धोनी ने नयी फ्रैंचाइज़ी राइजिंग पुणे सुपरजायंट के लॉन्च होने के समय कहा था, “ मैं पूरी तरह से सीएसके को भूल गया हूँ तो झूठ बात होगी।” साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि किसी अन्य टीम की तरफ से खेलना बहुत ही अटपटा सा लग रहा है। धोनी की कही बाते कई कोणों से सही रही हैं। जिस तरह धोनी की टीम पुणे ने संघर्ष किया, उसी तरह इस सीजन में धोनी भी संघर्ष करते हुए नजर आये। धोनी जिन्हें ठन्डे दिमाग का माना जाता है। वह मैदान पर गुस्से में भी नजर आये। हार के बाद धोनी लगातार अपने खिलाड़ियों पर ठीकरा फोड़ते रहे। इस पदार्पण करने वाली राइजिंग पुणे लगातार संघर्ष करती नजर आई और अंकतालिका में 7वें क्रम पर रही। बहुत से लोगों का मानना था कि पुणे सीएसके की हमशक्ल है। इस बात को तब और बल मिला जब टीम ने पहले मैच में मुंबई इंडियंस को हरा दिया। लेकिन उसके बाद टीम के प्रदर्शन में निरंतर गिरावट शुरू हो गयी। धोनी के पास कोच स्टीफन फ्लेमिंग, आर आश्विन और फाफ डूप्लेसिस जो चेन्नई में भी उनके साथ रहे थे। लेकिन ज्यादातर खिलाड़ी जैसे ब्रेंडम मैकुलम, ड्वेन ब्रावो, ड्वेन स्मिथ, रबिन्द्र जडेजा और सुरेश रैना गुजरात लायंस में थे। इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि धोनी को अंत तक एक अच्छी कॉम्बिनेशन वाली टीम ही नहीं मिल पायी। पुणे के लिए ये दुस्वप्न जैसा सीजन रहा है। पहले 10 दिन के अंदर टीम ने केविन पीटरसन, फाफ डुप्लेसी, मिशेल मार्श और स्टीवन स्मिथ को चोट की वजह से गवां दिया था। इन खिलाड़ियों के चोटिल हो जाने से पुणे उबर नहीं पायी। जिसका असर अंकतालिका पर साफ़ दिखाई पड़ा। एमएस धोनी के पास इन खिलाड़ियों की भरपाई करने वाला उपयुक्त विकल्प ही नहीं था। धोनी ऐसे कप्तान हैं जो हर मैच में टीम नहीं बदलना पसंद करते हैं, लेकिन इस सीजन में वह लगातार टीम में बदलाव करते रहे। ये सच है कि चोट ने टीम को बड़ा झटका दिया लेकिन अजिंक्य रहाणे को छोड़कर बाकी किसी खिलाड़ी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। पुणे ने जब उस्मान ख्वाजा और जार्ज बेली को बुलाया तबतक जहाज डूब चुका था। धोनी जब भी इससे पहले संकट में होते थे वह गेंद आश्विन की तरफ उछाल दिया करते थे। लेकिन इस सीजन में उन्होंने आश्विन से पूरा कोटा तक नहीं डलवाया। वास्तव में आश्विन ने इस सीजन में 14 मैचों में मिलाकर सिर्फ 8 फेंके हैं। साथ ही उन्होंने इरफ़ान पठान को मौका नहीं दिया जिसके लिए उन्हें काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी। यदि धोनी की कप्तानी पर गहराई से नजर डाली जाये तो उन्होंने खुद इस बार बल्ले से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। पंजाब के खिलाफ आखिरी ओवर में 23 रन बनाने के सिवा धोनी की कोई भी पारी यादगार नहीं रही। धोनी ने केकेआर के खिलाफ 23 गेंदों में मात्र 8 रन बनाये थे। उन्होंने 14 मैचों में मात्र 284 रन बनाये। जिसमें उनका उच्च स्कोर नाबाद 64 रहा। इसकी वजह से पुणे और कमजोर साबित हुई। जिसमें धोनी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए। धोनी के लिए एक अच्छी चीज ये रही कि उन्हें एडम जम्पा के तौर पर एक बेहतरीन स्पिनर मिला जिसके बाद धोनी थोड़े अच्छे कप्तान जरूर लगे। इस ऑस्ट्रेलियाई लेगी ने 5 मैचों में 12 विकेट लिए थे। बल्लेबाज़ी में धोनी असफल रहे तो बतौर विकेटकीपर वह कमाल के रहे। जिस तरह वह गेंद को रोकने में पैर का इस्तेमाल करते दिखाई दिए। वह टूर्नामेंट की उम्दा तस्वीर रही। अगर चीजें इस बार पुणे के लिए खराब रही तो इसमें बारिश और खराब मौसम ने भी उन्हें परेशान किया। धोनी ने इस पर अपनी राय भी रखी थी उन्होंने मैच हारने का एक कारण बारिश को भी बताया था। ऐसा उन्होंने केकेआर से कोलकाता में हारने के बाद कहा था। ये सत्य है एक अच्छे कप्तान के पीछे एक अच्छी टीम होती है। लेकिन धोनी को माना जाता है कि वह आखिरी क्षण तक हार नहीं मानते हैं और उनसे ज्यादा आशा भी रखी जाती है। कुल मिलाकर पुणे के लिए ये डेब्यू भुला देने वाला है। सबसे बड़ी और निराश करने वाली बात ये है कि टीम लगातार हारती रही। ऐसे में धोनी को अगले सीजन में सीएसके से बाहर निकलकर अगले सीजन में अच्छा कम करना होगा। लेखक-मनीष, अनुवादक-मनोज तिवारी