक मैच में पाकिस्तान के जीत लिये हासिल की।

# 1 2011-12 में भारत की इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के हाथों 8 विदेशी टेस्ट हार

एक भारतीय क्रिकेट प्रशंसक के लिए जिन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के तहत भारतीय टीम को खेलते देखा है, विशेषकर विदेशों में उन्होंने टीम को उच्च स्तर का खेल खेलते देखा है। भारत का 90 के दशक में विदेशी जमीन पर रिकॉर्ड हमेशा ख़राब रहा और टीम हर दौरे से बिना जीत के निराश ही हो लौटी। लेकिन सदी की शुरुआत में सौरव गांगुली के हाथों में कमान आने के बाद चीजें बदल गईं। भारत का विदेशों में प्रदर्शन सुधरता रहा लेकिन उन्हें तब एक दर्दनाक अनुभव का सामना करना पड़ा जब वह इंग्लैंड (0-4) और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया (0-4) में कोई भी मैच नही जीत सके थे। इसकी शुरुआत तब हुई जब बिना तैयारी के भारतीय टीम इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेलने उतरी थी, और एक ऐसी श्रृंखला जिसे दुनिया की दो बेहतरीन टेस्ट टीमों के बीच एक प्रतियोगिता के रूप में देखा गया था। जब ज़हीर खान पहले टेस्ट मैच की सुबह ही चोट के चलते ड्रेसिंग रूम में वापस आ गये तो नतीजे एक टीम की ओर झुक से गये। जहीर चार मैचों की श्रृंखला में और किसी मैच में नही खेल पाए और उनके उपर भारत की निर्भरता उजागर हो गई क्योंकि इंग्लिश बल्लेबाजों ने आराम से रनों के पहाड़ खड़े कर दिये। भारत के बल्लेबाज़ दौरे पर एंडरसन और ब्रॉड की जोड़ी के आगे संघर्ष करते रहे, सिवाय राहुल द्रविड़ के जिन्होंने दौरे पर तीन शतक लगाये। भारत का श्रृंखला में 4-0 से सफाया हो गया और इसके चलते वह नंबर 1 की रैंकिंग से भी हट गये। अगर इंग्लैंड में मिली हार बहुत ही चौंकाने वाली थी, तो कुछ महीने बाद 2011 की सर्दियों में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था तो परिणाम और भी बुरे आये। यहाँ पर 8 पारियों में 7 बार भारत की दीवार राहुल द्रविड़ के स्टंप पर गेंद जाकरलगी थी, जो कि इंग्लैंड में भारत के सबसे सफल बल्लेबाज थे। 100 वें शतक के दबाव में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर का फॉर्म भी प्रभावित होता दिखा, जब मेलबर्न में एक उत्साहजनक शुरुआत के बाद उनका फॉर्म खत्म हो गया और भारत का ऑस्ट्रेलिया ने 4-0 का सफाया कर दिया। उत्साही भारतीय प्रशंसकों को जीत की उम्मीद थी, और तेंदुलकर के 100वें शतक की उम्मीद भी, पर यह दोनों न हो सका। फिर भी जो भी हुआ वह भारत के बल्लेबाजी के भविष्य की एक झलक थी, जिसमें विराट कोहली ने पर्थ में एक 75 रन की पारी और एडिलेड में चौथे टेस्ट में शतक के साथ टेस्ट खिलाड़ी के रूप में अपने आगमन का आग़ाज़ कर दिया था। लेखक: यश मित्तल अनुवादक: राहुल पांडे