भारत आखिरकार अपनी प्रतिष्ठा बचाने में भी नाकाम रहा। इंग्लैंड के खिलाफ अंतिम टेस्ट मैच में हार तो यही बयां करता है। बल्लेबाजों की नाकामी भारत के लिए आगामी विश्व कप की तैयारियों के मद्देनजर घातक साबित हो सकती है। एक तरफ कप्तान विराट कोहली ने उम्दा प्रदर्शन किया तो दूसरी तरफ उनके भरोसेमंद बल्लेबाज इंग्लैंड के गेंदबाजों के सामने रेंगते नजर आए। इस हार के बाद मुख्य कोच रवि शास्त्री की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। हालांकि गौर से देखें तो भारतीय टीम का यह प्रदर्शन कोई नया नहीं है। घरेलू मैदान पर जीत के आदि हो चुकी वर्तमान टीम को जरा सा स्विंग विकेट मिला नहीं कि पस्त हो जाती है। बीते चैंपियंस ट्रॉफी को ही उदाहरण मान लें तो साफ पता चल जाएगा कि हमारे बल्लेबाज अब तकनीक के सहारे बल्ला घुमाने की जगह आडे़-तिरछे खेल कर रन बटोरना सीख गए हैं। इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट में भी यही हुआ। विकेट के सामने खड़े रहकर रन बटोरा जा सकता था लेकिन विराट को छोड़ दें तो किसी के पास जेम्स एंडरसन और मोईन अली के गेंद का जवाब नहीं था। अब भारतीय टीम के सामने एशिया कप और उसके बाद विश्व कप है। साथ ही तीन महीने बाद टीम को ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना होना है। इस लिहाज से उसे अभी से ही पसीना बहाना होगा। हार के जिम्मेदार लोअर मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज इंग्लैंड दौरे के दौरान भारतीय गेंदबाजों ने उम्दा प्रदर्शन किया। कुछ मौकों को छोड़ दें तो उन्होंने मेजबान को जोरदार टक्कर दी। लेकिन हमारे बल्लेबाज औंधे मुंह गिरे। शीर्षक्रम और मध्यक्रम की पहले भी बहुत बात हो चुकी है लेकिन इस सीरीज में भारत की हार के लिए लोअर मिडिल क्रम में बल्लेबाजी करने आए क्रिकेटर जिम्मेदार हैं। पांचों टेस्ट मैच को देखें तो भारत की ओर से जहां कुल पांच शतक और 10 अर्धशतक लगे वहीं इंग्लैंड केवल चार शतक और 10 अर्धशतक लगा पाया। हालांकि उसके लोअर मिडिल ऑर्डर ने छोटी-छोटी साझेदारियां कीं और टीम को जीत की दहलीज तक ले गए। भारतीय क्रिकेट का इतिहास है जहां कप्तान बल्लेबाजी में पास लेकिन कप्तानी में फेल होता है भारतीय क्रिकेट जगत में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब टीम के कप्तान का व्यक्तिगत प्रदर्शन सर्वोच्च हो लेकिन टीम मैच हार गई। इतिहास को पलटकर देखें तो सचिन तेंदुलकर के रूप में ताजा उदाहरण मिलता है। सचिन की कप्तानी में टीम एक के बाद एक मैच हार रही थी लेकिन सचिन का प्रदर्शन अच्छा था। उन्होंने अपनी कप्तानी में सात शतक लगाए। साथ ही रन बनाने के औसत को 50 के पार रखा। भारत के सफलतम कप्तानों में शामिल महेंद्र सिंह धोनी का भी यही हाल रहा। 2014 में धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया एक बाद एक सीरीज हार रही थी। हालांकि धोनी तब भी ठीक-ठाक खेल रहे थे। सौरव गांगुली इस मामले में भाग्यशाली रहे हैं जिन्हें ऐसे दिन नहीं देखने पड़े। तीन महीने बाद शुरू होना है ऑस्ट्रेलिया का दौरा इंग्लैंड रवाना होने से पहले भारतीय टीम अभ्यास सत्र को नजरअंदाज करती रही। इसका नतीजा उन्हें हार के रूप में मिला। ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए अब बस तीन महीने ही बचे हैं इस लिहाज से उन्हें अभी से ही उसकी तैयारी में लग जाना चाहिए। टीम तो वही रहेगी लेकिन मेहनत और कुछ गलतियों को सुधार कर वे इंग्लैंड से हार को भुला सकते हैं। विराट कोहली को भी टीम चयन में सतर्कता बरतने के साथ ही अतिविश्वास से बचना होगा।