क्रिकेट की दुनिया में एक समय हॉटस्पॉट को सबसे उन्नत तकनीक माना जाता है। साल 2013-14 में आस्ट्रेलिया मीडिया ने एशेज सीरीज के दौरान इंग्लैंड की टीम पर हॉटस्पॉट के साथ छेड़खानी का आरोप लगाया था, जिससे क्रिकेट दुनिया में नई हलचल पैदा हो गई थी। इसके साथ ही इस पर आने वाले खर्च और इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खडे होने लगे। हॉटस्पॉट तकनीक में इंफ्रारेड तंरगो का विशेष रुप से इस्तेमाल कर पता लगाया जाता है कि गेंद बल्ले टकराई है अथवा पैड से , या नही।
जब भी किसी पिक्चर में संदेह होता है तो इंफ्रारेड तरंगों से उक्त तस्वीर को भली भांती जांचा जाता है जब भी गेंद किसी बल्लेबाज की पैड , शरीर अथवा बैट से टकराती है, तो वो हिस्सा घर्षण के कारण हल्का से गर्म हो जाता है तब इस स्थिति में कंप्यूटर ब्लैक एंड वाइट फ्रेम के जरिए तुरंत सही निरीक्षण कर लेता है। गौरतलब है कि इस तकनीक की खोज सर्वप्रथम फ्रांसिस वैज्ञानिकों ने की थी। हॉटस्पॉट तकनीक का प्रयोग सबसे पहले सेना में फाइटर जेट और टैंक की स्थिति का पता लगाने में किया जाता रहा है। एशेज 2006 -2007 में हॉटस्पॉट तकनीक को पहली दफा प्रयोग में लाया गया। वैसे सबसे पहले आस्ट्रेलिया स्पोर्टस टीवी ने इसका बखूबी इस्तेमाल किया।
हॉटस्पॉट का इस्तेमाल करने के लिए प्रति मैच 6 लाख रुपए का खर्च आता है। अगर कैमरों की संख्या 2 से 4 कर दी जाये तो प्रति मैच तकरीबन 12 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ेगें। गौरतलब है कि ICC के साथ-साथ कोई अन्य क्रिकेट बोर्ड भी इस मंहगे खर्च से स्वंय को दूर रखना चाहता है तब तक तो यह खर्च प्रसारणकर्ता खुद ही वहन करता है। उस वक़्त हॉटस्पॉट तकनीक को स्निकोमीटर तकनीक से बेहतर माना जाता था। वैसे स्निकोमीटर की खोज भी इसी कंपनी ने की थी। स्निकोमीटर में सिर्फ आवाज से पहचान होती है इसमे ध्वनि तरगों के द्वारा पता किया जाता है कि गेंद ने बल्ले का किनारा लिया है या नहीं ऐसी स्थिति में पैड से गेंद लगने पर भी स्निकोमीटर पर प्रभाव पड़ जाता है।
और गलती होने की गुंजाइश सदैव बनी रहती है। हॉटस्पॉट तकनीक सटीक परिणाम न देने के कारण विवादास्पद होती चली गई। इसीलिए उस वक़्त एशेज सिरीज में हॉटस्पॉट को लेकर नए विवाद उपजे थे। यह विवाद इस लिए उपजें क्योंकि ये तकनीक अपना का काम करने में असक्षम रही है। पीटरसन सहित कुछ अन्य खिलाडियों पर आरोप मढ़े गए कि वे अपने बल्लों पर सिलिकॉन टेप का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि वे हॉटस्पॉट को चकमा दे सके। इस तकनीक की किरकिरी के बाद हॉटस्पॉट के जनक बी.बी.जी. स्पोर्टस ने अपने बयान में कहा था कि बल्लो पर चिपकाए जाने वाले कवच या आवरणों से थर्मल सिग्नेचर प्रभावित होता है।
जिससे इस तकनीक को सटीक परिणाम हासिल करने में काफी दिक्कत पेश आती है। इसलिए बल्ले पर लगे बाहरी आवरणों को हटाना जरूरी है। आस्ट्रेलिया के चैनल 9 ने दावा किया था कि एशेज में खिलाड़ी बल्लों पर सिलिकॉन टेप लगा रहे हैं। मेरे ख्याल से विज्ञान की अपनी एक निश्चित सीमा है, तो आपकी तकनीक इतनी बेहतर हो कि उससे सटीक परिणाम हासिल किया जा सके। अगर आपकी तकनीक इस कार्य में विफल है तो फिर फैसला मैदानी अंपायरों के उपर छोड़ देना चाहिए, ताकि भविष्य में क्रिकेट को ऐसी स्थिति से दो-चार न होना पड़े।