भारतीय टीम के वह खिलाड़ी अब कहाँ हैं, जब विराट कोहली ने अपने करियर की शुरुआत की थी

विराट कोहली 2008 में 19 साल की उम्र में अपने पहले अंतराष्ट्रीय वनडे मैच में डंबुला के मैदान पर श्रीलंका के खिलाफ उतरे थे। यह उनके बल्लेबाज़ी करियर की शुरुआत थी और आज वह क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ हैं। तो आइये उस टीम के खिलाड़ियों पर एक नज़र डालें, जब कोहली ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी: गौतम गंभीर 2007 के अंत में भारत के शीर्ष क्रम पर सौरव गांगुली की गैरमौजूदगी में टीम इंडिया को किसी ऐसे सलामी बल्लेबाज़ की ज़रूरत थी जो उनका स्थान ले सके और टीम को अच्छी शुरुआत दिला सके। उस समय टीम ने 26 वर्षीय दिल्ली के बाएं हाथ के बल्लेबाज़ गौतम गंभीर पर भरोसा दिखाया। लेकिन विश्वकप 2011 के बाद, फॉर्म और गिरती फिटनेस की वजह से उन्हें टीम इंडिया से बाहर होना पड़ा। सुरेश रैना उस समय सुरेश रैना भारतीय नियमित हिस्सा थे और नंबर 3 पर बल्लेबाजी करते थे। आईपीएल में उन्होंने चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेला और अभी तक वह चेन्नई सुपर किंग्स का नियमित हिस्सा हैं। उन्होंने चेन्नई की तरफ से खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया है इस सीज़न भी रैना ने अपनी टीम की खिताबी जीत में अहम भूमिका निभाई थी। युवराज सिंह विराट कोहली के पहले वनडे मैच में युवराज सिंह ने अजंता मेंडिस द्वारा बोल्ड किये जाने से पहले 23 रन बनाए थे। यह बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के क्रिकेट करियर के नए चरण की शुरुआत थी, जिसके बाद उन्होंने कई यादगार पारियां खेलीं और 2011 विश्व कप में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। इसके बाद विश्व कप 2011 के बाद युवराज को कैंसर से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका जाना पड़ा और वह लगभग दो साल तक क्रिकेट से दूर रहे। हालाँकि, वह टीम इंडिया से अंदर-बाहर होते रहे हैं और 2017 में उन्होंने आखिरी बार वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था। रोहित शर्मा 2007 में रोहित शर्मा ने भी आपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी। कोहली के पहले वनडे मैच में रोहित शर्मा ने मध्य क्रम के बल्लेबाज़ के तौर पर खेलते हुए 19 रन बनाए थे। हालांकि, उसके बाद वह पांच साल तक मध्यक्रम में खेलते रहे। वह वर्तमान में सीमित ओवरों की भारतीय टीम का नियमित हिस्सा हैं लेकिन खेल के लंबे प्रारूप में फ़िलहाल टीम से बाहर चल रहे हैं। एमएस धोनी एमएस धोनी का सीमित ओवरों के कप्तान के रूप में वह पहला वर्ष था। भारतीय टीम के कप्तान के रूप में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनी पहली श्रृंखला जीती थी। इस मैच में, उन्होंने मेंडी द्वारा आउट किये जाने से पहले केवल छह रन बनाए थे, लेकिन अगले दशक में, वह निर्विवाद रूप से भारत के सबसे महान सीमित ओवरों के कप्तान बन गए और उन्होंने टीम इंडिया के लिए कई मैच जिताऊ पारियां खेलीं। 2014 में टेस्ट टीम से उन्होंने संन्यास लिया लेकिन उसके बाद वनडे और टी 20 में खेलना जारी रखा। हरभजन सिंह उस समय भारत के प्रमुख ऑफ स्पिनर, हरभजन सिंह ने बल्ले और गेंद दोनों के साथ निराशाजनक प्रदर्शन किया था, बल्लेबाज़ी करते हुए उन्होंने सिर्फ 12 रन बनाये और बाद में चार ओवरों की गेंदबाज़ी करते हुए विकेट रहित रहे। अगले एक दशक में वह भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर बने। 2011 विश्व कप जीतने के बाद रविचंद्रन अश्विन को उन पर तरजीह दी गई और फिलहाल वह काफी समय से टीम इंडिया से बाहर चल रहे हैं। इरफान पठान सीम-बॉलिंग ऑलराउंडर इरफान पठान ने मुथैया मुरलीधरन द्वारा आउट किये जाने से पहले 7 रन बनाए थे और गेंदबाज़ी में भी वह विकेट रहित रहे। पठान को टीम प्रबंधन द्वारा 2013 तक टीम में रखा गया, उसके बाद से वह पिछले पांच सालों से टीम इंडिया में जगह नहीं बना पाए हैं। ज़हीर खान चोटों के बाद उस मैच में वापसी कर रहे ज़हीर खान ने 7 ओवर की गेंदबाज़ी की थी लेकिन उन्हें कोई विकेट नहीं मिल पाया। हालाँकि उसके बाद उन्होंने शानदार वापसी की और विश्वकप 2011 भारत की खिताबी जीत के नायक बने। उन्होंने 2015 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लिया था। मुनाफ पटेल टीम के तीसरे सीमर मुनाफ उस समय भारतीय टीम के बेहद अहम खिलाड़ी थे। अगले कुछ वर्षों के लिए वह भारतीय गेंदबाजी आक्रमण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे और भारत की 2011 में विश्वकप जीत में उन्होंने बेहद अहम भूमिका निभाई थी। उसके बाद वह 2013 तक खेले और उसके बाद से टीम इंडिया में वापसी नहीं कर पाए हैं। प्रज्ञान ओझा प्रज्ञान ओझा को भारत का सबसे उम्दा लेफ्ट आर्म ऑफ-स्पिनर माना जाता था। 24 टेस्ट मैचों में 113 विकेट होने के बावजूद भी, ओझा को उतना श्रेय नहीं मिला, जितने के वह हकदार थे। ओझा सीमित ओवर प्रारूप से ज़्यादा टेस्ट प्रारूप में भारतीय टीम का नियमित हिस्सा रहे। दुर्भाग्यवश, 2013 के बाद से इस 31 वर्षीय खिलाड़ी को भारतीय टीम से खेलने का मौका नहीं मिला है। सचिन तेंदुलकर का आखिरी टेस्ट ही ओझा का भी आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच था। लेखक: शंकर नारायण अनुवादक: आशीष कुमार