क्रिकेट के सबसे छोटे फ़ॉर्मेट का सबसे बड़ा महाकुंभ वैसे तो वर्ल्ड टी20 को कहा जाता है, लेकिन भारत की सबसे बड़ी टी20 लीग इंडियन प्रीमियर लीग को भी इससे कम नहीं आंका जाता। 8 फ़्रैंचाइज़ी बेस्ड टीमों के बीच होने वाले इस डेढ़ महीने के टूर्नामेंट में दुनिया भर के खिलाड़ियों का जमावड़ा लगता है, जिनपर क्रिकेट फ़ैंस से लेकर चयनकर्ताओं तक की नज़रें रहती हैं। कहा तो ये भी जाता है कि टीम इंडिया में आने के लिए अब रणजी ट्रॉफ़ी या दूसरे घरेलू टूर्नामेंट से कहीं ज़्यादा आईपीएल अहमियत रखता है। तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह, स्टार ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या और लेग स्पिनर युज़वेंद्र चहल का चयन भी उनके आईपीएल प्रदर्शन के आधार पर ही हुआ था। हालांकि सिर्फ़ यही तिकड़ी उदाहरण नहीं है बल्कि आईपीएल के पहले सीज़न से ही खिलाड़ियों ने इस लीग में सभी को प्रभावित करते हुए टीम इंडिया में जगह बनाई है। फिर चाहे आर अश्विन हों या मनप्रीत सिंह गोनी, चयनकर्ताओं के लिए आईपीएल एक शॉर्ट कट फ़ॉर्मूला बन गया। पांड्या, बुमराह, चहल, अश्विन इन सभी ने इसे सही भी सिद्ध किया और आज ये सभी टीम इंडिया के बड़े स्टार बन गए। लेकिन कई ऐसे भी खिलाड़ी हैं जिन्होंने चयनकर्ताओं के इस भरोसे और इस लीग में अच्छा करने के बावजूद ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साबित करने में नाकाम रहे। इन खिलाड़ियों की भी फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है जिनमें सौरभ तिवारी, राहुल शर्मा, कर्ण शर्मा, परविंदर अवाना, मनप्रीत सिंह गोनी जैसे नाम शामिल हैं। इसकी बड़ी वजह है इन खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट का अनुभव न होना या कम होना। दूसरी तरफ़, चयनकर्ताओं ने जिन खिलाड़ियों का टीम इंडिया में चयन उनके घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के आधार पर किया, वह सही मायनों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा नाम बन कर उभरे हैं। इनमें चेतेश्वर पुजारा, रविंद्र जडेजा, मुरली विजय, मोहम्मद शमी और टीम इंडिया के मौजूदा कप्तान और उप-कप्तान यानी विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद टीम इंडिया की जर्सी पहनने वाले सभी खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख़ुद को साबित कर पाए हैं। पिछले एक दशक में ऐसे खिलाड़ियों पर नज़र डालें तो इनमें सुब्रामनियम बद्रीनाथ, अभिवन मुकुंद, आर विनय कुमार, परवेज़ रसूल, अशोक डिंडा जैसे कई नाम हैं जिन्होंने रणजी ट्रॉफ़ी या दूसरे घरेलू क्रिकेट में कमाल का प्रदर्शन किया लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ ख़ास नहीं कर पाए। इसमें कोई शक़ नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दबाव अलग होता है जिसका असर कई युवा खिलाड़ियों पर पड़ता है। हाल ही में मोहम्मद सिराज के साथ भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है, आईपीएल में शानदार गेंदबाज़ी करने वाले सिराज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहले 3 टी20 मैचों में 148 रन लुटाकर विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। हालांकि उन्हीं के साथ डेब्यू करने वाले वॉशिंगटन सुंदर बेहद कम समय में ख़ुद को स्थापित करने की ओर क़दम भी बढ़ा रहे हैं। देखना है कि आईपीएल में अपने प्रदर्शन से चयनकर्ताओं को प्रभावित करने वाले बासिल थंपी और दीपक हुड्डा इस बड़े मंच पर कितना खरा उतर पाते हैं। आख़िर में यह कहना कहीं से ग़लत नहीं होगा कि खिलाड़ियों की प्रतिभा सही मायनों में बड़े मंच और बड़ी टीमों के ख़िलाफ़ परखी जाती है। चयनकर्ता भी शायद इन्हीं चीज़ों को ध्यान में रखते हुए मौजूदा दौर में घरेलू क्रिकेट से ज़्यादा तवज्जो आईपीएल के प्रदर्शन को देते हैं, क्योंकि वहां युवा खिलाड़ियों के पास बड़े सितारों और बड़े मंच पर ख़ुद को साबित करन का मौक़ा होता है। चयनकर्ताओं की इस सोच के साथ साथ मैं इसमें ये भी बढ़ाना चाहूंगा कि खिलाड़ियों को आईपीएल में उनके प्रदर्शन के आधार पर पहले चिन्हित करना चाहिए। उसके बाद उन खिलाड़ियों का प्रदर्शन रणजी ट्रॉफ़ी, देवधर ट्रॉफ़ी, विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी, दुलिप ट्रॉफ़ी या सैयद मुश्ताक़ अली टूर्नामेंट में कैसा है उसपर भी ध्यान देना आवश्यक है और जो खिलाड़ी सभी टूर्नामेंट में निरंतर प्रभावित करें उन्हें ही टीम इंडिया की जर्सी देना मेरी नज़र में ज़्यादा मुनासिब होगा। ताकि फिर चयनकर्ताओं पर न जल्दबाज़ी करने का आरोप लग सके और न ही पक्षपात का। इतना ही नहीं अगर युवा खिलाड़ियों के लिए टीम इंडिया में आने का मानक इसे बना दिया गया तो फिर खिलाड़ियों में हर एक मैच में अच्छा करने की ललक और जज़्बा भी बरक़रार रहेगा।