कोलकाता के ईडन गार्डंस स्टेडियम में भारतीय टेस्ट इतिहास का पहला पिंक बॉल मैच खेला जा रहा है। दो दिन के भीतर इसमैच में काफी कुछ देखने को मिला है। रन भी बने हैं और विकेट भी गिरे हैं। यह अलग बात है कि रन भारत ने बनाए हैं और विकेट बांग्लादेश की टीम के गिरे हैं। तीन दिन में 28 विकेट गिरे, इनमें सिर्फ एक विकेट स्पिनर को मिला। यही वजह थी कि भारत ने तेज गेंदबाजों के बेहतर खेल के कारण एक पारी और 46 रन से मैच जीता।
इस मैच से एक बात साफ़ देखी जा सकती है कि पिंक बॉल से टेस्ट मैच में स्पिनरों की बजाय तेज गेंदबाजों को ज्यादा सफलता मिली है। दूसरे शब्दों में कहें तो 95 फीसदी भूमिका तेज गेंदबाजों की रही है। दोनों टीमों की गेंदबाजी में यह बात समान रूप से देखी गई है। घास पड़ने के बाद पिंक बॉल ज्यादा तेज निकलती है जो लाल गेंद में देखने को नहीं मिलता।
स्पिनरों की बात करें, तो उन्हें इस गेंद से बिलकुल टर्न मिलते हुए नहीं देखा गया। गेंद की सीम जल्दी खराब नहीं होती और लेदर भी चमकदार ज्यादा समय तक रहता है। यही वजह है कि स्पिनरों को गेंद को ग्रिप करने में परेशानी होती है और टर्न नहीं मिलती। भारतीय गेंदबाज अश्विन की गेंदबाजी में दिखा भी था कि उनकी गेंद बिलकुल नहीं घूम रही थी। यही हाल विपक्षी गेंदबाज तैजुल इस्लाम की गेंदबाजी में दिखा। हालांकि तैजुल को एक विकेट जरुर मिला लेकिन गेंदबाजी में धार कतई नहीं थी। तैजुल को मिला विकेट ही ऐसा था जो स्पिन विभाग के खाते में गया, दूसरे दिन और तीसरे दिन के पहले सेशन तक दोनों टीमों की तरफ से आउट होने वाले सभी बल्लेबाज तेज गेंदबाजों का शिकार बने।
इस मैच से एक सीख यह मिलती है कि भारतीय पिचों पर थोड़ी घास रहने पर तेज गेंदबाजों को मदद मिलेगी और पिंक बॉल से स्विंग और गति भी मिल रही है। इससे टीम चुनते समय स्पिनर की जगह तेज गेंदबाज को ही टीम में शामिल करना उचित निर्णय होगा। हालांकि यह पहला डे-नाईट टेस्ट था लेकिन आने वाले मैचों के लिए इसमें घटित हुई चीजें मददगार होगी।
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