धोनी और युवराज के लिए मुश्किल है 2019 वर्ल्डकप का टिकट पाना !

Indian cricketer Yuvraj Singh (R) and captain Mahendra Singh Dhoni celebrate after beating Sri Lanka during the ICC Cricket World Cup 2011 final match at The Wankhede Stadium in Mumbai on April 2, 2011.  India defeated Sri Lanka by six wickets to win the 2011 World Cup.       AFP PHOTO/MANAN VATSYAYANA (Photo credit should read MANAN VATSYAYANA/AFP/Getty Images)

वक़्त कभी एक सा नहीं रहता, रात के अंधियारे के बाद सुनहरा उजाला आता है, तो फिर शाम के बाद काली रात दोबारा आ जाती है। ज़िंदगी हो या फिर कोई खेल प्रकृति का ये नियम तो चलता ही रहता है। भारतीय क्रिकेट टीम के दो कोहीनूर आज इसी दौर से गुज़र रहे हैं, एक हैं क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तानों में शुमार महेंद्र सिंह धोनी जिन्होंने भारत को दो वर्ल्डकप (टी20 वर्ल्डकप 2007, वनडे वर्ल्डकप 2011) और एक आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी दिलाई। तो दूसरे हैं 2007 टी20 वर्ल्डकप में 6 गेंदो पर 6 छक्का लगाने वाले और 2011 वर्ल्डकप के प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट सिक्सर किंग युवराज सिंह। दोनों ही ने भारतीय क्रिकेट टीम को कई सुनहरी सुबह दिखाईं हैं लेकिन वे आज एक ऐसी शाम से गुज़र रहे हैं जिसके बाद काली रात आएगी या फिर चांद की चमक में उनका करियर परवाज़ होगा इसपर काले बादल मंडरा रहे हैं। भारत को अकेले दम पर अनगिनत जीत दिलाने वाले धोनी और युवराज दोनों के ही करियर पर आज सवालिया निशान लग चुका है। और यही है वक़्त का कांटा जो कभी भी किसी के साथ एक सा नहीं रहता। विकेट के पीछे तो गलव्स के साथ धोनी आज भी पलक झपकते ही अपने सुपर रिफ़्लेक्सेज़ से टीम इंडिया के फ़ैन्स का मूड सुपर बना देते हैं। लेकिन कभी अपने हैलिकॉप्टर और ऐग्रिकल्चर शॉट से फ़ैन्स के दिल में सीधे लैंड करने वाले माही का मैजिकल टच अब कम होता जा रहा है। हालांकि कप्तानी छोड़ने के बाद एक बल्लेबाज़ के तौर पर खेलते हुए धोनी ने इंग्लैंड के ख़िलाफ़ शतक भी लगाया था जिसमें युवराज ने भी शतकीय पारी खेली थी और जीत भारत की झोली में दिलाई थी। फिर चैंपियंस ट्रॉफ़ी और वेस्टइंडीज़ दौरे पर तीसरे वनडे में भी धोनी ने 79 गेंदो में 78 रन की पारी खेलते हुए मैन ऑफ़ द मैच का ख़िताब भी जीता था। इस पारी के बाद तो ऐसा लगा था मानो माही में अभी काफ़ी क्रिकेट बची है और 2019 वर्ल्डकप की टीम में तो उनका चुना जाना तय ही है। धोनी के आलोचकों के मुंह पर भी इस पारी ने ताला लगा दिया था, लेकिन वक़्त कब बदलता है इसका उदाहरण इससे बेहतर शायद ही कोई हो। दो दिन बाद चौथे वनडे में भी 190 रनों के छोटे से स्कोर का पीछा करते हुए भारतीय टीम दबाव में थी और धोनी क्रीज़ पर थे, लग रहा था कि लगातार दूसरी बार टीम इंडिया को जीत दिलाते हुए माही सीरीज़ पर भी कब्ज़ा कराएंगे और एक बार फिर मैन ऑफ़ द मैच का ख़िताब अपने नाम करेंगे। लेकिन क़िस्मत को कुछ और मंज़ूर था, माही ने अर्धशतक तो लगाया लेकिन भारतीय क्रिकेट इतिहास का दूसरा सबसे धीमा और अपने करियर का सबसे धीमा। धोनी ने 114 गेंदो पर सिर्फ़ 54 रन बनाए नतीजा ये हुआ कि 190 रनों के मामूली से लक्ष्य का दबाव भारत पर आ गया और धोनी के आउट होते ही जीता हुआ मैच कोहली एंड कंपनी के हाथ से निकल गया। दो दिन पहले जो ‘’धोनी धोनी’’ कर रहे थे, आज चुप थे और जिन आलोचकों के मुंह पर माही ने ताला लगा दिया था वह फिर ‘’धोनी-धोनी” करने लगे। धोनी ख़ुद भी इस हार से बेहद दुखी दिखे और हमेशा अपनी भावनाओं को बाहर न लाने वाले सुपरकूल धोनी को इसबार आंसूओं को अपनी आंखों के अंदर रखने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी। धोनी के लिए अब टीम में जगह बनाए रखना और 2019 वर्ल्डकप मे खेलना बेहद चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है, धोनी की जगह हासिल करने के लिए कई दावेदार मौजूद हैं जिनमें युवा ऋषभ पंत, अनुभवी और अनलकि दिनेश कार्तिक शामिल हैं। वर्ल्डकप में अभी 2 साल है यानी इन 2 सालों में एक भी ख़राब सीरीज़ धोनी के करियर पर फ़ुल स्टॉप भी लगा सकती है। ज़िंदगी के 36 बसंत देखने वाले धोनी के आड़े उम्र भी आ रही है, शायद यही वजह है कि ये दौर और वक़्त उनके करियर में सूखा भी ला सकता है। देखना है कि अनहोनी को होनी और होनी को अनहोनी करने वाले धोनी वर्ल्डकप 2019 की टिकट हासिल कर क्या एक और चमत्कार करेंगे ? ठीक धोनी की ही तरह वक़्त की मार सिक्सर किंग युवराज सिंह पर भी पड़ी है, कभी अपने बल्ले से गेंदबाज़ों के होश उड़ाने वाले युवराज ने कैंसर की जंग में तो छक्के छुड़ाते हुए ज़िंदगी के साथ साथ क्रिकेट के मैदान में भी नई वापसी की लेकिन अब लग रहा है कि टेस्ट की तरह उनका सीमित ओवर करियर भी ढलान पर है। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 2016 में घरेलू वनडे सीरीज़ में युवराज ने तो धमाकेदार वापसी की थी और वही पुराने सिक्सर किंग की झलक दिखी थी, लेकिन जल्द ही ये चमक फीकी पड़ गई और वेस्टइंडीज़ दौरे पर आते आते उनके बल्ले की धार मानो कुंद पड़ गई है। युवराज के लिए मुश्किलें धोनी से कहीं ज़्यादा बड़ी हैं, युवी का बल्ला तो शांत है ही साथ ही मैदान पर फ़िल्डिंग के दौरान भी युवराज की चुस्ती और फुर्ती सुस्त पड़ गई है। युवराज की जगह टीम में एंट्री लेने के लिए मनीष पांडे और करुण नायर जैसे बल्लेबाज़ लगातार दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। लिहाज़ा उनपर दबाव भी काफ़ी और इसका असर प्रदर्शन पर भी साफ़ दिख रहा है। ऐसे हालातों में युवराज को 2019 तक ख़ुद को फ़िट रखना और फ़ॉर्म में बने रहना बेहद मुश्किल है, दूसरे अल्फ़ाज़ों में अगर कहें तो उनके लिए वर्ल्डकप की टिकट पाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल ज़रूर है।

Edited by Staff Editor
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