1992 विश्व कप में पहली बार एकदिवसीय क्रिकेट रंगीन कपड़ों में खेला गया। सफेद गेंद, काली साइट स्क्रीन और फ्लड लाइट की रोशनी में मैच खेले गए। इनमें से कुछ नियम प्रचलित थे तो कुछ नहीं लेकिन इस प्रतियोगिता से पहली बार इन नियमों को औपचारिक रुप से एकदिवसीय क्रिकेट में शामिल किया गया। तब से लेकर अब तक आईसीसी ने कई बार एकदिवसीय क्रिकेट के नियमों में बदलाव किए हैं। आइए जानते हैं उन्ही बदलावों के बारे में जो 1992 विश्व कप से अब तक एकदिवसीय क्रिकेट में हुए हैं। फील्डिंग प्रतिबंध 1992 तक फील्डिंग प्रतिबंधों के मानक नियम अनिवार्य कर दिये गये कि पहले 15 ओवरों में घेरे के बाहर केवल दो फील्डर को रखने की अनुमति होगी। इसके बाद बाकी बचे ओवरों में पांच फील्डरों को घेरे के बाहर रखने की अनुमति दी जायेगी। 1996 विश्व कप में श्रीलंकाई सलामी बल्लेबाज सनथ जयसूर्या और रोमेश कालुविथरना ने शुरूआती 15 ओवर में तेजी से रन बनाकर विस्फोटक सलामी बल्लेबाजों के लिए एक नये ट्रेंड की शुरूआत कर दी। तब से हर टीम के सलामी बल्लेबाज पावरप्ले के ओवरों में ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश करते थे। 2005 में पावरप्ले की शुरुआत के साथ इस नियम में बदलाव किया गया। पहले 10 ओवरों के लिए 30-यार्ड सर्कल के बाहर केवल दो फील्डरों को ही रखने की अनुमति दी गई और फिर फील्डिंग करने वाली टीम को 2 पावरप्ले लेने थे। इस दौरान वो अधिकतम 3 खिलाड़ी घेरे के बाहर रख सकते थे। 2008 में नया नियम बनाया गया। इसके मुताबिक बल्लेबाजी करने वाली टीम और गेंदबाजी करने वाली टीम एक-एक पावरप्ले अपने हिसाब से ले सकती थी। 2011 में आईसीसी ने नया नियम बनाया कि सभी पावरप्ले 41वें ओवर तक खत्म हो जानी चाहिए और बाकी बचे ओवरों में 30 यार्ड के घेरे के बाहर केवल पांच फील्डर रह सकते हैं। 2012 में एक और नियम में बदलाव किया गया जब आईसीसी ने 30-यार्ड सर्कल के बाहर गैर-पावरप्ले ओवर में खिलाड़ियों की संख्या घटाकर चार कर दी और तीन के बजाय दो पॉवरप्ले कर दिये। 2015 में एक और नया नियम बनाया गया। इसके मुताबिक 41 से 50 ओवर तक 30 यार्ड सर्कल के बाहर 5 फील्डरों को रखने की इजाजत दी गई ताकि फील्डिंग करने वाली टीम को थोड़ा फायदा मिल सके। अब 41 से 50 ओवर तक चार फील्डर घेरे के बाहर रह सकते हैं और 1 से 10 ओवर के बीच सिर्फ 2 खिलाड़ी घेरे के बाहर रह सकते हैं। बाउंसर के नियम
बाउंसर हमेशा से ही क्रिकेट में विवादास्पद रहे हैं क्योंकि उन्हें बल्लेबाजों को चोट पहुंचाने या डराने के लिए जानबूझकर डाला हुआ माना जाता है। 70 के दशक में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज ऐसा काफी करते थे। हालांकि हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फिलिप ह्यूज की जब बाउंसर लगने से मौत हुई तो ये सवाल उठने लगे कि क्या बाउंसर की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। फिर भी एकदिवसीय क्रिकेट में बाउंसर प्रचलित रहे हैं। 1992 विश्व कप के दौरान एक ओवर में एक बाउंसर डालने की अनुमति थी। 1994 में आईसीसी ने एक ओवर में दो बाउंसर की अनुमति के साथ 2 से ज्यादा बाउंसर डालने पर 2 रन का जुर्माना लगा दिया। 2001 में,आईसीसी ने फिर से एक ओवर में एक बाउंसर का नियम बनाया और सीमा से बाहर होने पर जुर्माने का प्रावधान रखा। 2012 में एक बार फिर से नियमों में बदलाव हुआ। नए नियम के मुताबिक एक ओवर में दो बाउंसर कर सकते हैं इससे ज्यादा करने पर गेंद नो बॉल मानी जाएगी। गेंद का प्रयोग
इससे पहले एकदिवसीय क्रिकेट में भी लाल गेंद का प्रयोग होता था क्योंकि उस समय खिलाड़ी सफेद कपड़ों में खेला करते थे। रंगीन कपड़ों और फ्लडलाइट्स की शुरूआत के कारण सफेद गेंदों क प्रयोग करना अनिवार्य कर दिया ।
इसके बाद फिर से नियमों में बदलाव हुआ। कुछ ओवरों के बाद सफेद गेंद का रंग बदलने लगता था और उसे पहचानना मुश्किल हो जाता था। इसलिए 34 ओवरों के बाद गेंद को बदला जाने लगा। 2011 में नया नियम बनाया गया। इसके मुताबिक शुरुआत से अंत में दोनों नए गेंदों का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया। यह आम तौर पर गेंदों को कठोर और नया रखता है, जिससे बल्लेबाजों को स्ट्रोक खेलने में मदद मिलती। नई तकनीक का ईजाद टेक्नॉलजी के आगमन ने दुनियाभर में क्रिकेट को देखने और खेलने के तरीके को बदल कर रख दिया। विशाल स्क्रीन से लेकर स्पाइडर कैमरा तक, इसने पूरी तरह से क्रिकेट के प्रसारण को बदल कर रख दिया है और दर्शकों की संख्या को बढ़ाया । उदाहरण के लिए, 90 के दशक और 2000 के दशक के शुरुआती दिनों के विपरीत अब तीसरे अंपायर के निर्णय को लाल या हरे रंग की लाइट से नहीं बताया जाता है बल्कि इसके लिए आउट और नॉट आउट शब्दों को बड़ी स्क्रीन पर दिखाया जाता है। तकनीक ने अंपायरों के लिए काम और आसान कर दिया। सबसे अच्छा उदाहरण डीआरएस है जिसे 2011 में पहली बार एकदिवसीय क्रिकेट में पेश किया गया था। इसे पहले अनिवार्य और फिर वैकल्पिक बनाया गया था जिसका मतलब है कि इसका उपयोग केवल उस द्विपक्षीय सीरीज में किया जा सकता है जिसमें दोनों ही टीमें इसका उपयोग करने के लिए सहमत हों। डीआरएस के विभिन्न अंग में गेंद टेकिंग शामिल है जिसका उपयोग एलबीडब्ल्यू फैसलों के लिए किया जाता है, स्निकोमीटर है जो बाद में हॉक-आइ के साथ किया गया। शुरूआत से ही डीआरएस विवादों में फंसा रहा है क्योंकि बीसीसीआई ने बार-बार शिकायत की थी कि हॉक-आइ और बॉल-ट्रैकिंग जैसे टेक्नॉलजी सही नहीं हैं। वर्तमान में एकदिवसीय क्रिकेट में हर टीम को लिए ह पारी में एक डीआरएस दी जाती है जो उन्हें प्रत्येक सफल चुनौती के साथ वापस मिल जाती है। बारिश से प्रभावित मैच
1992 विश्व कप से पहले बारिश होने पर नियम के अनुसार दूसरी पारी में प्रत्येक ओवर खत्म होने के लिए पहली पारी के रन प्रति ओवर के हिसाब से कटौती करना था। 1992 में नये हुए नये बदलाव के अनुसार अगर दूसरी पारी में बारिश के कारण खेल में रूकावट आती है तो लक्ष्य में कमी को पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम के सबसे कम स्कोरिंग ओवर के अनुपात में निर्धारित किया जायेगा। इसके सबसे बड़ी कमी तब उजागर हुई जब दक्षिण अफ्रीका को सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत के लिए 13 गेंदों में 22 रन बनाने थे। तभी बारिश ने खेल बाधित कर दिया और उसके बाद उन्हें 7 गेंदों पर 22 रन बनाने और फिर केवल 1 गेंद पर 22 रन बनाने का लक्ष्य मिला जिसने दक्षिण अफ्रीका की जीत की सारी संभावना को खत्म कर दिया। 1999 में डकवर्थ-लुईस नियम को पेश किया गया जो बारिश के कारण खेल बाधित होने पर सांख्यिकीय गणनाओं के आधार पर लक्ष्य का पीछा करने वाली टीम के लिए एक संशोधित टारगेट निर्धारित करता है। फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस के रिटायरमेंट के बाद प्रोफेसर स्टीवन स्टर्न इस नियम के संरक्षक बन गए हैं। इसके बाद इस नियम का नाम 2014 में डीएलएस नियम के रूप में बदल दिया गया। सुपरसब नियम
आईसीसी ने 2005 में सुपरसब नियम को एक प्रयोग के तौर पर लागू किया। इसके मुताबिक दोनों टीमें 12वें खिलाड़ी का नाम दे सकेंगी जो मैच के दौरान किसी भी समय किसी एक खिलाड़ी का स्थान ले सकता है।
हालांकि ये नियम शुरुआत में काफी जोर-शोर से चला लेकिन बाद में इसका दुरुपयोग होने लगा। इस नियम के साथ मुख्य समस्या थी कि कप्तानों को टॉस से पहले अपनी टीमों और सुपरसब का नाम देना था, यह टॉस जीतने वाली टीम का एक फायदा था। अक्सर कप्तान इसके लिए बस अनुमान लगा सकते थे और टॉस हारने वाली टीम के लिए यह सुपरसब के कारण 11 बनाम 12 का मामला बन गया। हाल ही में बने नए नियम
एमसीसी की सिफारिशों का पालन करते हुए आईसीसी कार्यकारी समिति ने कुछ नए नियमों को पारित किया है जो 1 अक्टूबर से प्रभावी होंगे। अब अंपायर के कॉल के कारण एलबीडब्ल्यू के फैसले पर कोई रिव्यू खत्म नहीं होगा। इसके अलावा बल्लेबाज अगर रन लेते हुए एक बार क्रीज में पहुंच चुका है तो दोबारा उसका बल्ला भले ही हवा में रहे उसे आउट नहीं माना जाएगा। एमसीसी के एक बयान में कहा गया है, "यदि बल्ला (हाथ से पकड़े हुए) या बल्लेबाज के शरीर का कोई दूसरा हिस्सा पॉपिंग क्रीज से परे है और जमीन से संपर्क अचानक खो जाता है और तभी विकेट गिरा दी जाती है, तो बल्लेबाज़ रन आउट होने से बच जायेगा।" इसके अलावा मैदान पर खराब व्यवहार अब अंपायरों द्वारा दंडित किया जा सकता है जो खिलाड़ियों को अत्यधिक अपील, असहमति दिखाने, या धमकियों और शारीरिक हिंसा करने के मामले में चेतावनी दे सकता है। अंपायर अब खिलाड़ियों को चेतावनी दे सकते हैं और उन्हें अस्थायी या स्थायी रूप से वापस भेज सकते हैं। एमसीसी के क्रिकेट हेड जॉन स्टीफेन्सन ने कहा, "हमने महसूस किया कि खिलाड़ियों के खराब व्यवहार के लिए प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए। "उम्मीद है कि इन प्रतिबंधों से अनुशासनात्मक मुद्दों को कुशलतापूर्वक संभालने के लिए और अधिक आत्मविश्वास मिलेगा, खिलाड़ियों को डराकर रोका जा सकेगा।" लेखक- दिप्तेश सेन अनुवादक- सौम्या तिवारी