युवराज सिंह 2000 में युवराज सिंह ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। वनडे क्रिकेट के वो एक विस्फोटक बल्लेबाज थे। इसके बाद उन्हें टेस्ट टीम में भी मौका दिया गया। मध्यक्रम का बल्लेबाज होने के बावजूद युवराज सिंह को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच में ओपनिंग के लिए भेजा गया था। 2004 में ऑस्ट्रेलिया की टीम जब भारत के दौरे पर आई तो उस समय युवराज सिंह इंटरनेशनल क्रिकेट में नए थे। इसलिए उन्हें मात्र 2 टेस्ट मैच में ही शामिल किया गया। 40 टेस्ट मैच खेलने के बावजूद भी उन्हें टेस्ट क्रिकेट में वो सफलता नहीं मिली जैसा कि उन्हें दूसरे फॉर्मेट में मिली। मोहम्मद कैफ युवराज सिंह के साथ मोहम्मद कैफ उस समय भारतीय टीम के बेस्ट फील्डर थे। इंग्लैंड में नेटवस्ट ट्रॉफी जिताने के बाद मोहम्मद कैफ और युवराज सिंह भारतीय क्रिकेट के नए सितारे बन गए। इसलिए चयनकर्ताओं ने दोनों खिलाड़ियों को टेस्ट टीम में भी जगह दी। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज में मोहम्मद कैफ ने बाकी भारतीय बल्लेबाजों से बेहतर प्रदर्शन किया। नागपुर और चेन्नई टेस्ट में उन्होंने अर्धशतक जड़ा। ऑस्ट्रेलिया सीरीज के बाद कैफ मात्र 6 ही टेस्ट मैच खेल सके। पार्थिव पटेल 2002 में 16 साल की उम्र में पार्थिव पटेल ने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। उस समय भारतीय क्रिकेट टीम में लगभग सभी खिलाड़ी सीनियर थे और उन सबके बीच में युवा पार्थिव पटेल खेलते हुए काफी अच्छे लगते थे। 2004 में जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत का दौरा किया तब पार्थिव एक विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर स्थापित हो चुके थे। हालांकि चौथे टेस्ट मैच में चयनकर्ताओं ने एक और युवा विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक को मौका दिया। कार्तिक का वो पहला टेस्ट मैच था। दिनेश कार्तिक दिनेश कार्तिक से काफी उम्मीद जगी। 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी टेस्ट मैच में उन्होंने अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया। उन्हें पार्थिव पटेल की जगह टीम में शामिल किया गया था। 2004 से 2007 तक वो भारत के प्रमुख विकेटकीपर बल्लेबाज रहे लेकिन लगातार फ्लॉप प्रदर्शन की वजह से उनकी जगह दूसरे विकेटकीपर को टीम में जगह दी गई। वो विकेटकीपर थे भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी। धोनी के आने के बाद दिनेश कार्तिक समेत कोई दूसरा विकेटकीपर भारतीय टीम में नियमित जगह नहीं बना पाया।