इंडियन प्रीमियर लीग के कुछ मैचों में अंपायरों के गलत फैसलों ने क्रिकेट पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। पहले मुंबई इंडियंस और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के मैच में लसिथ मलिंगा ने जो आखिरी नो बॉल फेंकी थी, वो अंपायर की नजर से बच गई थी। इसके अलावा, दिल्ली कैपिटल्स के बल्लेबाज कॉलिन इनग्राम का एलबीडब्ल्यू होना पहले चर्चा का विषय बना और फिर उस पर विवाद खड़ा हो गया। इन्हीं वाकयों ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को चिंता में डाल दिया है। साथ ही इन मामलों ने अब भारतीय क्रिकेट में अंपायरों की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
अब एक अंपायर ने पत्र लिखकर बीसीसीआई के अधिकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) से देश में अंपायरिंग की परीक्षा फिर से कराने पर विचार करने को कहा है। बीसीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, यह वास्तव में चिंताजनक विषय है, जिस पर बोर्ड के अधिकारियों को जल्दी से जल्दी विचार करना चाहिए। परीक्षा को अत्यधिक व्यावसायिकता के साथ त्रुटिरहित आयोजित कराने की जरूरत है। पत्र भेजने वाले ने जिन बिंदुओं को उठाया है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अंपायरों के चयन के विषय में यह एक गंभीर विषय है, जिसे सभी उठा रहे हैं।
दावा किया जा रहा है कि अंपायरिंग की परीक्षा के कागज सेट करने वाला अकादमी चला रहा है। अगर वो सच है तो हम अंतरराष्ट्रीय अंपायर बनने वालों की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस मामले में प्रतिभावान लोग पिछड़ रहे हैं क्योंकि कुछ लोगों को पहले से मालूम है कि पेपर में क्या आने वाला है। बीसीसीआई के अधिकारी ने कहा कि अंपायरों की समिति की कमी ने इस मुद्दे को जन्म दिया है। अंपायरों से संबंधित फैसलों के बारे में कोई पारदर्शिता नहीं क्योंकि इस बाबत किसी को पूरी तरह से कोई जानकारी नहीं है। शीर्ष प्रबंधन में किसी भी अधिकारी को क्रिकेट प्रशासन में लगभग दो साल से ज्यादा का अनुभव नहीं है। इसी वजह से बीसीसीआई संगठन पिछड़ रहा है। यह पहली बार नहीं है जब भारत में अंपायरिंग की परीक्षा पर सवाल उठाए गए हैं। इससे पहले 2017 और 2018 में भी अंपायरिंग की परीक्षा के दौरान आयोजन पर सवाल उठाए गए थे।
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