सुरेश रैना ने सबसे पहले अपना प्रभाव 20 साल की उम्र में छोड़ा था जब इंग्लैंड के खिलाफ भारतीय टीम 227 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए 92 रनों पर आधी टीम पवेलियन लौट चुकी थी, रैना ने अपने दम पर टीम को लक्ष्य तक पहुँचाया था। उस समय 10 से भी कम एकदिवसीय मैच खेले खिलाड़ी के कठिन परिस्थितियों में खेली पारी ने उसके काबिलियत को दर्शा दिया। बल्लेबाजी के साथ ही रैना काफी अच्छे फील्डर होने के साथ ही एक टीम मैन के रूप में जाने जाते हैं। अगर आईपीएल और टी-20 की बात की जाये तो रैना उसके महान खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। टी-20 में शतक बनाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज भी सुरेश रैना ही हैं। 2011 विश्वकप में भी रैना ने मध्यक्रम में आकर महत्वपूर्ण पारियां खेली थी। टेस्ट मैचों में रैना के प्रदर्शन में निरन्तरता की कमी रही है जिसका कारण शॉर्ट गेंद के खिलाफ उनकी कमजोरी है, लेकिन कुछ समय बाद सीमित ओवरों के खेल में भी गेंदबाजों ने उनकी इस कमजोरी पर वार करना शुरू कर दिया। जिसके कारण रैना के प्रदर्शन ने लगातार गिरावट आने लगी। वर्तमान भारतीय टीम में एक से बढकर एक अच्छे फील्डर हैं जिस वजह से रैना की यह मजबूती भी अब उनके काम नहीं आ रही। इसके साथ ही रैना को इस बार बीसीसीआई की तरफ से मिलने वाले सलाना कॉन्ट्रैक्ट भी नहीं मिला है। ज्यादा उम्र ना होने की वजह से अभी भी रैना के वापसी के मौके हैं लेकिन फिर भी यह काफी मुश्किल काम दिखता है।