23 जुलाई 2017 का दिन भारतीय महिला क्रिकेट के लिए किसी सपने से कम नहीं था। भले ही वर्ल्डकप के फ़ाइनल में मेज़बान इंग्लैंड के हाथों मिताली राज की कप्तानी वाली भारतीय क्रिकेट टीम वर्ल्डकप की ट्रॉफ़ी उठाने से चूक गई हो, लेकिन उससे बड़ी जीत उन्हें हासिल हो गई। एक ऐसी जीत जिसके सामने ट्रॉफ़ी और ख़िताब की कोई बिसात नहीं, जी हां जिस देश में क्रिकेट का मतलब कपिल देव, सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर से लेकर महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली होता हो उस देश में जब सवा सौ करोड़ लोग अचानक मिताली...मिताली करने लगें जिस देश में हर मन की प्रीत बन जाएं हरमनप्रीत कौर, और जहां दिप्ती के एक एक रन पर सारे हिन्दुस्तानी की धड़कने बढ़ने लगें, उससे बड़ी जीत और क्या हो सकती है ? वर्ल्डकप इंग्लैंड में खेला जा रहा था, और उसका फ़ाइनल हुआ क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स पर जहां खेलना ही किसी सपने से कम नहीं होता। मिताली की इस टीम इंडिया ने न सिर्फ़ उस सपने को सच किया बल्कि ऐसा न धोनी ने किया था न अज़हर ने और न ही दादा या कोहली को ये मौक़ा मिला। कपिल देव की कप्तानी के बाद ये पहली टीम इंडिया थी जो वर्ल्डकप का फ़ाइनल लॉर्ड्स पर खेल रही थी। फ़ाइनल लॉर्ड्स पर हो रहा था और उम्मीदों भरी नज़रें पूरे हिन्दुस्तान में टीवी और मोबाइल पर लगी हुई थी। जैसे जैसे मैच बढ़ रहा था दुआओं के हाथ आसमान की ओर उठ रहे थे, ऊपर वाले ने भी ये सब देखकर सोचा होगा कि इस ब्लू ब्रिगेड की तो जीत ऐसे ही हो चुकी है तो फिर अंग्रोज़ों को भी ट्रॉफ़ी के साथ ख़ुश कर दिया जाए। स्कोरकार्ड पर भले ही कुछ और लिखा हो, आंकड़े ज़रूर कुछ और ही गवाही दे रहे हों लेकिन सभी देशवासियों के लिए वर्ल्ड चैंपियन मिताली राज की शेरनियां ही हैं। दूसरों का तो नहीं पता लेकिन मेरे लिए तो वर्ल्ड कप जीत लिया इन भारतीय शेरनियों ने। इनकी बदौलत आज भारतीय महिला क्रिकेट ने भी सभी को दीवाना बना दिया और अपनी अहमियत भी बता दी, वह मुक़ाम जिसके इंतज़ार में ये पिछले 4 दशकों से थीं। विराट कोहली और बीसीसीआई को भी इन शेरनियों से प्रेरणा लेनी चाहिए, मुझे नाज़ है देश की इन लाडलियों पर, जिन्होंने बेहद कम संसाधन और कम मदद मिलने के बावजूद तिरंगे का मान बढ़ाया। यही वजह है कि इस हार में भी जीत छुपी है और वह भी इतनी बड़ी जिसने पूरे देश को एक नया विकल्प दे दिया है, अब तक जिस देश में क्रिकेट का मतलब लड़कों वाली टीम इंडिया होती थी। आज क्रिकेट फ़ैंस और देशवासियों के दिलों में इन महिलाओं ने भी अपना मुक़ाम बना लिया है। कल तक जो एक महिला खिलाड़ी का नाम नहीं जानते थे, आज वह सभी के नाम भी जानते हैं और उन्हें किसी दूसरे से नहीं बल्कि उन्हें उनके खेल के लिए पहचानने लगे हैं। लेकिन विडंबना ये भी है कि इतना सब होने और समझने में तथाकथित क्रिकेट फ़ैंस और धर्म की तरह पूजे जाने वाले इस देश के लोगों को 41 साल से भी ज़्यादा लग गए। महिला क्रिकेट का इतिहास भी कम सुनहरा और प्रेरणादायक नहीं है, 1973 में विमेंस क्रिकेट ऑफ़ एसोशिएन की स्थापना हुई थी और 1976 में पहली बार भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने डायना एडुलजी (मौजूदा CoA सदस्य) की कप्तानी में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में दस्तक दी थी। ये मुक़ाबला बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ खेला गया था, जहां टीम इंडिया को हार मिली थी। 2 साल बाद महिला क्रिकेट टीम ने शांता रंगास्वामी की कप्तानी में वेस्टइंडीज़ से बदला लिया और भारतीय महिला क्रिकेट टीम को पहली अंतर्राष्ट्रीय जीत दिलाई। ये जीत टेस्ट मैचों में आई थी और इस ऐतिहासिक जीत का गवाह बना था पटना का मोइन-उल-हक़ स्टेडियम, जो फ़िलहाल अपनी पहचान खो रहा है। वनडे में टीम इंडिया पहली बार 1978 में मैदान में उतरी थी, जो विश्वकप का मुक़ाबला था और खेला गया था ऐतिहासिक इडेन गार्डेन्स पर। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ इस मुक़ाबले में भी भारतीय महिला क्रिकेट टीम को हार मिली और फिर पटना में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने भी भारत को शिकस्त दी थी। वनडे की पहली जीत महिला टीम इंडिया को न्यूज़ीलैंड के नेपियर में 4 साल बाद यानी 1982 में हासिल हुई थी। हालांकि इसके बाद से महिला क्रिकेट टीम लगातार खेलती रही जहां अब 13 कप्तानों ने इस टीम को कई सुनहरी जीत और यादगार पल दिए हैं। मिताली राज की कप्तानी में ही इस टीम ने 2005 में भी विश्वकप के फ़ाइनल में जगह बनाई थी, तब कंगारुओं के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। 12 साल बाद एक बार फिर मिताली चैंपियन बनने की दहलीज़ तक ले पहुंची थी लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। हालांकि, इस हार में भी जीत है और वह भी ऐसी जो शायद जीत से भी बड़ी है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए रविवार की रात एक ऐसा ट्रेलर लेकर आई है जिसके भविष्य में कई ऐसी तस्वीरें छुपी हैं जिसे आने वाले वक़्त में मिताली की ये शेरनियां अपने बच्चों को दिखाती हुई कहेंगी कि वे हम ही थे जिन्होंने काली सुरंग में से निकलते हुए सुनहरी धूप दिखाई।