2004-05 में भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) वर्ल्ड क्रिकेट में मजबूती से आगे बढ़ रही थी। 1983 वर्ल्ड कप जीतने के बाद भारत में कई महान खिलाड़ी हुए, जिसमें मोहम्मद अजहरुद्दीन, सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीवीएस लक्ष्मण और वीरेंदर सहवाग जैसे कई दिग्गज खिलाड़ी थे। इन सभी क्रिकेटरों ने भारतीय क्रिकेट को एक नई दिशा दी।
90 के दशक में भारतीय टीम को एक कमजोर टीम माना जाता था, लेकिन सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी में इस धारणा को गलत साबित कर दिया। गांगुली ने अपनी कप्तानी में टीम में जीत की आदत डाली। उन्होंने आक्रामक क्रिकेट खेलने और जीत के लिए सब कुछ झोंक देने वाली भावना टीम के अंदर भरी। 2004 में जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 4 टेस्ट मैचों की सीरीज के लिए भारत का दौरा किया तब भारतीय टीम का आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ था।
ऑस्ट्रेलिया के साथ सीरीज से पहले भारतीय टीम पाकिस्तान में सीरीज जीतकर आई थी, इसलिए टीम अच्छी फॉर्म में दिख रही थी। अगर भारतीय टीम उस वक्त बेहतरीन फॉर्म में थी तो दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया की टीम भी जबरदस्त क्रिकेट खेल रही थी। उस समय उन्हें हराना लगभग असंभव सा था। हुआ भी ऐसा ही, कंगारु टीम ने भारत को टेस्ट सीरीज में 2-1 से हरा दिया। आइए आपको बताते हैं उस समय भारतीय टेस्ट टीम में कौन-कौन खिलाड़ी थे।
2004 में ऑस्ट्रेलिया से घर में हारने वाली भारतीय टीम के सभी सदस्यों की जानकारी
सलामी बल्लेबाज
आकाश चोपड़ा
उस समय भारतीय क्रिकेट में कई शानदार सलामी बल्लेबाज आए। ये बल्लेबाज हर मुश्किल परिस्थिति और दबाव में बल्लेबाजी करने में सक्षम थे। नई बाल को खेलने में ये बल्लेबाज माहिर थे। इन्हीं बल्लेबाजों में से एक थे आकाश चोपड़ा। टीम में जगह बनाने के लिए आकाश चोपड़ा को काफी मेहनत करना पड़ा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जब टेस्ट सीरीज में उनको जगह मिली तो वो कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाए। आकाश चोपड़ा किसी भी मैच में दहाई का आंकड़ा तक नहीं छू सके। शायद इसी वजह से एक मैच में तो युवराज सिंह को ओपनिंग के लिए भेजा गया। आकाश चोपड़ा ने बैंगलोर और नागपुर में खेले गए मैच में 0, 5, 9 और 1 रन बनाए। नागपुर का मैच भारतीय क्रिकेट टीम की तरफ से उनका आखिरी मैच था।
गौतम गंभीर
दिल्ली के बल्लेबाज गौतम गंभीर ने इसी सीरीज में अपना टेस्ट डेब्यू किया था। हालांकि अपने डेब्यू मैच में वो सफल नहीं रहे। मुंबई में खेले गए डेब्यू मैच में गंभीर मात्र 3 और 1 रन ही बना सके थे। लेकिन अगले दौरे पर साउथ अफ्रीका के खिलाफ 96 रनों की पारी खेलकर उन्होंने बता दिया कि उनके अंदर टैलेंट की कोई कमी नहीं है।
वीरेंदर सहवाग
वीरेंदर सहवाग एक विस्फोटक बल्लेबाज के तौर पर टीम में जगह बना चुके थे। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने डेब्यू टेस्ट मैच में ही शतक जड़कर उन्होंने शानदार तरीके से अपने क्रिकेट करियर का आगाज किया। उनकी बल्लेबाजी को देखते हुए कप्तान सौरव गांगुली ने उन्हें ओपनिंग करने के लिए कहा। ये फैसला सहवाग के करियर में मील का पत्थर साबित हुआ।
इसके बाद टेस्ट क्रिकेट में वीरेंदर सहवाग सबसे विस्फोटक बल्लेबाज बन गए। 2004 में जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत का दौरा किया तब सहवाग ने काफी रन बनाए। चेन्नई टेस्ट में सहवाग ने 155 रनों की पारी खेली। मुंबई टेस्ट में पहली बार सहवाग और गंभीर को जोड़ी ओपनिंग करने के लिए उतरी। इसके बाद इस जोड़ी ने कई मैचों में भारतीय टीम के लिए जीत की बुनियाद रखी।
मिडिल ऑर्डर
राहुल द्रविड़
राहुल द्रविड़ उस वक्त मध्यक्रम में दुनिया के बेस्ट बल्लेबाज थे। शायद ये भारत की अब तक की सबसे अच्छी मध्यक्रम की बल्लेबाजी थी। सचिन, गांगुली और लक्ष्मण जैसे दिग्गज इस मध्यक्रम का हिस्सा थे। इसी कड़ी में नंबर 3 पर बल्लेबाजी के लिए आते थे भारत के भरोसेमंद खिलाड़ी राहुल द्रविड़। 2000 की शुरुआत में भारतीय ओपनिंग की समस्या खत्म नहीं हुई थी। भारतीय टीम को कोई स्थापित सलामी बल्लेबाज नहीं मिल पाया था। इसी वजह से कई बार राहुल द्रविड़ को ओपनिंग भी करनी पड़ती थी। वहीं कई बार ऐसा भी होता था कि सलामी बल्लेबाजों के जल्द आउट होने से नंबर 3 पर आने के कारण द्रविड़ सलामी बल्लेबाज वाली पोजिशन में आ जाते थे। इस समय पारी को बिना विकेट खोए आगे बढ़ाना काफी अहम हो जाता था। द्रविड़ इस काम को बखूबी अंजाम देते थे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उस सीरीज में वो ज्यादा सफल नहीं रहे। उस सीरीज में राहुल द्रविड़ 4 टेस्ट मैचों में केवल एक ही अर्धशतक लगा पाए।
सचिन तेंदुलकर
दुनिया के महानतम बल्लेबाजों में से एक सचिन तेंदुलकर उस समय भारतीय टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी थे। 16 साल की उम्र में डेब्यू करने के साथ ही उनके अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर में उस वक्त तक कई उतार-चढ़ाव आ चुके थे। चोटिल होने के कारण सीरीज का पहला 2 मैच सचिन नहीं खेल पाए थे। नागपुर टेस्ट से उन्होंने टीम में वापसी की। उस समय भारतीय टीम 1-0 से सीरीज में पीछे थी। मुंबई टेस्ट में सचिन के अर्धशतक की बदौलत भारतीय टीम सीरीज का एकमात्र मैच जीतने में सफल रही।
सौरव गांगुली
भारतीय क्रिकेट टीम में सौरव गांगुली ने एक नई ऊर्जा का संचार किया। अपनी कप्तानी में उन्होंने टीम में नई जान फूंक दी और भारतीय टीम को जीतना सिखाया। अपनी आक्रामक कप्तानी की वजह से गांगुली काफी मशहूर हो गए। 2004 की उस सीरीज में गांगुली भी केवल 2 ही मैच खेल पाए थे। बैंगलोर टेस्ट की पहली पारी में उन्होंने 45 रन बनाए थे, हालांकि भारतीय टीम वो मैच हार गई थी। इसके बाद उन्होंने मुंबई में खेले गए आखिरी टेस्ट मैच में हिस्सा लिया। वो मैच भारतीय टीम के नाम रहा था।
वीवीएस लक्ष्मण
वीवीएस लक्ष्मण का नाम सुनते ही ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को पसीने आ जाते हैं। 2004 में जब कंगारु टीम ने भारत का दौरा किया तो उनके जेहन में 2001 में खेली गई 281 रनों की वो मैराथन पारी ताजा थी। हालांकि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ करीब 50 का औसत होने के बावजूद वीवीएस लक्ष्मण उस सीरीज में असफल रहे। लेकिन मुंबई में खेले गए आखिरी टेस्ट मैच की दूसरी पारी में 69 रनों की पारी खेलकर लक्ष्मण ने भारतीय टीम को जीत दिला दी।
युवराज सिंह
2000 में युवराज सिंह ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। वनडे क्रिकेट के वो एक विस्फोटक बल्लेबाज थे। इसके बाद उन्हें टेस्ट टीम में भी मौका दिया गया। मध्यक्रम का बल्लेबाज होने के बावजूद युवराज सिंह को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच में ओपनिंग के लिए भेजा गया था। 2004 में ऑस्ट्रेलिया की टीम जब भारत के दौरे पर आई तो उस समय युवराज सिंह इंटरनेशनल क्रिकेट में नए थे। इसलिए उन्हें मात्र 2 टेस्ट मैच में ही शामिल किया गया।
मोहम्मद कैफ
युवराज सिंह के साथ मोहम्मद कैफ उस समय भारतीय टीम के बेस्ट फील्डर थे। इंग्लैंड में नेटवेस्ट ट्रॉफी जिताने के बाद मोहम्मद कैफ और युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के नए सितारे बन गए। इसलिए चयनकर्ताओं ने दोनों खिलाड़ियों को टेस्ट टीम में भी जगह दी। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में मोहम्मद कैफ ने बाकी भारतीय बल्लेबाजों से बेहतर प्रदर्शन किया। नागपुर और चेन्नई टेस्ट में उन्होंने अर्धशतक जड़ा। ऑस्ट्रेलिया सीरीज के बाद कैफ मात्र 6 ही टेस्ट मैच खेल सके।
पार्थिव पटेल
2002 में 16 साल की उम्र में पार्थिव पटेल ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। उस समय भारतीय क्रिकेट टीम में लगभग सभी खिलाड़ी सीनियर थे और उन सबके बीच में युवा पार्थिव पटेल खेलते हुए काफी अच्छे लगते थे। 2004 में जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत का दौरा किया तब पार्थिव एक विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर स्थापित हो चुके थे। हालांकि चौथे टेस्ट मैच में चयनकर्ताओं ने एक और युवा विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक को मौका दिया। कार्तिक का वो पहला टेस्ट मैच था।
दिनेश कार्तिक
दिनेश कार्तिक ने 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी टेस्ट मैच में अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। उन्हें पार्थिव पटेल की जगह टीम में शामिल किया गया था। 2004 से 2007 तक वो भारत के प्रमुख विकेटकीपर बल्लेबाज रहे लेकिन लगातार फ्लॉप प्रदर्शन की वजह से उनकी जगह दूसरे विकेटकीपर को टीम में जगह दी गई। वो विकेटकीपर थे भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। धोनी के आने के बाद दिनेश कार्तिक समेत कोई दूसरा विकेटकीपर भारतीय टीम में नियमित जगह नहीं बना पाया।
गेंदबाज
इरफान पठान
इरफान पठान उस समय अपने करियर के चरम पर थे। पठान काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे वो गेंद को दोनों तरफ से स्विंग कराने में माहिर थे। हालांकि उस सीरीज में पहले 2 टेस्ट मैच में पठान को ज्यादा सफलता नहीं मिली और वो मात्र 2 ही विकेट निकाल सके। इसके बाद अगले 2 मैच में उनकी जगह अजीत अगरकर को टीम में शामिल कर लिया गया। इरफान पठान उस समय भारतीय क्रिकेट के हीरो बन गए जब 2006 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में उन्होंने हैट्रिक लगाई। चोट की वजह से उनका करियर काफी प्रभावित हुआ।
अजीत अगरकर
वनडे क्रिकेट में अजीत अगरकर जितना सफल हुए उतना टेस्ट क्रिकेट में उन्हें सफलता नहीं मिली। 90 के आखिर और 2000 के शुरुआत में वो भारत के मैच विनर खिलाड़ियों में से एक थे। वनडे क्रिकेट में ज्यादा सफल होने के बावजूद वो टेस्ट क्रिकेट में नियमित जगह नहीं बना सके। 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में उन्हें नागपुर टेस्ट में इरफान पठान की जगह टीम में शामिल किया गया। लेकिन वो मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और मात्र एक ही विकेट निकाल सके। ऑस्ट्रेलिया की उस सीरीज के बाद वो आगे मात्र 4 टेस्ट मैच ही भारत की तरफ से खेल सके।
मुरली कार्तिक
शानदार स्पिनर होने के बावजूद मुरली कार्तिक भी कभी भारतीय टीम में नियमित जगह नहीं बना सके। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने लगातार शानदार प्रदर्शन किया। हर बार ऐसा लगता था कि कार्तिक को अब टीम में शामिल कर लिया जाएगा लेकिन हर बार उन्हें टीम में जगह नहीं मिलती थी। इसके सबसे बड़ी वजह थी हरभजन सिंह और अनिल कुंबले की सफल जोड़ी। उस समय इन दोनों स्पिनरों की जोड़ी अपने चरम पर थी जिसकी वजह से मुरली कार्तिक को उतना मौका नहीं मिल पाया। 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उस सीरीज में मुरली कार्तिक को आखिरी 2 टेस्ट मैच के लिए टीम में जगह दी गई थी। दोनों ही मैचों में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। नागपुर टेस्ट में उन्होंने 5 विकेट तो मुंबई टेस्ट में मैच विनिंग 7 विकेट चटकाए। ऐसा लगा कि उनका क्रिकेट करियर लंबा चलेगा लेकिन उस सीरीज के बाद वो मात्र 1 ही टेस्ट मैच में भारतीय टीम का हिस्सा रहे।
जहीर खान
जहीर खान को भारतीय गेंदबाजी का सचिन तेंदुलकर माना जाता है। जवागल श्रीनाथ और वेंकटेश प्रसाद के बाद जहीर खान ने अकेले भारतीय तेज गेंदबाजी की अगुवाई की। इस दौरान उन्होंने कई सारे गेंदबाजों के साथ गेंदबाजी की। हालांकि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उस सीरीज में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली। 4 टेस्ट मैचों में वो मात्र 10 विकेट ही निकाल सके। नागपुर टेस्ट में उन्होंने 6 विकेट चटकाए फिर भी भारतीय टीम वो मैच बुरी तरह हार गई।
हरभजन सिंह
2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में बल्लेबाजी में जहां वीवीएस लक्ष्मण ने कंगारु टीम को परेशान किया था तो गेंदबाजी में हरभजन सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई टीम की नाक में दम कर दिया था। 2000 के शुरुआत में उन्होंने कई मैच अपने दम पर जिताए। 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उस सीरीज में हरभजन सिंह खासे सफल रहे। 4 टेस्ट मैचों में उन्होंने 22 विकेट चटकाए। बैंगलोर टेस्ट में उन्होंने दोनों ही पारियों में 5 विकेट निकाले फिर भी भारतीय टीम 217 रनों से मैच हार गई।
अनिल कुंबले
भारतीय क्रिकेट में हरभजन सिंह के साथ अनिल कुंबले की जोड़ी काफी सफल रही। सालों तक इस जोड़ी ने भारतीय टीम को कई मैच जिताए। 2004 की उस सीरीज में कुंबले ने हरभजन सिंह से बेहतर गेंदबाजी की और कुल मिलाकर 27 विकेट चटकाए। चेन्नई टेस्ट में कुंबले ने 13 विकेट चटकाए फिर भी भारतीय टीम मैच जीत नहीं सकी और मैच ड्रॉ हो गया।