शारजाह का भूत
18 अप्रैल 1986 का दिन दुनिया भर के क्रिकेट प्रशंसकों के लिये कभी न भुला पाने वाला दिन है। उस दिन जो भी हुआ, उसने क्रिकेट के खेल को बदलकर रख दिया था। अब खेल के मैदान पर कुछ भी असंभव नही माना जाता और क्रिकेटरों और क्रिकेट प्रेमियों को उस दिन पता चला कि एक मैच चाहे कितना मुश्किल क्यों न हो, उसे जीता जा सकता है। हालांकि, भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के लिए ये यादें उतनी अच्छी नही हैं, उस दिन की घटनाओं ने एक दशक तक एक नये तरह के क्रिकेट खेलने के ढंग का आगाज़ कर दिया। यह घटना थी जावेद मियांदाद का चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर छक्का जड़ने की। यह वह अवसर था जब पाकिस्तान ने एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में मुख्य रूप से शारजाह में भारत पर प्रभुत्व स्थापित किया। यह तब तक चलता रहा जब तक कि भारत सरकार ने इस स्थल पर प्रतिबंध लगा दिया और क्रिकेट बोर्ड को 2001 के शारजाह कप के लिए टीम नहीं भेजने का निर्देश दिया। आईसीसी वर्ल्डकप में भारत को न हरा पाने की पाकिस्तान की अक्षमता के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से भारत को अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों को खेल के छोटे संस्करण में जीत मिलना मुश्किल होता आया, लेकिन सभी विश्व कप के मुकाबले में पाकिस्तान को भारत हमेशा हराता रहा। शारजाह में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बार बार खेल संदेह के घेरे में आता रहा था, लेकिन विश्लेषक आज भी उन दावों की सच्चाई से पुर्णतः सहमत नही है। लगभग 14 वर्ष की अवधि के दौरान शारजाह में पाकिस्तान ने सबसे अधिक मौकों पर जीत दर्ज की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तानी टीम में इमरान खान, वसीम अकरम, वकार यूनुस और अब्दुल कादिर जैसे शानदार गेंदबाज़ शामिल थे। मगर जावेद मियांदाद, सलीम मलिक, सईद अनवर और इंजमाम-उल-हक की बल्लेबाजी भी कम नहीं थी। आईये एक नज़र डालें भारत की शारजाह में परेशानियों से भरी धुंधली यादों पर ?# 5 रेगिस्तान में क्रिकेट
1 / 5
NEXT