घरेलू भारतीय क्रिकेटरों के लिए मुश्किल भरी परिस्थिति है। उन्हें सीजन 2016-17 के लिए अभी भुगतान होना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनोनीत लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करने के लिए बनाई गई प्रशासकों की समिति और बोर्ड के बीच खींचतान के चलते राज्य क्रिकेट संघों को बोर्ड से भुगतान नहीं मिल पाया है।
रणजी मैचों में चार दिवसीय मुकाबलों के लिए एक खिलाड़ी को प्रति दिन 10 हजार रूपये का भुगतान होता है। सीजन के बाद उनके राज्य संघ यह पैसा तुरन्त उन्हें देते हैं। इसके अलावा बोर्ड के केन्द्रीय अनुबंधों में रेवन्यू शेयर के आधार पर मिलने वाला पैसा अलग होता है। बीसीसीआई यह भुगतान भी राज्य संघो को करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य क्रिकेट बोर्डों को भुगतान करने से बीसीसीआई को रोक दिया है इसलिए इन खिलाड़ियों की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ खिलाड़ियों पर इसका असर हुआ है, कोच सपोर्ट स्टाफ, ग्राउंड्समैन आदि सभी लोगों पर इसकी गाज गिरी है।
अक्टूबर 2016 में बीसीसीआई की निधियों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्णय देकर कोर्ट ने राज्य क्रिकेट बोर्डों को तगड़ा झटका दिया था। इसके बाद सीओए का गठन कर लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू नहीं करने तक राज्य क्रिकेट संघों को पैसा वितरित नहीं करने का फैसला लिया गया। मुंबई जैसे बड़े एसोसिएशन के पास राशि होने के कारण समस्या नहीं हुई लेकिन बीसीसीआई के 30 सदस्यों में से आधे राज्य बोर्ड फण्ड की कमी का सामना कर रहे हैं।
वेस्ट जोन के एक अधिकारी ने कहा कि बोर्ड से जुड़े होने के बाद अगर फण्ड नहीं मिलता है, तो हम कैसे चलाएंगे। आगे कहा गया कि कैसे भी करने हमने पिछले वर्ष मैनेज कर लिया लेकिन अब मुश्किल है। राज्य संघों की बात नहीं सुने जाने पर खिलाड़ियों को सीधा बीसीसीआई को लिखने की सलाह दी गई है।
दक्षिण जोन के एक अधिकारी ने भी कहा कि जबसे बोर्ड से भुगतान मिलना बंद हुआ है, हमने बोर्ड को कहा है कि खिलाड़ियों को सीधा आप ही भुगतान कर दो।