इंग्लैंड को क्रिकेट का जन्मदाता कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि जेंटलमेन के इस खेल की शुरुआत इंग्लैंड में ही हुई और वहीं से फिर पूरी दुनिया में क्रिकेट लोकप्रिय हुआ। कई देशों ने इस खेल को बढ़चढ़ कर अपनाया। इंग्लैंड के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और विंडीज़ जैसे देशों में इस खेल ने सभी को अपना दीवाना बना लिया। बात अगर मौजूदा समय की करें तो भारत का इस खेल के अंदर और बाहर दोनों ही जगह ज़बर्दस्त वर्चस्व देखा जा रहा है। हालांकि ये भी सच है कि पिछले कुछ दशकों से बांग्लादेश, आयरलैंड और अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ दिया जाए तो किसी नए देश ने अपने खेल से कुछ ख़ास प्रभावित नहीं किया है। आईसीसी ने यूनाइटेड स्टेट्स से लेकर नामिबिया, पापुआ न्यू गिनी, नेपाल, कनाडा और चीन तक में इसे लोकप्रिय बनाने की कोशिशें तो काफ़ी की हैं पर अब तक कुछ बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है। अमेरिका के फ़्लोरिडा में क्रिकेट के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए आईसीसी ने भारत और विंडीज़ के बीच टी20 सीरीज़ भी कराई थी, इसके अलावा टी20 ट्राई सीरीज़ का भी फ़्लोरिडा में आयोजन कराया गया। इन सबके बावजूद आईसीसी के हाथ सफलता न लगने के पीछे उनका ख़ुद का ही फ़ैसला है। किसी भी खेल का सबसे बड़ा महाकुंभ होता है विश्वकप, फिर चाहे फ़ुटबॉल विश्वकप हो या हॉकी विश्वकप। विश्वकप में जो देश खेलते हैं, उस देश के नागरिक उस खेल का दिल खोल कर समर्थन करते हैं और यही चीज़ किसी भी खेल को लोकप्रिय बनाती है।
आईसीसी की कोशिश क्यों हो रही है नाकाम ?
भारत में भी क्रिकेट में बड़ा बदलाव 1983 विश्वकप के बाद ही आया था, जब पहली बार टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज़ को हराकर वर्ल्डकप जीता था और सभी को चौंका दिया था। वर्ल्डकप में इसी तरह जितने ज़्यादा देश खेलते हैं इस खेल की लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल ने इस बार कुछ ऐसा फ़ैसला कर डाला कि सभी हैरान रह गए। आईसीसी ने 2019 में होने वाले वर्ल्डकप में सिर्फ़ 10 देशों के ही बीच प्रतिस्पर्धा कराने का फ़ैसला किया ताकि सभी मुक़ाबले रोमांचक हों। आईसीसी का ये फ़ैसला बड़ी टीमों के लिए तो अच्छा कहा जा सकता है और क्रिकेट के स्तर के लिए भी कुछ हद तक जायज़ ठहराया जा सकता है। पर इसकी दूसरी तस्वीर ये है कि 12 टेस्ट स्टेटस हासिल करने वालों में से 2 देश और 16 वनडे स्टेटस वाली टीमों में से 6 टीम इस विश्वकप की दौड़ से बाहर हो गईं। जिसमें 36 साल से हर वर्ल्डकप में खेलती आ रही ज़िम्बाब्वे जैसी टीम भी शामिल है, इतना ही नहीं आईसीसी के इस फ़ैसले से 2 बार की वर्ल्ड चैंपियन विंडीज़ को भी आईसीसी वर्ल्डकप क्वालिफ़ायर से गुज़रना पड़ा। अगर स्कॉटलैंड के ख़िलाफ़ हुए उनके मैच में बारिश नहीं आती और अंपायर का एक फ़ैसला उनके पक्ष में न गया होता तो वेस्टइंडीज़ भी 2019 वर्ल्डकप की दौड़ से ख़ुद को बाहर पाती, जो कहीं से भी क्रिकेट के लिए सही नहीं कहा जा सकता।
12 देशों को टेस्ट स्टेटस, 16 राष्ट्र को वनडे स्टेटस और 18 देशों को टी20 अंतर्राष्ट्रीय स्टेटस देने के मायने क्या हैं ?
जब एक तरफ़ आईसीसी दुनिया के 16 देशों को वनडे खेलने का स्टेटस देता है तो फिर उन सभी 16 देशों को वर्ल्डकप में क्यों नहीं शामिल कर सकता ? ज़रा सोचिए टेस्ट स्टेटस हासिल रखने वाले ज़िम्बाब्वे और आयरलैंड के आलावा वनडे स्टेटस वाले नेपाल, स्कॉटलैंड, नीदरलैंड्स, यूएई जैसे देश भी अगर वर्ल्डकप में खेल रहे होते तो वहां के देशवासियों को अपनी टीम को वर्ल्डकप में खेलता देख कैसा महसूस होता और वह उनके लिए किस क़दर समर्थन करते। ऐसा करने से न सिर्फ़ सेल खेल लोकप्रिय हो सकता है बल्कि बड़ी टीमों के साथ खेलते हुए इन देशों का स्तर भी सुधर सकता है। जिसका बड़ा उदाहरण हैं अफ़ग़ानिस्तान और आयरलैंड जैसे देश, जिनमें इस बार आयरलैंड तो वर्ल्डकप में खेल भी नहीं पाएगा। अब आईसीसी के एक और ग़लत फ़ैसले पर नज़र डालिए, 4 सालों पर वनडे वर्ल्डकप के अलावा आईसीसी हर दो सालों में चैंपियंस ट्रॉफ़ी भी कराता है। चैंपियंस ट्रॉफ़ी का फ़ॉर्मेट अब आईसीसी ने ऐसा बनाया है जिसमें टॉप-8 टीमों के ही बीच प्रतिस्पर्धा होती है, जिसे तब जायज़ ठहराया जा सकता था जब वर्ल्डकप में 10 की जगह सभी वनडे स्टेटस वाले देश यानी 16 टीम खेलती। जब हर दो सालों में 8 बड़ी टीमों के बीच चैंपियंस ट्रॉफ़ी हो ही रही है तो फिर 4 सालों में 10 देशों के बीच वर्ल्डकप का क्या मायने रह जाता है। एसोसिएट देशों में से अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों को आईसीसी इनाम के तौर पर वनडे और फिर वनडे में अच्छा प्रदर्शन करने वालों को टेस्ट का दर्जा तो दे देती है। लेकिन क्या सच में इसका कोई फ़ायदा है ? अभी नेपाल और इससे पहले पापुआ न्यू गिनी को भी आईसीसी ने वनडे स्टेटस दिया था पर उसका फ़ायदा कुछ हुआ ? क्या पापुआ न्यू गिनी ने वनडे स्टेटस मिलने के बाद किसी बड़ी टीम के ख़िलाफ़ मैच खेला ? क्या आने वाले समय में नेपाल से भी पापुआ न्यू गिनी की तरह वनडे स्टेटस छीन कर किसी और देश को दे दिया जाएगा ? आईसीसी को आने वाले वक़्त में गंभीरता से इन विषयों पर सोचने की ज़रूरत है, सिर्फ़ एसोसिएट सदस्यों के बीच लिस्ट ए क्रिकेट करा देने से न तो क्रिकेट का स्तर बढ़ पाएगा और न ही क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हो पाएगा। 12 देशों को टेस्ट स्टेटस, 16 देशों को वनडे स्टेटस और 18 देशों को टी20 अंतर्राष्ट्रीय स्टेटस दे देने भर से ये खेल नहीं बढ़ पाएगा। क्योंकि किसी भी देश में किसी खेल को लोकप्रियता तभी मिलती है जब उस के देश खिलाड़ी दिल और जज़्बे के साथ उस खेल को खेलें और वहां के लोग और प्रशंसक भी अपने इन खिलाड़ियों और टीमों के प्रति उसी जज़्बे के साथ दिलचस्पी लें। और ये तभी संभव है जब वर्ल्डकप और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़्यादा से ज़्यादा देशों के बीच क्रिकेट की प्रतिस्पर्धा हो।