ऐसे समय जब भारतीय क्रिकेट प्रशंसक इंडियन प्रीमियर लीग में अपनी पसंदीदा टीम को चीयर कर रहे हैं, बीसीसीआई ने आगामी अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए टीमों का चयन कर दिया है। इस साल भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरा सबसे महत्वपूर्ण दौरा होगा। भारत को जुलाई में इंग्लैंड का दौरा करना है जिसमें इन्हें 3-3 मैचों की टी -20 और एकदिवसीय श्रृंखला और फिर 5 टेस्ट मैच खेलने हैं। इंग्लैंड के खिलाफ भारतीय टीम के लिए सबसे प्रतिष्ठित टेस्ट श्रृंखला में से एक था 1996 का इंग्लैंड दौरा, जिसने दो नए खिलाड़ियों का अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण हुआ था जो बाद में महान खिलाड़ी बने। भले ही भारत ने वह श्रृंखला गंवा दी थी लेकिन उस श्रृंखला में जो उन्होंने हासिल किया, उसे शब्दों में वर्णित करना मुश्किल है। तो आइए जानते हैं 11-सदस्यीय उस टीम के बारे में जिसने 1996 में टेस्ट श्रृंखला के लिए इंग्लैंड का दौरा किया था:
विक्रम राठौर
विक्रम राठौर भारतीय टीम में पंजाब के बल्लेबाज़ थे। उन्होंने 199 6 से 1997 के बीच देश के लिए 6 टेस्ट और 7 एकदिवसीय मैच खेले हैं। वह इंग्लैंड के खिलाफ श्रृंखला में टीम के मुख्य सलामी बल्लेबाज थे। हालाँकि राठौर ने इंग्लैंड के खिलाफ उस टेस्ट सीरीज़ में निराशाजनक प्रदर्शन किया था और पूरी श्रृंखला में 4 पारियों में केवल 46 रन बनाए थे। तीसरे टेस्ट में, उन्होंने केवल पहली पारी में बल्लेबाजी की और सिर्फ चार रन बनाकर आउट हुए। राठौर ने 2003 में घरेलू क्रिकेट से सन्यास लिया और फिर बीसीसीआई के चयनकर्ताओं के पैनल में उत्तरी क्षेत्र के चयनकर्ता बने। उन्होंने 2008 में विश्व टी -20 विश्व कप जीतने वाली टीम को चुना था। वह वर्तमान में हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के निदेशक और हिमाचल प्रदेश रणजी टीम के कोच हैं।
नयन मोंगिया
1990 के इंग्लैंड दौरे के लिए नयन मोंगिया को भारतीय टीम में पहली बार चुना गया था। हालांकि, वह किरण मोरे के टीम में रहते हुए वह विकेटकीपर के रूप में दूसरे विकल्प थे। भारत के इंग्लैंड में 1996 के दौरे में, मोंगिया टीम के प्रमुख विकेटकीपर थे और उन्होंने पहले दो टेस्ट में शीर्ष क्रम पर बल्लेबाज़ी की थी। उन्होंने उस श्रृंखला में अपनी 5 पारियों में केवल 105 रन बनाए थे । नयन मोंगिया ने अपना आखिरी टेस्ट 2001 में ईडन गार्डन्स में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला था। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने थाईलैंड और मलेशिया की क्रिकेट टीमों को प्रशिक्षित किया और अब वह एक विशेषज्ञ कमेंटेटर के रूप में नज़र आते हैं।
सौरव गांगुली
सौरव गांगुली को पहली बार 1992 में भारतीय टीम में चुना गया था, लेकिन वह 4 साल के बाद ही अंतिम एकादश में जगह बना पाए। इस श्रृंखला के दूसरे टेस्ट में गांगुली ने अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण किया का था। सौरव गांगुली के लिए यह एक शानदार श्रृंखला थी क्योंकि उन्होंने इस टेस्ट में अपनी दो पारियों में दो बैक-टू-बैक शतक बनाए थे। इस टेस्ट श्रृंखला ने भारत को दो महान क्रिकेटर दिए, सौरव गांगुली उनमें से एक थे। गांगुली ने 2008 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा और फिर वह बंगाल क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रहे। वह आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी घोटाले की जांच के लिए बनाई गई मुद्गल कमेटी के सदस्य हैं। इसके अलावा वह इंडियन सुपर लीग में एटलेटिको डी कोलकाता फुटबॉल टीम के मालिक हैं।
सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट इतिहास में सबसे बड़ा नाम हैं। उन्हें 20 वर्षों तक मैदान पर अपने शानदार प्रदर्शन के लिए 'क्रिकेट का भगवान' कहा जाता है। 1996 में सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी थे। सचिन ने उस दौरे में दो शतक बनाए थे। लेकिन उस श्रृंखला में सचिन की बजाय युवा क्रिकेटरों ने दर्शकों का ध्यान अपनी और खींचा था। इस दौरे ने भारतीय मध्य क्रम को की महान खिलाड़ी दिए जिन्होंने लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट की सेवा की। सचिन तेंदुलकर ने 2013 में अपने घरेलू मैदान पर अपने शानदार करियर को समाप्त किया। उन्हें 2012 में भारतीय संसद के ऊपरी सदन के सदस्य के रूप में नामित किया गया था और वह वर्तमान में आईपीएल में मुंबई इंडियंस टीम के सलाहकार हैं।
संजय मांजरेकर
संजय मांजरेकर ने 1987 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट से अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी। वह पूर्व भारतीय क्रिकेटर विजय मांजरेकर के पुत्र हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले अपने परिवार के तीन सदस्यों में से एक हैं। मांजरेकर ने 1996 की टेस्ट श्रृंखला में केवल दो मैच खेले थे लेकिन इनमें वह कुछ खास नहीं कर पाए थे। उन्हें पहले टेस्ट में खराब प्रदर्शन करने के बाद दूसरे टेस्ट में टीम में जगह नहीं मिली थी लेकिन तीसरे टेस्ट में उन्होंने वापसी की और एक अर्धशतक लगाने में कामयाब रहे थे। मांजरेकर ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 1996 में भारत के लिए अपना अंतिम टेस्ट खेला। इसके बाद वह 1997 में मुंबई टीम के कप्तान के रूप में रणजी ट्रॉफी जीतने में कामयाब रहे और फिर 1998 में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया। वह वर्तमान में एक प्रसिद्ध कमेंटेटर है और अकसर आईपीएल में कमेंट्री करते देखे जा सकते हैं।
मोहम्मद अज़हरुद्दीन
मोहम्मद अज़हरुद्दीन 1996 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली भारतीय टीम के कप्तान थे। वह टीम के मुख्य बल्लेबाजों में से एक थे और मध्य क्रम को संभालने की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गई थी। इंग्लैंड दौरा में अज़हरुद्दीन उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए और उन्होंने पूरी श्रृंखला में सिर्फ एक ही अर्धशतक लगाया। मैच-फिक्सिंग के आरोपों में घिरने के बाद उनको क्रिकेट छोड़ना पड़ा । 2000 के मैच फिक्सिंग आरोप में अजहरुद्दीन को फंसाया गया था और बीसीसीआई ने उनपर आजीवन प्रतिबंधित प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में प्रतिबंध के खिलाफ अनुरोध किया और आखिरकार 2009 में उनके ऊपर से प्रतिबंध हटा लिया गया। वह वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और 2009 से 2014 तक मोरादाबाद निर्वाचन क्षेत्र के संसद सदस्य थे।
राहुल द्रविड़
राहुल द्रविड़ 1996 की इंग्लैंड सीरीज़ में पदार्पण करने वाले दूसरे खिलाड़ी थे और उन्होंने सौरव गांगुली के साथ लॉर्ड्स में दूसरे टेस्ट में अपना पहला मैच खेला। उसके बाद, द्रविड़ भारतीय क्रिकेट के महानतम बल्लेबाज़ों में से एक हुए। उस टेस्ट सीरीज़ में द्रविड़ ने शानदार शुरुआत की थी और अपने पहले टेस्ट मैच में 95 रन की पारी खेली थी और उसके बाद तीसरे टेस्ट की पहली पारी में 84 रन बनाए थे। हालांकि उन्होंने श्रृंखला में एक भी शतक नहीं बनाया, लेकिन वह दोनों मैचों में उन्होंने महत्वपूर्ण सांझेदारी निभाई थी। द्रविड़ ने 2013 में क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया और फिर आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स और दिल्ली डेयरडेविल्स के सलाहकार के रूप में काम किया। वर्तमान में वह अंडर -19 भारतीय टीम के कोच हैं और उनके मार्गदर्शन में टीम ने इस वर्ष का अंडर -19 विश्व कप जीता है।
अनिल कुंबले
अनिल कुंबले ने 1990 में अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी और 1996 के इंग्लैंड दौरे में वह टीम के सबसे महत्वपूर्ण गेंदबाज थे। इसके बाद, वह पहले ऐसे पहले भारतीय गेंदबाज बन गए, जिसने टेस्ट मैचों में सबसे ज़्यादा 619 विकेट लिए हैं। हालाँकि कुंबले के लिए यह टेस्ट श्रृंखला अच्छी नहीं रही और उन्होंने पूरी सीरीज़ में सिर्फ 5 विकेट लिए थे। अनिल कुंबले को 2005 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया और उन्हें 2012 में आईसीसी की अंतर्राष्ट्रीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। कुंबले ने 2016 में भारतीय टीम के कोच के रूप में नियुक्त होने से पहले आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और मुंबई इंडियंस के सलाहकार के रूप में कार्य किया है। वर्तमान में, वह स्टार स्पोर्ट्स स्टूडियो में एक विशेषज्ञ कमेंटेटर के रूप में खेल के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते हुए देखे जा सकते हैं।
जवागल श्रीनाथ
जवागल श्रीनाथ भारत के सबसे सफल तेज़ गेंदबाज़ रहे हैं। वह अपनी गति और सटीकता से दुनिया के किसी भी बल्लेबाज़ को परेशान कर सकते थे। वह 1990 के दशक में भारतीय टीम के मुख्य तेज गेंदबाज थे। श्रीनाथ ने 1991 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला मैच खेला था। श्रीनाथ ने भारत के लिए 67 टेस्ट मैचों में 236 विकेट लिए हैं और वनडे में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 229 मैचों में 315 विकेट लिए हैं। 2003 विश्व कप के बाद श्रीनाथ ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। इसके बाद वह कर्नाटक राज्य क्रिकेट एसोसिएशन में सचिव पद पर रहे। वर्तमान में, वह एक आईसीसी मान्यता प्राप्त मैच रेफरी हैं और 35 टेस्ट, 194 वनडे और 60 टी 20 मैचों में मैच रेफरी रहे हैं।
वेंकटेश प्रसाद
वेंकटेश प्रसाद 90 के दशक में श्रीनाथ के बाद भारत के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण गेंदबाज थे। गेंद को स्विंग कराने की उनकी क्षमता उन्हें भारत के सर्वर्श्रेष्ठ गेंदबाज़ों में से एक बनाती है। 1996 में भारत के इंग्लैंड दौरे में प्रसाद भारतीय टीम के मुख्य गेंदबाज़ थे। वह 2001 तक भारतीय टीम का हिस्सा रहे और उसके बाद उन्होंने क्रिकेट से संन्यास ले लिया। उन्होंने 33 टेस्ट मैचों में 96 विकेट और 161 वनडे मैचों में 196 विकेट लिए। संन्यास के बाद, प्रसाद को 2007 में भारतीय टीम का गेंदबाजी कोच बनाया गया। बाद में, उन्होंने कई आईपीएल फ्रेंचाइजी के लिए एक सलाहकार के रूप में काम किया। वर्तमान में वह किंग्स इलेवन पंजाब के गेंदबाजी कोच के रूप में काम कर रहे हैं।
वेंकटपति राजू
वेंकटपति राजू भारतीय टीम के एक शानदार स्पिनर रहे हैं । वह एक दशक से अधिक समय तक भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं, जो उनकी क्षमता का संकेत है। राजू ने भारत के लिए 28 टेस्ट मैचों में 31 की औसत से 93 विकेट लिए हैं और 53 एकदिवसीय मैचों में 32 की औसत से 63 विकेट लिए हैं । हालाँकि प्रसन्ना, बेदी, चंद्रशेखर, हरभजन और अश्विन जैसे बेहतरीन स्पिनर्स के सामने राजू का प्रदर्शन कुछ खास नहीं लगता लेकिन 90 के दशक में वह कुंबले के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण स्पिनर थे। राजू ने 2004 में क्रिकेट से संन्यास लिया। वह 2007-08 में दक्षिण जोन से भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता बने। वर्तमान में, राजू एक गोल्फर हैं और उन्होंने इस साल जनवरी में मर्सिडीज ट्रॉफी के लिए हैदराबाद क्वालिफायर में भी भाग लिया था। लेखक: वरुण देवनाथन अनुवादक: आशीष कुमार