भारतीय टीम को लेकर जब कभी भी किसी ऐसे क्वालिटी ऑल राउंडर की बात होती है, जो गेंदबाज के तौर पर स्ट्राइक बॉलर तो हो ही, लेकिन साथ ही लोअर मिडिल ऑर्डर में अच्छी बल्लेबाजी भी कर सके, तो हाल-फिलहाल में हार्दिक पांड्या के अलावा तो इस रोल में कोई भी खिलाड़ी पूरी तरह से खरा उतरता नज़र नहीं आता। हाँ अतीत के कई नाम जरूर याद आते हैं। इस लिस्ट में भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंडर कपिल देव के बाद जो नाम सबसे पहले याद आता है वो है इरफान पठान। भारत के लिए खेलने वाले वो आखिरी क्वालिटी ऑलराउंडर थे, जो गेंदबाजी में नई गेंद भी सम्भालते थे और अपने बल्ले से भी आग उगलते थे। हालांकि उनके बाद अश्विन और जडेजा ने भी ऑलराउंडर के तौर पर अपनी पहचान बनाई है, लेकिन ये दोनों ही स्पिन गेंदबाज हैं। इरफान पठान के पदार्पण से पूर्व 80 और 90 के दशक में तो टीम इंडिया में कपिल देव के अलावा भी रोजर बिन्नी, मदनलाल, मोहिंदर अमरनाथ, संदीप पाटिल, मनोज प्रभाकर आदि कई ऑलराउंडर हुआ करते थे, जो मध्यम तेज गति से गेंदबाजी के अलावा बल्लेबाजी में भी सक्षम थे। लेकिन उनके बाद इरफान पठान के अलावा कोई भी ऑलराउंडर खिलाडी उभर कर सामने नहीं आया। वर्तमान समय में भी युवा खिलाड़ी हार्दिक पांड्या से इस रोल में फिट होने की अपेक्षा की जा रही है, लेकिन वो गेंदबाज के रूप में उतने प्रभावशाली नहीं है जितने बल्लेबाज के रूप में हैं। इसके अलावा एक अन्य ऑलराउंडर भुवनेश्वर कुमार की बात करें तो स्ट्राइक बॉलर के तौर पर तो वो इरफान पठान की कमी महसूस नहीं होने दे रहे हैं, लेकिन उनकी बल्लेबाजी में निरन्तरता का अभाव है। यही कारण है कि विशेषज्ञ इरफान पठान को इतने समय बाद भी भूल नहीं पाए हैं। बेहद गरीब परिवार से सम्बंध रखने वाले इरफान पठान ने अपनी प्रतिभा के बल पर एक अलग मुकाम हासिल किया। उनमें भविष्य की अपार संभावनाएं देखते हुए ICC ने उन्हें 2004 में इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर चुना। इरफान पठान की प्रतिभा का परिचय छोटी उम्र में ही हो गया था। जब बड़ौदा की अंडर 14 टीम के लिए उनका चयन किया गया। पूर्व भारतीय कप्तान दत्ता गायकवाड़ के मार्गदर्शन में उन्हें और निखरने का अवसर मिला। पहली बार इरफान पठान सुर्खियों में तब आए जब अंडर 19 एशिया कप में बांग्लादेश के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने 16 रन देकर 9 विकेट हासिल किए और भारत ने बांग्लादेश की पारी मात्र 34 रनों पर समेट दी। मात्र 19 वर्ष की उम्र में ही इरफान पठान को भारत के लिए खेलने का अवसर मिल गया। वर्ष 2003-04 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर उन्होंने अपना टेस्ट डेब्यू किया। इरफान पठान कितने प्रतिभाशाली हैं ये हकीकत उनके आंकड़ों से स्पष्ट हो जाती है। अपने टेस्ट करियर में उन्होंने अब तक 29 टेस्ट मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने बल्लेबाजी में 31.89 की औसत से 1105 रन बनाए हैं। उन्होंने 1 शतक और 9 अर्धशतक भी लगाए हैं। दूसरी ओर गेंदबाजी में भी 32.26 की औसत से 100 विकेट भी हासिल किये हैं। इसमें 7 बार एक इनिंग में 5 विकेट लेने का कारनामा और 2 बार मैच में 10 विकेट लेने का कारनामा भी शामिल है। अपने वनडे करियर में उन्होंने अब तक 120 मैच खेले हैं। इनमें उन्होंने 23.39 की औसत से 5 अर्धशतकों सहित 1544 रन बनाए हैं। वहीं गेंदबाजी में भी 29.72 के औसत से 173 विकेट हासिल किये हैं। उन्हें दो बार पारी में 5 विकेट लेने में भी सफलता मिली है। टी-20 मैच खेलने के उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले हैं। उन्होंने अब तक 24 टी-20 मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 172 रन 24.57 की औसत से बनाए हैं। वहीं 22.07 की औसत से 28 विकेट लिए हैं। इरफान जैसे अपार प्रतिभाशाली खिलाड़ी रोज पैदा नहीं होते, इसलिए उन जैसे खिलाड़ियों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है ताकि ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं खोए नहीं। किसी भी प्रतिभाशाली खिलाड़ी पर अपेक्षाओं का ज्यादा बोझ नहीं लादना चाहिए अन्यथा दबाब में वो खिलाड़ी बिखर सकता है। क्योंकि किसी खिलाडी पर अपेक्षाओं का अतिरिक्त बोझ डालने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ये हमें इरफ़ान पठान के रूप में देखने को मिला है। हमने देखा है कि कैसे इरफ़ान पठान जैसी विलक्षण प्रतिभा अत्यधिक अपेक्षाओं के बोझ तले दब के रह गई। उच्च क्रम में अच्छी बल्लेबाजी के दबाब ने उनकी गेंदबाजी पर बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव डाला। बल्लेबाजी में अपना प्रदर्शन सुधारने में तो इरफ़ान जरूर सफल रहे, लेकिन गेंदबाजी में जो इरफ़ान एक समय 'स्विंग का किंग' नाम से जाने जाते थे, उसके बाद उनकी गेंदों से स्विंग एकदम गायब हो गई, और ऐसी गायब हुई की उसकी वजह से एक समय टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे इरफ़ान पठान स्वयं भी टीम से गायब हो गए, और लम्बे समय से टीम में उनके अते-पते नहीं हैं। परिवार और दोस्तों द्वारा प्यार से गुड्डू नाम से बुलाए जाने वाले इरफान पठान के लिए वर्ष 2006 तक का समय स्वर्णिम काल था। लेकिन इसके बाद तो जैसे उन्हें किसी की नज़र ही लग गईं और उन्हें टीम से बाहर होना पड़ा। वर्ष 2011-12 में उनके अपने रंग में वापस आने की आस जगी और उस साल वो रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा विकेट लेने में सफल रहे, जिससे उन्हें 2012 में श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे और टी-20 सीरीज के लिए टीम इंडिया में वापसी का अवसर भी मिला, लेकिन वो इस अवसर का लाभ नहीं उठा सके और फिर से टीम से बाहर हो गए। पिछले काफी समय से टीम से बाहर चल रहे इरफान पठान का बुरा दौर अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि उनका बुरा दौर बदस्तूर अभी भी जारी है। कई लोगों ने तो उन्हें चूका हुआ तीर मान कर उन्हें इतिहास समझना शुरू कर दिया है। इसकी वजह उनके खराब वक़्त का निरन्तर जारी रहना है। पिछले कुछ समय से तो उनका इतना खराब दौर चल रहा है कि वो रणजी ट्रॉफी और IPL जैसी घरेलू प्रतियोगिताओं में भी अपनी टीम के प्लेइंग इलेवन का नियमित रूप से हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं। इसी कारण टीम इंडिया में उनकी वापसी की राह आसान नज़र नहीं आ रही है। लेकिन ऐसे समय में उन्हें धैर्य नहीं खोना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वो इन हालातों से हार न मानें और एकाग्रचित्त होकर सिर्फ अपने खेल पर ही ध्यान दें। उन्हें समझना होगा कि वक़्त बदलते देर नहीं लगती। जब किसी का खराब वक़्त आ सकता है तो उसका अच्छा वक्त भी आ सकता है। इरफान पठान में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, ये बात तो हर कोई मानता है। अगर उनमें कोई कमी है तो वो है आत्मविश्वास की। लिहाज़ा इरफान को खुद के हुनर पर भरोसा करते हुए अपनी पुरानी खोई हुई लय प्राप्त करनी है। अगर वो ऐसा करने में सफल रहे तो हमें एक बार फिर वो पुराना विकेट टेकिंग इरफान पठान देखने को मिल सकता है। उन्हें दुष्यंत कुमार का एक शेर याद रखना चाहिए कि- "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों" उनके फैन्स की भी यही इच्छा है कि वो एक बार फिर टीम में वापसी करें और पहले ही की तरह अपने प्रदर्शन से टीम की जीतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं क्योंकि उनके अन्दर ऐसा करने की क्षमता भी है। यदि ऐसा नहीं हो सका तो उनका नाम भी एल शिवराम कृष्णन, सदानन्द विश्वनाथ, मोहिंदर अमरनाथ, संजय मांजरेकर, विनोद कांबली के साथ उस लिस्ट में शामिल हो जाएगा जो अपनी अपार प्रतिभा के बावजूद उसे प्रदर्शन में तब्दील नहीं कर सके।