भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ वर्ल्ड क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में से एक रहे हैं। वो एक जबरदस्त प्लेयर होने के अलावा एक जबरदस्त इंसान भी थे। उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम का 'दीवार' कहा जाता था। हालांकि इसके बावजूद राहुल द्रविड़ के करियर में कई ऐसे पल आए जब उनके अंदर भी टीम में जगह बनाने को लेकर असुरक्षा की भावना पैदा हुई। राहुल द्रविड़ ने बताया कि कैसे 1998 में वनडे टीम से ड्रॉप किए जाने के बाद वो वापसी को लेकर आश्वस्त नहीं थे।
हाल ही में भारतीय महिला टीम के कोच डब्ल्यू वी रमन से खास बातचीत में राहुल द्रविड़ ने बताया कैसे उन्हें अपनी क्षमता पर शक होने लगा था।
मेरे करियर में कई ऐसे फेज आए जब मैंने टीम में अपनी जगह को लेकर असुरक्षित महसूस किया। 1998 में मुझे वनडे टीम से ड्रॉप कर दिया गया। मैं भारतीय टीम से एक साल तक दूर रहा और मुझे वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा। तब मैं सोचता था कि क्या मैं वनडे का बेहतर प्लेयर हूं या नहीं, क्योंकि मैं टेस्ट का अच्छा खिलाड़ी बनना चाहता था। मैंने टेस्ट प्लेयर बनने के लिए ही कोचिंग ली थी कि गेंद को जमीन पर ही मारना है, उसे हवा में नहीं मारना है। इसलिए मन में यही सवाल उठ रहा था कि मैं वनडे में अच्छा कर पाउंगा या नहीं।
स्ट्राइक रेट की वजह से राहुल द्रविड़ को किया गया था वनडे टीम से ड्रॉप
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आपको बता दें कि राहुल द्रविड़ को 1998 में वनडे टीम से ड्रॉप कर दिया गया था, क्योंकि उनका स्ट्राइक रेट अच्छा नहीं था। हालांकि 1999 वर्ल्ड कप से पहले उनकी टीम में वापसी हुई और उस टूर्नामेंट में 461 रनों के साथ वो सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। राहुल द्रविड़ ने इसके अलावा 2003 और 2007 के वर्ल्ड कप में भी हिस्सा लिया।
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राहुल द्रविड़ ने आगे बताया कि किस तरह से उन्हें अपने करियर के शुरुआती दिनों में भी कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
भारत में एक युवा क्रिकेटर के लिए चीजें आसान नहीं होती हैं, क्योंकि कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। खासकर हमारे समय में केवल रणजी ट्रॉफी और भारतीय टीम दो ही विकल्प थे। उस वक्त आईपीएल भी नहीं था। यहां तक कि रणजी ट्रॉफी में भी जो पैसा मिलता था, वो भी काफी कम था।