आपको याद होगा वो दौर जब भारतीय महिला टीम के लिए क्रिकेट प्रेमियों के दिल में सहानुभूति उमरी थी। तब रिकॉर्ड तोड़ लोगों ने टीवी पर उस टूर्नामेंट का फाइनल मैच देखा था। उम्मीद यह थी कि बदलाव की बयार चली है तो कुछ अच्छा और बड़ा होगा, लेकिन सब फुस्स हो गया। हद तो तब हो गई जब बीसीसीआई ने आधिकारिक ऐप पर भी कुआलालंपुर में चल रहे महिला एशिया कप टी-20 का लाइव स्कोर दिखाने की जहमत नहीं उठाई।
थोड़े बहुत बचे महिला क्रिकेट के डाई-हार्ट प्रशंसकों ने ट्विटर से लेकर कई अन्य सोशल मीडिया पर सवाल उठाए लेकिन अंजाम ढाक के तीन पात ही रहा। अब भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री की तरह महिला क्रिकेट की ओर से भावनात्मक अपील कौन करता है इसका इंतजार है।
दरअसल, फुटबॉल और हॉकी को लेकर भारतीय समाज ने जो बेरूखी दिखाई है, अक्सर उसका इल्जाम क्रिकेट के सिर मढ़ दिया जाता है। लेकिन सवाल है कि जब क्रिकेट को भी दर्शक न मिलें तो फिर क्या? हालांकि दोषी सिर्फ दर्शकों को नहीं कहा जा सकता क्योंकि भारतीय क्रिकेट की संचालन संस्था ने ही महिला क्रिकेट के प्रति दोहरा रवैया अपना रखा है। एशिया कप जैसे बड़े टूर्नामेंट को अपने पोर्टल पर जगह नहीं देकर उसने यह जता दिया कि महिला क्रिकेटर पैसा नहीं बटोर सकतीं।
बीसीसीआई के आधिकारिक ऐप के रिजल्ट वाले कॉलम में भी महिला टीम के मैचों की कोई जानकारी नहीं है। हां न्यूज वाले कॉलम में पुरानी खबर जरूर दिख जाएगी।
अभी कुछ समय पहले ही आईपीएल की तर्ज पर विमेंस चैलेंज कराया गया था, तब उम्मीद की एक किरण जगी लेकिन एशिया कप में कवरेज को लेकर बीसीसीआई की बेरूखी ने सब पर पानी फेर दिया।
ऐसी खबरें भी आ रही थीं कि इस टूर्नामेंट ने अच्छी लोकप्रियता हासिल की। सुपरनोवाल व ट्रैलब्लेजर्स के बीच मुकाबला महिला क्रिकेटरों के लिए नए रास्ते बनाएगी। कई देशों की 26 खिलाड़ियों का इस टूर्नामेंट में भाग लेना ही अपने आप में सफलता की गवाही देता है।
खैर, भारतीय महिला टीम पहले भी बीसीसीआई के दोहरे रवैये का शिकार रही है लेकिन महिला विश्व कप में शानदार प्रदर्शन ने लोगों को सोचने पर मजबूर किया। माहौल भी बदला और आलम यह था कि फाइनल में हार के बावजूद देशवासियों ने दिल खोल कर उनका स्वागत किया। अब फिर से उस पल का इंतजार है जब, महिला टीम को वही तवज्जों फिर से मिलने लगे।
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