भारतीय महिला क्रिकेट को आज तक मीडिया ने भले ही वह तवज्जो न दिया हो, जिसकी वह हक़दार हैं। लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि महिला क्रिकेट वर्ल्डकप की शुरुआत पुरुष क्रिकेट वर्ल्डकप से 2 साल पहले ही हो गई थी। जी हां, 1975 में पहली बार पुरुष क्रिकेट वर्ल्डकप खेला गया था जिसे वेस्टइंडीज़ ने अपने नाम किया था, ये तो सभी को याद होगा लेकिन शायह ही किसी क्रिकेट फ़ैन को ये पता होगा कि पहला महिला क्रिकेट वर्ल्डकप 1973 में खेला गया था और उसे इंग्लैंड ने प्वाइंट्स के आधार पर अपने नाम किया था। हालांकि पहले विश्वकप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने शिरकत नहीं की थी, लेकिन दूसरे यानी 1978 वर्ल्डकप में टीम इंडिया ने पहली बार हिस्सा लिया और चौथे स्थान पर रही। तब और अब में काफ़ी फ़र्क आ चुका है, पहले जहां दबदबा इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का रहता था तो अब भारतीय महिला क्रिकेट टीम की तूती बोलने लगी है। टीम इंडिया की कप्तान मिताली राज तो वनडे क्रिकेट इतिहास की सबसे ज़्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी बन गईं हैं, वनडे में उन्होंने इसी विश्वकप के दौरान 6000 रन पूरे करने वाली पहली महिला क्रिकेटर भी बन गईं। टीम इंडिया ने इस टूर्नामेंट में कमाल का प्रदर्शन करते हुए फ़ाइनल तक का सफ़र तय किया है। सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया और उससे पहले वर्चुअल क्वार्टरफ़ाइनल में न्यूज़ीलैंड को जिस अंदाज में मिताली एंड कंपनी ने हर विभाग में चारो ख़ाने चित किया है वह ये दर्शाता है कि इस टीम की नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़ कप पर है। क्रिकेट के मक्का पर होने वाला आज का ख़िताबी मुक़ाबला भारतीय महिलाओं के लिए और पूरे देश के लिए किसी सपने से कम नहीं है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ये लड़ाई न सिर्फ़ लॉर्ड्स में वर्ल्डकप के जीतकर दुनिया पर राज करने के लिए है। बल्कि मिताली की कप्तानी वाली इस टीम को अपने उन आलोचकों के साथ साथ क्रिकेट बोर्ड को भी जवाब देना है जो उनमें और पुरुष टीम में बड़ा फ़र्क समझता है। आज भी विराट कोहली की टीम इंडिया और उनके खिलाड़ियों को मिलने वाला मेहनताना मिताली की महिला टीम और उनकी साथी खिलाड़ियों से कहीं ज़्यादा है। इस दरार को अगर भरना है तो टीम इंडिया को आज अपना सबकुछ न्योछावर करते हुए नज़र और लक्ष्य सिर्फ़ विश्वकप की ट्रॉफ़ी ही बनाना होगा। क्रिकेट को धर्म की तरह पूजे जाने वाले इस देश में पुरुष क्रिकेटरों को तो भगवान का दर्जा हासिल है लेकिन इसी खेल में देश का नाम रोशन करने वाली सभी महिला खिलाड़ियों के तो नाम भी शायद ही किसी को पता हों। तो क्या क्रिकेट के तथाकथित दीवानों को सिर्फ़ पुरुष क्रिकेट से प्यार है ? भारतीय मीडिया और स्पोन्सर भी इसके लिए उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितना कि क्रिकेट बोर्ड। फ़र्ज़ कीजिए अगर विराट कोहली वाली टीम इंडिया वर्ल्डकप का फ़ाइनल तो छोड़ ही दीजिए किसी तीन या चार देशों वाले टूर्नामेंट के फ़ाइनल में भी पहुंची होती तो हर अख़बार और टीवी चैनलों में उनके जयकारे लग रहे होते, कहीं यज्ञ हो रहा होता तो कोई हवन कर रहा होता। लेकिन मिताली की कप्तानी वाली ये टीम जब इतिहास रचने और विश्व चैंपियन बनने के इतने क़रीब खड़ी है तब भी न वह हल्ला है न ही वह पागलपन और जुनून। मिताली एंड कंपनी भी इस बात को जानती है और उन्होंने भी ये संकल्प कर रखा है कि इस बार कुछ ऐसा कर दिखाना है कि लोग उन्हें विराट कोहली या कपिल देव या महेंद्र सिंह धोनी जैसा न कहें, बल्कि कोहली और धोनी को मिताली और हरमनप्रीत जैसा कहने पर मजबूर हो जाएं। भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए 23 जुलाई 2017 का दिन कितना सुनहरा और बड़ा है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये सिर्फ़ दूसरा मौक़ा है जब कोई भारतीय क्रिकेट टीम क्रिकेट के मक्का यानी लॉर्ड्स पर वर्ल्डकप का फ़ाइनल खेल रही है। इससे पहले 1983 में कपिल देव की कप्तानी में टीम इंडिया ने इसी मैदान पर वेस्टइंडीज़ को हराकर ख़िताब अपने नाम किया था और अब 34 साल बाद मिताली राज लॉर्ड्स पर टीम इंडिया की वर्ल्डकप के फ़ाइनल में अगुवाई कर रही हैं। मिताली के साथ साथ पूरा हिन्दुस्तान भी दुआ कर रहा है कि कपिल की ही तरह मिताली भी इस टीम को जीत दिलाते हुए न सिर्फ़ पहली बार विश्व चैंपियन बनाएं, बल्कि भारतीय महिला क्रिकेट की पूरी तस्वीर बदल डालें। मिताली जानती हैं कि ये तभी मुमकिन है जब ट्रॉफ़ी पर कब्ज़ा किया जाए, क्योंकि रनर अप तो टीम इंडिया 2005 में भी रही थी। रविवार की रात सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी के लिए सात समंदर पार से ख़ुशी की ऐसी महक ला सकती है जिसका असर सालों तक नहीं बल्कि दशकों तक रहेगा। मिताली को भी इस जीत के मायने और हार के टीस के बीच का फ़र्क अच्छे से मालूम है। क्योंकि लोगों की फ़ितरत और दुनिया का दस्तूर भी यही है कि पहली बार की जीत तक़यामत सभी को याद रह जाती है, लेकिन दूसरी बार कौन जीता था इसे ज़माना भूल जाता है।