भारतीय टीम 2019 विश्व कप की तैयारी में जुट गई है। क्रिकेट का अगला महासमर इंग्लैंड में खेला जाना है। इस लिहाज से भारत के वर्तमान इंग्लैंड दौरे को काफी अहम माना जा रहा है। इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 सीरीज जीत कर उसके खिलाड़ियों ने बेहतर शुरुआत की लेकिन एक दिवसीय शृंखला में हार ने टीम संयोजन पर विचार के लिए मजबूर कर दिया। इन मैचों के दौरान भारतीय टीम का मध्यक्रम बेहद कमजोर नजर आया और दिग्गजों के बीच इसे दुरुस्त करने के विकल्पों पर चर्चा शुरू हो गई। आज हम भी उसी पर बात करते हैं। याद कीजिए 2007 का वो सुनहरा दौर जब भारतीय टीम लगातार विरोधियों को कुचल कर आगे बढ़ रही थी। उसी दौर में भारत ने 2011 का विश्व कप जीता था। तब टीम के मध्य क्रम में एक ऐसा बल्लेबाज हुआ करता था जिस पर तब के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी आंखें बंद करके विश्वास करते थे। उन्हें टीम ने मध्यक्रम में चौथे और छठे नंबर पर खूब इस्तेमाल किया और उस खिलाड़ी ने कभी कप्तान को निराश नहीं किया। जब-जब जरूरत पड़ी उस खिलाड़ी ने तेजी से रन बटोरकर टीम को संकट से उबारा। अब उसका नाम भी जान लें। वह उत्तर प्रदेश के सुरेश रैना थे। रैना की तेज बल्लेबाजी टीम की नैया पार लगाती। हालांकि धीरे-धीरे सब बदलता चला गया। न रैना की वह रफ्तार रही और न ही फिटनेस। यही कारण है कि रैना को अगले विश्व कप टीम में जगह मिलेगी या नहीं इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। सलामी बल्लेबाज के तौर पर धाक जमा चुके रोहित शर्मा और शिखर धवन तो पहले ही विश्व कप टीम के लिए पक्के हो चुके हैं। उसके बाद विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी, हार्दिक पांड्या, युजवेंद्र चहल, कुलदीप यादव, भुवनेश्व कुमार और जसप्रीत बुमराह उस टीम के सदस्य के तौर पर पक्के दावेदार हैं। लेकिन नंबर चार पर कौन बल्लेबाजी करेगा, इस प्रश्न का जवाब अभी भी किसी के पास नहीं है। इस नंबर पर बल्लेबाजी के लिए मनीष पांडे, लोकेश राहुल और सुरेश रैना बेहतर विकल्प हैं। हालांकि इनमें से कोई भी बल्लेबाज कप्तान और टीम प्रबंधन की निगाहों में जमा नहीं है। कई मैचों में तीनों को मौका देने के बाद भी वे टीम में नियमित जगह नहीं बना पाए हैं। इनमें सबसे पहला नाम सुरेश रैना का आता है। सालों से टीम से बाहर चल रहे रैना ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीमित ओवरों के टूर्नामेंट में वापसी की। इसके पीछे कारण उनका खराब फॉर्म और फिटनेस समस्या रहा। उसमें भी 2016 में टीम में जगह के लिए जिस यो-यो टेस्ट को अनिवार्य बनाया गया, रैना उसमें भी फेल हो गए। हालांकि घरेलू मैचों में बेहतर कर उन्होंने राष्ट्रीय टीम में वापसी की लेकिन अब भी वे अपने पुराने लय में नहीं दिख रहे। मैच दर मैच उनसे बड़ी पारी की उम्मीद की जाती है और वो 20-30 रन से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे। हाल ये हुआ कि इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 सीरीज में लोकेश राहुल के लिए उन्हें अपना तीसरा नंबर गंवाना पड़ा। इसी नंबर पर बल्लेबाजी कर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बेहतर किया और एक मैन आॅफ द मैच भी जीता लेकिन आज उन्हें जूझना पड़ रहा है। तेज और बेहतर शुरुआत के बाद भी बड़ी पारी नहीं खेल पाने के कारण रैना टीम मैनेजमेंट और कप्तान की नजरों में 2019 विश्व कप के लायक नहीं बन पा रहे। वहीं मैनेजमेंट ने रैना को नंबर छह के लिए भी इस्तेमाल कर देख लिया। वे यहां भी कुछ खास नहीं कर पाए। इंग्लैंड के खिलाफ एक दिवसीय शृंखला में भी उन्हें इसलिए मौका दिया गया क्योंकि इंडियन प्रीमियर लीग के इस सत्र में धमाल मचाने वाले अंबाती रायुडू यो-यो टेस्ट में फेल रहे। दरअसल, कप्तान रैना को जिस नंबर पर फिट करना चाहते हैं वहां वे ऐसे खिलाड़ी को चाहते हैं जो टीम के लिए 4-5 ओवर भी फेंक ले। रैना इस फ्रेंम में नहीं जंच पा रहे। दो से तीन ओवर के बाद कप्तान उन्हें गेंद थमाने से हिचकते हैं। वहीं दूसरी तरफ केदार जाधव इस भूमिका में बिलकुल सटीक बैठते हैं। वे हार्दिक पांड्या के साथ पांचवें नंबर पर गेंदबाजी के लिए फिट बैठते हैं। इससे यह लगने लगता है कि शायद रैना अगल विश्व कप नहीं खेल पाएं लेकिन तभी उनके पुराने रेकॉर्ड याद आते हैं जो यह साबित करते हैं कि यह बल्लेबाज टीम को मुसिबत से निकालने में माहिर है। अगर उसने मेहनत की और भाग्य ने साथ दिया तो गाड़ी चल निकलेगी। पिछले एक साल से तो वे टीम में निरंतर है ही नहीं लेकिन उसके पहले यानि 2014-15 सत्र को देखें तो रैना ने 20 एक दिवसीय मैच खेले जिसमें उन्होंने 32.31 के औसत से 517 रन बनाए। इस दौरान जिन दस मैचों में भारत ने जीत दर्ज की उनमें रैना ने 52.57 के औसत से 368 रन बनाए। जिस नंबर चार पर बल्लेबाजी के लिए खिलाड़ियों की खोज जारी है वहां भी रैना ने झंडे गाड़े हैं। उनके नंबर चार पर बल्लेबाजी करते हुए हाल की 20 पारियों को देखें तो उन्होंने लगभग 45 की औसत से लगभग सात सौ रन बनाए। इस दौरान उनका उच्चतम स्कोर 116 रहा। अब जरा इसी नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले अन्य बल्लेबाजों को भी देखें। जिस मनीष पांडे को प्रबल दावेदार माना जा रहा है उन्होंने अपनी आठ पारियों में लगभग 36 के औसत से 183 रन बनाए। हालांकि उनके नाम भी 104 रन का उच्चतम स्कोर दर्ज है। इसके बाद दिनेश कार्तिक और केदार जाधव को भी देखें तो वे कुछ खास नहीं कर पा रहे। एक और बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे भी रैना के मुकाबले पीछे ही नजर आते हैं। ऐसे में हम उन्हें चौथे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए विश्व टीम का दावेदार मान सकते हैं। हालांकि 2019 विश्व कप तक वे 32 साल के हो जाएंगे। और माना की उनके रनों की भूख अभी शांत नहीं हुई है लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि वर्तमान में उन्हें जो खेलने का मौका मिला है उसका कारण है जाधव का चोटिल होना। इस परिस्थिति में अगर वे कुछ खास नहीं कर पाए तो संभव है कि उन्हें विश्व कप टीम में जगह नहीं दी जाए। हालात ये न हो जाएं कि इस बार टीम से बाहर होने के बाद वे वापसी के लिए तरस जाएं। रैना को इन सब संभावनाओं से पहले ही टीम में अपनी उपयोगिता साबित कर जगह पक्की करनी होगी।