उन दिनों धीरे- धीरे 21वीं सदी का पहला बरस अपनी लय में चलने लगा था| जिसे देखो जहाँ देखो, वही उत्साह उमंग से सराबोर हो, “देखो टू थाउजेंड जमाना आ गया खुल कर जीने का फ़साना आ गया” धुन की धूनी रमाये बैठा था | तो उधर भारतीय क्रिकेट टीम भी “ऑफ़ साइड के सिकंदर” सौरव गांगुली की धुन पर धूनी रमाने को तैयार बैठी थी | नई सदी की नई भारतीय क्रिकेट टीम | आक्रमक अंदाज, आंखो में आंखे डाल, किसी भी टीम चित करने का माद्दा, तो दूसरी तरफ, क्रिकेट के शास्त्रीय शैली की मोहकता अपने चरम पर | हां अभी ही कुछ दिन पहले ही स्टीव वॉ के ऑस्ट्रेलियन घोड़ों को कलाइयों के जादूगर लक्ष्मण ने काबू में किया था और इस पूरी कवायद में जादूगर का साथ जेमी “द वाल द्रविड़” ने बखूबी दिया | मगर इन सबसे परे तेंदुलकर का कहना ही क्या वह तो अपनी “द गॉड” की ख्याति को पुख्ता ही करते चले जा रहे थे| तब तक वैश्विक मीडिया ने भी तेंदुलकर, गांगुली, द्रविड़ और लक्ष्मण की भारतीय बल्लेबाजी चौकड़ी को “फैब फोर” की उपाधि दे दी थी|
बल्लेबाजों के इस शानदार क्रम से इतर इधर गेंदबाजी में श्रीनाथ, प्रसाद से मशाल थामते नेहरा और ज़हीर का साथ देते अगरकर | कुंबले का अभिन्न अंग बन चुके हरभजन के संग नई पौध में “क्लासिकल लेफ्ट हैण्डर” युवी का उभरना, सचिन के “क्लोन” सहवाग का गेंदबाजों पर चढ़ जाना, कैफ की चपलता, सब मिला कर एक ऐसी टीम, जिससे विश्वकप जितने की चाहत तो रखी जा सकती थी और इस चाहत को लिए करोड़ों भारतीय, उस पर आसमानों से ऊँची उनकी उम्मीदें |उस पर से सन 2003 का क्रिकेट विश्व कप दक्षिण अफ्रीका में होना | आत्मविश्वास से भरी भारतीय टीम दनदनाती हुई फाइनल में पहुंची | सामने ऑस्ट्रेलिया, मगर इस बार यहां पोंटिंग का प्रहार, उनके बैट में स्प्रिंग होने की अफ़वाह और एक झटके में करोड़ो भारतीयों का दिल टूटना |
इन टूटे दिलों दर्द के बीच कई भारतीय खिलाडियों ने खेल को दसविदानिया कहा तो कुछ ने विश्व क्रिकेट के रंगमंच पर पदार्पण किया | जिसमें “मिस्टर कूल” धोनी का “मिडास टच” आगे आने वाले बरसों में इतिहास रचने वाला था तथा इस ऐतिहासिक रथ यात्रा में गौतम अपनी गंभीर भूमिका निभाने वाले थे | लेकिन नए रैना संग पुराने “द ग्रेट ग्रेग - गांगुली प्रकरण” की आपाधापी में क्रिकेट वर्ल्ड कप का “कैरेबियन कैमियो” सन 2007 में भारत के हिसाब से कब गुजर गया पता भी न चला | अभी बस भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के गुस्से में चटकने कुछ आवाजें ही आनी शुरू हुई थी कि सारा मामला क्रिकेट के नए प्रारूप टी-20 विश्वकप की तरफ मुड़ गया |
एक नए नायब के साथ एक बार फिर नई युवा टीम, हद से ज्यादा नए चेहरे | तब के भारत ने इस नए क्रिकेट को निर्विकार, निष्काम भाव की निश्चिन्तिता के साथ मनोरंजन की तरह ग्रहण किया | जिसमें मनोरंजन का सबसे बेहतरीन तड़का “सिंह” के लगातार छह छक्के की गर्जना ने लगाया | लेकिन यह क्या, आगे जोगिन्दर ने तो जोग जागते हुए टीम को टी-20 विश्वकप का विजेता ही बना दिया | टी-20 की इस सफलता के सौजन्य से चतुर-चपल भारतीय क्रिकेट ने घरेलू खिलाडियों व दर्शकों को आईपीएल के रूप में एक नया रंग दे दिया | अब कुछ इस तरह से भारतीय क्रिकेट की गाड़ी पटरी पर वापस आने लगी | स्टेशन दर स्टेशन पुराने यात्री उतरते गए और उम्मीदों के नए यायावर चढ़ते चले आए | तब कौन जानता था कि इनमें से किसी को अगले दशक में प्रचंड बल्लेबाजी फॉर्म के साथ विराट कप्तानी करनी होगी तो कोई रो-हिटमैन बनकर एकदिवसीय क्रिकेट में कई दोहरे शतक जड़ेगा |
कुल जमा ग्यारह साल के इस पुरे सफ़र में कई दिन बीते, महीने गुजर गए और दीवारों पर टंगे कैलेंडर साल दर साल पुराने होते चले गए | कप्तानी भी गांगुली से द्रविड़, द्रविड़ से कुंबले, कुंबले से धोनी को मिलती चली गई | समय भी अपनी गति से चलता हुआ, सन 2011 में पहुंच गया | गोल दुनिया में क्रिकेट विश्वकप की धूम, लेकिन इस बार भारत में | अब तो दबाव भी दबाव में | लेकिन, कहीं कोई चूक नहीं, ऑस्ट्रेलिया क्वार्टरफाइनल में परास्त, पाकिस्तान सेमीफाइनल में ध्वस्त, अंततः फाइनल में श्रीलंका, धोनी के छक्के से चारों खाने चित | “स्ट्रेट बैट के फुल फॉलो थ्रू” के साथ धोनी द्वारा लगाया गया “वर्ल्ड कप विनिंग शॉर्ट” अब विश्व क्रिकेट के शताब्दियों की तस्वीरों में शुमार था | कैंसर से जूझते युवराज की आँखों में आंसुओं का न रुकना, भावुक टीम के साथ तेंदुलकर का राष्ट्र ध्वज लहरा देना भी सदा- सदैव सदियों तक देश की स्मृति में अमिट रहेंगे |
लेकिन इन सबसे इतर यह विश्वकप ट्रॉफी सम्मान है, उन निस्वार्थ क्रिकेट प्रेमियों का जो जुनूनी हो पागलों की तरह अपने अंतर्राष्ट्रीय खिलाडियों का हौसला बढ़ाते हैं | यह स्नेह है, उस दशक के देश के उन सभी क्रिकेटरों का, जिनकी आँखों में देश को प्रतिनिधित्व करने का सपना था, जो जिला स्तर, राज्य स्तर जूनियर क्रिकेट, प्रथम श्रेणी क्रिकेट या देश के लिए खेले परन्तु उस समय उस पन्द्रह में जगह नहीं बना पाए | साथ ही यह जीत समर्पण है, इस देश के कई रमाकांत आचरेकर का जिनके मार्गदर्शन के बलबूते हम सभी को कभी न भूलने वाला यह पल मिला | हां यह प्रेरणा है भविष्य के लिए कि विजय का यह कारवां रुकना नहीं चाहिए |