अगर 1971 की जीत ऐतिहासिक थी तो 1997 की यह हार शर्मनाक थी। बारबाडोस की हरी पिच पर वेस्टइंडीज की पहली पारी 298 रन पर सिमटी थी। जवाब में भारत ने 319 रन बनाए और अपनी स्थिति सुखद कर ली। अबे कुरूविला की अगुवाई में भारतीय तेज गेंदबाजों ने मेजबान टीम को दूसरी पारी में 140 रन के मामूली स्कोर पर ऑलआउट कर दिया। भारत को जीत के लिए 120 रन का आसान लक्ष्य मिला। मगर तभी वेस्टइंडीज के गेंदबाजी आक्रमण ने पारी में नियंत्रण पाया और भारतीय पारी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। इयन बिशप ने 4, कर्टली एम्ब्रोस ने तीन और फ्रेंक्लिन रोज ने तीन विकेट लेकर मेहमान टीम को दूसरी पारी में 81 रन से हरा दिया। इस हार का प्रभाव ऐसा रहा कि सचिन तेंदुलकर जो उस टीम के कप्तान थे, ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में इसका अलग से उल्लेख किया। तेंदुलकर ने अपनी बुक प्लेइंग ईट माय वे में लिखा, 'सोमवार 31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास का काला दिन था और मेरी कप्तानी का सबसे खराब दिन।'