इस फ़ेहरिस्त में टीम इंडिया की 2011 में विदेशी सरज़मीं पर लगातार 8 मैचों में 8 हार शामिल है
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खेलों की दुनिया भी, जीवन की तरह एक असमानताओं से भरी दुनिया है। जहाँ एक पल कोई ऊंचाइयों को छू रहा होता है, तो अगले ही पल जमीन पर होते हैं। क्रिकेट भी कोई अपवाद नहीं है क्योंकि 21वीं सदी की शुरुआत से ही बहुत सारे ऐसे उदाहरण आये हैं जहां शीर्ष 8 टीमों के लिए दिल टूटने जैसी घटनाएँ हुई है।
यह दौर, आंशिक रूप से बांग्लादेश और हाल ही में अफगानिस्तान के पुनरुत्थान का गवाह रहा है तो साथ ही बदलते समय के अनुसार अपने घरेलू बुनियादी ढांचे को बदलने में अपनी अक्षमता के चलते, दुनिया की शीर्ष टीमों के लिये कई ऐसे अवसर आये जब वह अपने प्रशंसकों को निराश कर बैठे।
यहाँ हम सदी की शुरुआत के बाद से बड़ी बड़ी टीमों के सबसे ज्यादा दर्दनाक पलों पर नजर डाल रहें हैं।
# 8 वेस्टइंडीज़ का चैंपियंस ट्रॉफी 2017 के लिए क्वालीफाई करने में नाकाम रहना
वेस्टइंडीज क्रिकेट का पिछले दो दशकों में प्रदर्शन का स्तर नीचे ही जाता रहा है। 80 और 90 के दशक के शुरुआती दिनों में महान खिलाड़ियों के संन्यास लेने के बाद से शुरू हुई गिरावट और जमीनी स्तर पर ख़राब प्रणाली की कमी के साथ ही चयन नीति और उसके क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ी के संगठन के बीच तालमेल की कमी के चलते इस देश का क्रिकेट संघर्ष ही करता रहा है।
फिर भी, ब्रायन लारा, रामनरेश सरवान, क्रिस गेल, शिवनारायण चंदरपॉल और कई अन्य प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के चलते वेस्टइंडीज क्रिकेट रह रह कर अपने पुराने दिनों की झलक दिखाता रहा है। 2004 में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में उनकी नाटकीय जीत इस बात का एक उदाहरण है। 2004 में विंडीज़ क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ियों के बीच मनमुटाव उस स्तर तक पहुच गया कि विंडीज ने 2014 के भारत दौरे को बीच में ही छोड़ दिया।
इसके बाद यह पूर्व चैंपियन 2017 में चैंपियंस ट्रॉफी के लिए क्वालीफाई करने में भी नाकाम रहा, जो की उनके बेहतरीन इतिहास पर एक काला धब्बा है। विंडीज के लिए चीजें और भी बदतर हो सकती हैं क्योंकि उन्हें अभी जिम्बाब्वे में विश्व कप क्वालीफायर खेलना हैं और इस प्रतियोगिता में जीत ही उन्हें इसमें खेलने योग्य बनाएगी, एक ऐसी प्रतियोगिता में जिसमे वो लंबे समय तक विजेता रहे थे।