बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। पत्रकार, कवि, राजनेता और एक मुखर वक्ता की छवि वाले वाजपेयी को भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट संबंधों में सुधार के लिए भी जाना जाता है। सन 2004 में भारतीय टीम ने पूरे 15 वर्षों बाद पाकिस्तान दौरा किया था। अटल बिहारी उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे और जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। भारत की टीम वहां भेजने से पहले अटल बिहारी ने टीम को एक बल्ला गिफ्ट किया था जिसमें लिखा था "खेल ही नहीं, दिल भी जीतिए। शुभकामनाएं।"
इससे पहले भारतीय टीम ने 1989 में पाकिस्तान का दौरा किया था। उस दौरे पर ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर ने पदार्पण किया था। एक समय था जब शांति स्थापित करने के लिए भारत-पाक क्रिकेट की बात करने के लिए कोई भी राजनेता आगे नहीं आया। 1999 में पाकिस्तान ने भारत दौरा किया था तब मुंबई में एक स्थानीय पार्टी द्वारा हिंसा के बाद भी मेहमान टीम ने दौरा पूरा किया था।
15 साल तक भारत में कई सरकारें आई और गई लेकिन भारत-पाक क्रिकेटिंग रिश्तों पर किसी ने कोई काम नहीं किया। दोनों देशों के रिश्तों में शान्ति और नजदीकी लाने के लिए 2004 में वाजपेयी ने टीम को पाकिस्तान भेजने की अनुमति प्रदान कर दी। यह उनके महान व्यक्तित्व और दूरदर्शी मस्तिष्क का कमाल ही था जो उन्होंने खेल के जरिये दोनों देशों के रिश्ते ठीक करने की कोशिश की।
भारतीय टीम के कप्तान सौरव गांगुली थे और टीम में सचिन तेंदुलकर, वीरेंदर सहवाग, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे कई दिग्गज थे। मुल्तान टेस्ट मैच में वीरेंदर सहवाग का तिहरा शतक और सचिन तेंदुलकर की नाबाद 194 रनों की वह लाजवाब पारी आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा है। रावलपिंडी टेस्ट में भारत की पहली पारी के दौरान राहुल द्रविड़ ने 270 रनों की यादगार पारी खेली थी।
रिश्तों में सुधार में एक कड़ी नजर आने वाले दौरे पर भारतीय टीम ने टेस्ट सीरीज 2-1 और वन-डे 3-2 से जीतकर फैन्स को ख़ुशी मनाने का सुअवसर प्रदान किया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व का प्रभाव ही था कि भारत-पाक के बीच रावलपिंडी में खेला गया दूसरा वन-डे मैच देखने के लिए पाक के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ भी स्टेडियम आए थे। टीम को पाकिस्तान दौरा करने की प्रेरणा भी वाजपेयी से ही मिली। उन्होंने 2004 में हत्या की धमकी के बाद भी पाकिस्तान में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय समिट में हिस्सा लिया।
भारत-पाक संबंधों को लेकर राजनेताओं में मतभेद और क्रिकेट में रिश्ते प्रभावित थे लेकिन वाजपेयी ने न केवल शांति बहाल करने का एक अनूठा प्रयास किया बल्कि दोनों देशों के बीच खेल में बढ़ती दूरियां भी कम करने का बेहतरीन कार्य किया। उनके ये प्रयास इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गए हैं।